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आपराधिक कानून
नियमों का पालन न करने पर जमानत रद्द करन
«10-Dec-2025
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शेख इरशाद उर्फ़ मोनू बनाम महाराष्ट्र राज्य "आरोप पत्र दाखिल होने के पश्चात् और विचारण की प्रक्रिया के दौरान पुलिस थाने में उपस्थिति अनिवार्य करने के आधार पर जमानत रद्द करना, विशेषकर ऐसी स्थिति में जब अभियुक्त नियमित रूप से विचारण न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो रहा हो, उचित नहीं है।" न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और विजय बिश्नोई |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
शेख इरशाद उर्फ मोनू बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और विजय बिश्नोई की पीठ ने जमानत रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया, यह मानते हुए कि पुलिस थाने में पेश न होना जमानत रद्द करने का औचित्य नहीं हो सकता है, जबकि अभियुक्त चल रहे विचारण के दौरान नियमित रूप से विचारण न्यायालय के समक्ष पेश हो रहा है।
शेख इरशाद उर्फ मोनू बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता को पुलिस थाने गिट्टखदान, नागपुर में पंजीकृत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 102/2020 में अभियुक्त बनाया गया था।
- उस पर स्वापक ओषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 20 और 29 तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 की धारा 3(1)(i)(ii), 3(2), 3(4) के अधीन आरोप लगाया गया था।
- जब्त किया गया प्रतिबंधित माल 2 किलोग्राम 728 ग्राम गांजा है, जो गैर-वाणिज्यिक (मध्यवर्ती) मात्रा है।
- जमानत मिलने से पहले अपीलकर्त्ता 1 वर्ष और 11 महीने तक अभिरक्षा में था।
- उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता को दाण्डिक आवेदन (BA) संख्या 626/2022 के माध्यम से 22.08.2022 को जमानत प्रदान की।
- जमानत आदेश में एक शर्त यह थी कि अपीलकर्त्ता को प्रत्येक माह की 1 और 16 तारीख को पुलिस थाने में उपस्थित होना होगा।
- राज्य ने इस शर्त का पालन न करने के कारण जमानत रद्द करने की मांग करते हुए दाण्डिक आवेदन (आवेदन) संख्या 71/2023 दायर किया।
- 09.10.2025 को, नागपुर स्थित बॉम्बे उच्च न्यायालय की बेंच ने राज्य के आवेदन को स्वीकार करते हुए अपीलकर्त्ता की जमानत रद्द कर दी।
- आरोप पत्र दाखिल होने के बाद, मामला सेशन न्यायालय को सौंप दिया गया और विचारण की कार्यवाही शुरू हुई।
- अपीलकर्त्ता विचारण न्यायालय के आदेशों के अनुसार नियमित रूप से विचारण न्यायालय के समक्ष पेश हो रहा था।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने पाया कि जब्त की गई मात्रा मध्यवर्ती (गैर-वाणिज्यिक) थी और जमानत मिलने से पहले अपीलकर्त्ता लगभग 2 वर्ष की अभिरक्षा में रह चुका था।
- न्यायालय ने पाया कि जमानत रद्द करने का निदेश केवल प्रत्येक माह की 1 और 16 तारीख को पुलिस थाने में पेश न होने के बहाने दिया गया था।
- न्यायालय ने पाया कि आरोप पत्र दाखिल होने और सेशन न्यायालय में मामला भेजे जाने के बाद, विचारण के लिये लंबित था, और अपीलकर्त्ता न्यायालय के आदेशों के अनुसार विचारण न्यायालय के समक्ष पेश हो रहा था।
- न्यायालय ने यह माना कि ऐसी स्थिति में जहाँ आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है और विचारण चल रहा है, पुलिस थाने में पेश होने का निदेश प्रथम दृष्टया मान्य नहीं है ।
- न्यायालय ने विचारण न्यायालय के समक्ष विचारण के दौरान उपस्थित न होने और पुलिस थाने में उपस्थित न होने के बीच अंतर स्पष्ट किया।
- न्यायालय ने कहा कि "पुलिस थाने में पेश न होने के आधार जमानत रद्द करना सही दृष्टिकोण और उचित आधार नहीं हो सकता है।"
- उच्चतम न्यायालय ने जमानत रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि यदि अपीलकर्त्ता जमानत पर है, तो वह जमानत पर बना रहे और सक्षम न्यायालय के आदेश द्वारा छूट दिये जाने तक नियमित रूप से विचारण न्यायालय के समक्ष पेश हो।
- अपील स्वीकार कर ली गई और सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया गया।
जमानत क्या है और इससे संबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?
बारे में:
- दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन 'जमानत' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
- संहिता की धारा 2(क) के अंतर्गत केवल 'जमानतीय अपराध' और 'अजमानतीय अपराध' शब्दों को परिभाषित किया गया है।
जमानत के विभिन्न प्रकार:
- नियमित जमानत: न्यायालय जमानत रकम का संदाय करने के बाद गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा से छोड़ देने का आदेश देता है। अभियुक्त दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 और 439 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 480 और 483) के अधीन नियमित जमानत के लिये आवेदन कर सकता है।
- अंतरिम जमानत: यह न्यायालय द्वारा अभियुक्त को उसकी नियमित या अग्रिम जमानत याचिका लंबित रहने तक अस्थायी और अल्पकालिक जमानत प्रदान करने का एक सीधा आदेश है।
- अग्रिम जमानत: अजमानतीय अपराध के लिये गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482) के अधीन उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिये आवेदन कर सकते हैं।
जमानत की शर्तें:
- जमानत की शर्तें वे उपबंध हैं जो न्यायालय जमानत देते समय अभियुक्त के विधिक प्रक्रिया में सहयोग सुनिश्चित करने के लिये लगाती हैं।
- सामान्य शर्तों में पासपोर्ट जमा करना, अधिकारिता से बाहर न जाना, निर्धारित तिथियों पर उपस्थित होना और साक्ष्य या साक्षियों के साथ छेड़छाड़ न करना सम्मिलित हैं।
- न्यायालयों के पास अपराध की प्रकृति और मामले की परिस्थितियों के आधार पर उचित शर्तें अधिरोपित करने का विवेकाधिकार होता है।
- जमानत की शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द होने का कारण बन सकता है, यद्यपि न्यायालय इस बात की परीक्षा करती हैं कि उल्लंघन महत्त्वपूर्ण और जानबूझकर किया गया है या नहीं।