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आपराधिक कानून

विधि का उल्लंघन करने वाले बालक को किशोर न्याय अधिनियम के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता

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 06-Nov-2025

प्रह्लाद प्रसाद राठौड़ बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य 

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 24(1) का लाभ विधि का उल्लंघन करने वाले प्रत्येक बालक को दिया जाना चाहियेपूर्ववर्ती कार्यवाही उसे अयोग्य नहीं ठहरा सकती।” 

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु

स्रोत:छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कोई व्यक्ति जो कथित अपराध के समय 18 वर्ष से कम आयु का थाउसेकिशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) केअधीनविधि का उल्लंघन करने वाले बालकके रूप में माना जाना चाहियेऔर ऐसे आपराधिक मामलों से जुड़ी सभी निर्हरतएं अधिनियम कीधारा 24(1)के अधीन समाप्त हो जाती हैं । 

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हाऔरन्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरुकी खंडपीठ नेप्रहलाद प्रसाद राठौर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य के मामलेमें निर्णय दियाजिसमें याचिकाकर्त्ता की सरकारी सेवा से बर्खास्तगी को रद्द कर दिया गया। 

प्रहलाद प्रसाद राठौर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अपीलकर्त्ताभारतीय नौसेना का एक पूर्व सैनिक हैजिसका 15 वर्षों का अनुकरणीय सेवा रिकॉर्ड हैउसेपूर्व सैनिकों के लिये आरक्षित कोटे के अधीन 2018 मेंखाद्य निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। 
  • 2024 मेंराज्य प्राधिकारियों नेपुलिस सत्यापन रिपोर्टके आधार परउनकी सेवाएँ समाप्त कर दींजिसमें 2002 में उनके विरुद्ध दर्ज दो छोटे आपराधिक मामलों का उल्लेख थाजब वह अभी भी अवयस्क थे। 
  • दोनों मामले 2007 में लोक अदालतमें समझौते के ज़रिए सुलझा लिये गए थेअर्थात् राज्य सेवा में आने से बहुत पहले। यद्यपिअधिकारियों ने सत्यापन फॉर्म में "महत्त्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने" को बर्खास्तगी का कारण बताया। 
  • विद्वानएकल न्यायाधीश ने 07.01.2025 को उनकी रिट याचिका खारिज कर दी और बर्खास्तगी को बरकरार रखा। इसके बाद याचिकाकर्ता नेखंडपीठ के समक्ष एकरिट अपील दायर कीजिसमें तर्क दिया गया कि: 
    • कथित अपराध मामूली थे और तब हुए थे जब वहबालकथा ; 
    • सेवा में शामिल होने सेलगभग 11 वर्ष पहले उन्हें समझौते के माध्यम से दोषमुक्त कर दिया गया था; 
    • नौसेना सेवा के दौरान उनका आचरण और चरित्र "अनुकरणीय" और "बहुत अच्छा"था और 
    • वह किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 24(1) के लाभके हकदार थेजो ऐसे मामलों से जुड़ी निर्हरता को समाप्त कर देता है। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

खंडपीठ ने पाया किबर्खास्तगी आदेश मनमाना और विधिक रूप से अस्थिर है । 

इसने कहा कि: 

  • अपीलकर्त्ता के विरुद्ध आपराधिक मामले 2002 से संबंधित थेजब उसकीआयु 18 वर्ष से कमथीतथा दोनों मामले 2007 में समाप्त हुए । 
  • 2018 में सत्यापन की तिथि परकोई निर्हरता या लंबित कार्यवाही नहींथी । 
  • अपीलकर्त्ता को लोक सेवा के लिये "अयोग्य" घोषित करने के लिये राज्य का पुराने मामलों पर विश्वास करनाअवतार सिंह बनाम भारत संघ (2016) और रविंद्र कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित विधि के विपरीत था, जिसमेंकहागयाथाकितुच्छया लंबे समय से बंद मामलों का प्रकटीकरण न करना दमन नहीं है। 
  • अपीलकर्त्ता कथित अपराधों के समयविधि का उल्लंघन करने वाले बालक (CCL) थाऔरकिशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 24(1) के अधीनऐसी कार्यवाही से उत्पन्न होने वाली सभी निर्हताएं समाप्त हो गई हैं। 
  • सुनवाई का कोई अवसर दिये बिना सेवा समाप्तिसंविधानकेअनुच्छेद 14 के अधीनप्राकृतिक न्यायके सिद्धांतों का उल्लंघन है । 

न्यायालय ने यह भी कहा किधारा 24(1) का उद्देश्यबालक को कलंक से मुक्त होकर गरिमापूर्ण जीवन जीने की अनुमति देनापुनर्वास और पुनः एकीकरण सुनिश्चित करना है। 

विधि का उल्लंघन करने वाला बालक कौन है? 

बारे में: 

  • विधि का उल्लंघन करने वाले बालक की अवधारणा किशोर न्याय अधिनियम पर आधारित हैजिसे किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(13) के अधीन परिभाषित किया गया हैजहाँ यह कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की हैने कोई अपराध किया है या ऐसा अभिकथन किया गया है कि उसने कोई अपराध किया हैतो उसे विधि का उल्लंघन करने वाला बालक माना जाएगा। 
  • सामान्यत: यह माना जाता है कि बालक मासूमियत के साथ पैदा होता है और सामाजिक व्यवहार और मनोवैज्ञानिक असमानताओं के कारण वे नैतिक और आचारिक मूल्यों से वंचित हो जाते हैंजिसके कारण वे अपराध करने लगते हैं। 
  • जब कोई अवयस्क समाज के विरुद्ध ऐसे अपराध करता है तो इसे विधि के विरुद्ध अपराध कहा जाता है। 
  • यह देखा गया है कि सही प्रकार की देखरेख और पुनर्वास से एक बालक को एक बेहतर इंसान में बदला जा सकता है। 

सांविधानिक उपबंध: 

  • अनुच्छेद 21:प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार कहता है कि किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीने से वंचित नहीं किया जा सकता। 
  • अनुच्छेद 22(1):गिरफ्तारी के बारे में सूचित किये जाने और गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के अधिवक्ता से परामर्श करने का अधिकार। 

किशोर न्याय अधिनियम से संबंधित उपबंध 

  • धारा 2(13):कोई भी व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है और जिस पर कोई अपराध करने का अभिकथन किया गया है या पाया गया हैउसे विधि का उल्लंघन करने वाला बालक कहा जाएगा। 
  • धारा 12(1):जब कोई व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की हैजिसके बारे में अभिकथित किया गया है कि उसने कोई अपराध किया हैचाहे वह जमानतीय हो या अजमानतीयतो उसे जमानत इस शर्त पर दी जाएगी कि उसकी जमानत से उसे कोई खतरा नहीं होगा और जमानत देते समय किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उचित सावधानी बरती जाएगी। 
  • धारा 3:यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि इस अधिनियम के दायरे में आने वाले बालक को उसके सर्वोत्तम हित के अधीन यथाशीघ्र उसके परिवार के साथ पुनः मिलाया जाएगा। 
  • धारा 104:यह धारा बोर्ड को अधिनियम में निर्दिष्ट सदस्यों के उचित गठन से संबंधित पीड़ित पक्ष द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर अपने निर्णय का पुनरीक्षण करने का अधिकार देती है।