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श्रम कानून

कैंटीन कर्मचारियों की नियोजन स्थिति

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 22-Oct-2025

महाप्रबंधकउत्तर प्रदेश सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम अच्छे लाल एवं अन्य 

"उच्चतम न्यायालय ने श्रम न्यायालय के पंचाट और उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दियाजिसमें कैंटीन कर्मचारियों की बहाली का निदेश दिया गया थातथा कहा गया था कि केवल सब्सिडी और बुनियादी ढाँचे का समर्थनप्रत्यक्ष नियंत्रण और पर्यवेक्षण के बिना स्वामी-सेवक संबंध स्थापित नहीं करता है।" 

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और संदीप मेहता 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

महाप्रबंधकउत्तर प्रदेश सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम अच्छे लाल एवं अन्य (2025)के मामले में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और संदीप मेहता की पीठ नेश्रम न्यायालय के पंचाट और उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दियाजिसमें कैंटीन कर्मचारियों को बकाया वेतन के साथ बहाल करने का निदेश दिया गया थाऔर कहा गया था कि कर्मचारी कैंटीन चलाने वाली सहकारी समिति के कर्मचारी थेन कि बैंक के। 

महाप्रबंधकउत्तर प्रदेश सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम अच्छे लाल एवं अन्य (2025) के मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अपीलकर्त्ता उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक लिमिटेड को 1959 में सहकारी समिति अधिनियम, 1912 के अधीनरजिस्ट्रीकृत किया गया था। 
  • बैंक के कर्मचारियों नेअपने सदस्यों को कैंटीन सुविधा प्रदान करने के लिये अधिनियम, 1912 के अधीन रजिस्ट्रीकृत एक पृथक् सोसायटी का गठन कियाजिसका नाम " यू.पी. कोऑपरेटिव बैंक एम्प्लॉइज सोसाइटी लिमिटेड" रखा गया। 
  • बैंक ने सोसायटी को कैंटीन चलाने की अनुमति देने का नीतिगत निर्णय लिया तथा सोसायटी के साथ परामर्श करके सब्सिडी और बुनियादी ढाँचे से संबंधित रूपरेखा तैयार की।  
  • चार प्रत्यर्थियों (अच्छे लालसत्य प्रकाश श्रीवास्तवविजय कुमार और लीला धर) कोकैंटीन चलाने के लिये सोसायटी द्वारा कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था, यद्यपि औपचारिक नियुक्ति आदेश रिकॉर्ड में नहीं थे। 
  • दिनांक 14.09.1982 की बैठक में बैंकसोसायटी और कर्मचारी संघ ने संकल्प लिया कि वेतन का 75% बैंक द्वारा और 25% सोसायटी द्वारा वहन किया जाएगा। 
  • 28.06.1989 को बैंक ने सब्सिडी में 30% की वृद्धि कर दी। 
  • 1995 में सोसायटी ने बैंक से बढ़ी हुई सब्सिडी का अनुरोध कियाजिसे अस्वीकार कर दिया गया। 
  • परिणामस्वरूप सोसायटी नेकैंटीन को बंद करने का निर्णय लियातथा 31.05.1995 से चारों प्रत्यर्थियों की सेवाएँ समाप्त कर दीं। 
  • इससे औद्योगिक विवाद उत्पन्न हो गया और राज्य सरकार ने मामले को निर्णय के लिये श्रम न्यायालय को भेज दिया। 
  • श्रम न्यायालय ने 14.09.1999 के पंचाट के अधीन माना कि श्रमिक बैंक के कर्मचारी थे तथा उनकी बर्खास्तगी अवैध थीतथा उन्हें बकाया वेतन के साथ बहाल करने का निदेश दिया। 
  • बैंक ने इस पंचाट को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में चुनौती दी। 
  • उच्च न्यायालय ने दिनांक 08.10.2012 के निर्णय के अधीन बैंक की रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया तथा श्रम न्यायालय के पंचाट को बरकरार रखा। 
  • बैंक ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

न्यायालय का विश्लेषण: 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि नियोक्ता-कर्मचारी संबंध स्थापित करने के लिये, सुसंगत कारकों में सम्मिलित हैं: (क) श्रमिकों की नियुक्ति कौन करता है; (ख) वेतन/पारिश्रमिक कौन देता है; (ग) बर्खास्तगी का अधिकार किसके पास है; (घ) अनुशासनात्मक कार्रवाई कौन कर सकता है; (ङ) क्या सेवा की निरंतरता हैऔर (च) पूर्ण नियंत्रण और पर्यवेक्षण की सीमा। 
  • न्यायालय ने कहा कि सभी प्रत्यर्थी सोसायटी द्वारा नियुक्त थेजिसकी अपनी पदाधिकारियों की समिति और लगभग 1000 कर्मचारी थे। 
  • जबकि बैंक ने बुनियादी ढाँचावित्त और सब्सिडी (व्यय का 75%) प्रदान कीकिंतु ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे यह संकेत मिलता हो कि कैंटीन के मामलों के प्रबंधन में बैंक की कोई प्रत्यक्ष भूमिका थी। 
  • न्यायालय ने इस मामले कोइंडियन ओवरसीज बैंक बनाम आई..बी. स्टाफ कैंटीन वर्कर्स यूनियन (2000)से अलग करते हुए कहा कि उस मामले में श्रमिकों को बैंक की कल्याण निधि योजना में सूचीबद्ध किया गया थावे बैंक के डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा परीक्षा के लिये पात्र थेतथा उन्हें भविष्य निधि लाभ भी दिया गया था। 
  • न्यायालय ने बलवंत राय सलूजा बनाम एयर इंडिया लिमिटेड (2014)में निर्धारित "पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण" के मानदंड को लागू किया । 
  • न्यायालय नेभारतीय स्टेट बैंक बनाम भारतीय स्टेट बैंक कैंटीन कर्मचारी संघ (2000)औरभारतीय रिज़र्व बैंक प्रबंधन के संबंध में नियोक्ता बनाम श्रमिक (1996) के मामले पर विश्वास किया। 
  • न्यायालय ने कहा कि नियुक्तिप्रबंधन और अनुशासनात्मक मामलों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण के बिना केवल सब्सिडी और बुनियादी ढाँचे का समर्थननियोक्ता-कर्मचारी संबंध स्थापित नहीं करता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि तथ्य प्रत्येक मामले में अलग-अलग होते हैं तथा निष्कर्ष प्रत्येक विशेष मामले में साक्ष्य पर आधारित होना चाहिये 

न्यायालय के निदेश: 

  • उच्चतम न्यायालय ने बैंक द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। 
  • उच्च न्यायालय द्वारा पारित विवादित निर्णयों और आदेशों कोअपास्त कर दिया गया। 
  • श्रम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को भी अपास्त कर दिया गया। 
  • न्यायालय ने कहा कि श्रम न्यायालय और उच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकालने मेंगंभीर त्रुटी की हैकि सभी प्रत्यर्थी बैंक के कर्मचारी थे। 

नियोक्ता-कर्मचारी संबंध निर्धारित करने के लिये परीक्षा 

नियंत्रण परीक्षण 

  • नियंत्रण परीक्षण यह मानता है कि जब नियोक्ता का सौंपे गए कार्य और उसे करने के तरीके पर नियंत्रण होता हैतो नियोक्ता-कर्मचारी संबंध स्थापित होता है। 
  • परीक्षण में दो पहलुओं पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है: किये गए कार्य की प्रकृति पर नियंत्रण और कार्य के संचालन के तरीके पर नियंत्रण। 
  • आवश्यक नियंत्रण की मात्रा और स्तर प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। 
  • सही दृष्टिकोण यह है कि कार्य की प्रकृति को ध्यान में रखते हुएइस बात पर विचार किया जाए कि क्या नियोक्ता द्वारा उचित नियंत्रण और पर्यवेक्षण किया जा रहा है। 

संगठन/एकीकरण परीक्षण 

  • यह परीक्षण नियोक्ता के प्राथमिक कारबार में कार्य के एकीकरण की डिग्री का आकलन करता है। 
  • एकीकरण का उच्च स्तर कर्मचारी की स्थिति की अधिक संभावना को इंगित करता है। 
  • यह परीक्षण आधुनिक व्यावसायिक कार्य के लिये सुसंगत हो गया हैजहाँ नियोक्ताओं के पास कार्य के तरीके को निर्देशित करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव हो सकता है। 

बहु कारक परीक्षण 

बहुकारक परीक्षण में सम्मिलित हैं: 

  • कार्य और कार्य के तरीके पर नियंत्रण 
  • औजारों का स्वामित्व 
  • एकीकरण/संगठन 
  • लाभ की संभावना 
  • हानि का जोखिम 
  • स्वामी को सेवक चुनने की शक्ति 
  • मजदूरी या पारिश्रमिक का संदाय 
  • कार्य करने की विधि को नियंत्रित करने का स्वामी का अधिकार 
  • स्वामी का निलंबन या बर्खास्तगी का अधिकार 

बहु-कारक परीक्षण का परिशोधन 

सुशीलाबेन इंद्रवदन गांधी बनाम द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2021)में, न्यायालय ने बहुकारक परीक्षण को दोहराया जिसमें सम्मिलित हैं: 

  • कार्य और उसके संचालन के तरीके पर नियंत्रण 
  • नियोक्ता के कारबार में एकीकरण का स्तर 
  • पारिश्रमिक वितरित करने का तरीका 
  • श्रमिकों पर आर्थिक नियंत्रण 
  • कार्य स्वयं के लिये किया जाता है या किसी पर पक्षकार के लिये 

नियंत्रण के कारकों और पारिश्रमिक के तरीके को प्राथमिकता दी गईजो सामान्यतः पर्याप्त होता जब तक कि अन्य संविदात्मक शर्तें अन्यथा इंगित न करें। 

सांविधिक बनाम असांविधिक कैंटीन क्या हैं? 

सांविधिक कैंटीन: 

  • कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 46 के अधीनकुछ प्रतिष्ठानों के लिये कैंटीन उपलब्ध कराना और उनका रखरखाव करना सांविधिक रूप से अनिवार्य है। 
  • जब कोई कैंटीन सांविधिक दायित्त्व के अनुसार संचालित की जाती हैतो वह प्रतिष्ठान का भाग बन जाती है।  
  • सांविधिक कैंटीनों में काम करने वाले कर्मचारियों को सामान्यत: प्रबंधन का कर्मचारी माना जाता हैजो नियंत्रण और पर्यवेक्षण की कसौटी पर खरा उतरता है। 

असांविधिक कैंटीन: 

  • असांविधिक कैंटीन वे हैं जोविधि द्वारा अनिवार्य नहीं हैंकिंतु एक सुविधा या कल्याणकारी उपाय के रूप में प्रदान की जाती हैं। 
  • कैंटीन उपलब्ध कराने के दायित्त्व को कैंटीन चलाने के लिये सुविधाएँ उपलब्ध कराने के दायित्त्व से अलग किया जाना चाहिये 
  • बाद वाले दायित्त्व के अनुसार संचालित कैंटीन स्वतः ही प्रतिष्ठान का भाग नहीं बन जाते। 
  • नियोजन की स्थिति नियंत्रणपर्यवेक्षणनियुक्ति प्राधिकार और मुख्य प्रतिष्ठान के साथ एकीकरण सहित विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है।