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आपराधिक कानून
अवैध गिरफ्तारी और सांविधानिक सुरक्षा उपाय
«08-Dec-2025
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चन्द्रशेखर भीमसेन नाइक बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य "गिरफ्तारी एक 'व्यक्तिगत' कार्यवाही है और इसलिये, अन्वेषण अभिकरण संदिग्धों की गिरफ्तारी को 'सामूहिक' या 'समूह-आधारित' कारणों के आधार पर न्यायोचित नहीं ठहरा सकतीं हैं।" न्यायमूर्ति भारती डांगरे और श्याम सी. चंदक |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
चंद्रशेखर भीमसेन नाइक बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति भारती डांगरे और श्याम सी. चंदक की पीठ ने याचिकाकर्त्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया और उसे जमानत दे दी, इस बात पर बल देते हुए कि गिरफ्तारी सांविधानिक सुरक्षा उपायों के अनुरूप होनी चाहिये और सामान्य, टेम्पलेट-संचालित कारणों पर आधारित नहीं हो सकती।
चंद्रशेखर भीमसेन नाइक बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- SEBI-रजिस्ट्रीकृत अनुसंधान विश्लेषक प्रकाश गोपीचंद गाबा के परिवाद के आधार पर, 29 सितंबर 2025 को साइबर पुलिस थाने, पश्चिम क्षेत्र, मुंबई में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 293/2025 दर्ज की गई।
- परिवाद में अभिकथित किया गया है कि जून 2025 से, निवेश सलाह प्रदान करने वाले परिवादकर्त्ता के फर्जी वीडियो (deepfakes) सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं, जिससे निवेशकों से कपट किया जा रहा है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 318(4), 319(2), 336(2), 356(2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ग और 66घ का प्रयोग किया गया।
- याचिकाकर्त्ता चंद्रशेखर भीमसेन नाइक, बेंगलुरु स्थित डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी वैल्यूलीफ सर्विसेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड में वरिष्ठ उपाध्यक्ष (बिजनेस डेवलपमेंट) के पद पर कार्यरत थे।
- 9 अक्टूबर 2025 को पुलिस ने कंपनी के बेंगलुरु कार्यालय का दौरा किया और प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के सिलसिले में तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया ।
- 15 अक्टूबर 2025 को शाम लगभग 7:00-7:30 बजे, साइबर पुलिस थाने के अधिकारी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35(3) के अधीन आवश्यक पूर्व सूचना के बिना याचिकाकर्त्ता के निवास पर पहुँचे।
- याचिकाकर्ता ने पूर्ण सहयोग किया, जवाब दिया और स्वेच्छया से अपना मोबाइल फोन और लैपटॉप सौंप दिया, परंतु कोई अभिग्रहण पंचनामा नहीं बनाया गया।
- याचिकाकर्त्ता को साइबर पुलिस थाने ले जाया गया और 16 अक्टूबर 2025 को 00:01 बजे उसकी गिरफ्तारी दिखाई गई।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 47 के अधीन गिरफ्तारी के आधार और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 48 के अधीन सूचना प्रदान की गई थी, किंतु याचिकाकर्त्ता ने अभिकथित किया कि वे अस्पष्ट और अनुपालन न करने वाले थे।
- 16 अक्टूबर 2025 को याचिकाकर्त्ता को गिरफ्तारी के कारणों की सूची और 5 दिन की पुलिस अभिरक्षा के अनुरोध के साथ बांद्रा के 12वें महानगर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया।
- मजिस्ट्रेट ने गिरफ्तारी की वैधता की जांच किये बिना 20 अक्टूबर 2025 तक 4 दिन की पुलिस अभिरक्षा दे दी।
- 20 अक्टूबर 2025 को याचिकाकर्त्ता को तलोजा सेंट्रल जेल में न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया।
- याचिकाकर्त्ता की जमानत याचिका 31 अक्टूबर 2025 को खारिज कर दी गई, जिसके बाद उसने अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करते हैं, तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 में 7 वर्ष तक के दण्ड वाले मामलों में गिरफ्तारी के लिये विशिष्ट, लिखित कारण अनिवार्य किये गए हैं।
- न्यायालय ने कहा: "गिरफ्तारी अपमान लाती है, स्वतंत्रता को सीमित करती है तथा सदैव के लिये दाग छोड़ जाती है"।
- पुलिस को गिरफ्तारी के तथ्यात्मक, अभियुक्त-विशिष्ट कारण अभिलिखित करने चाहिये—न कि सांविधिक भाषा की यांत्रिक प्रतिकृतियाँ। न्यायालय ने बल देकर कहा: "गिरफ़्तारी एक व्यक्तिगत कार्य है" जिसके लिये प्रत्येक अभियुक्त के लिये अलग-अलग औचित्य की आवश्यकता होती है।
- इस मामले में, कारण सभी चार अभियुक्तों के लिये एक जैसे सामान्य टेम्पलेट कथन थे, जो विवेक का प्रयोग न करने को दर्शाते थे तथा गिरफ्तारी को अवैध बताते थे।
- मजिस्ट्रेट का सांविधानिक कर्त्तव्य है कि वह निरोध की अनुमति देने से पहले गिरफ्तारी की वैधता की पुष्टि करे, न कि पुलिस की दलीलों को यंत्रवत् स्वीकार कर ले। मजिस्ट्रेट को रिमांड आदेश में अपनी संतुष्टि अभिलिखित करनी होगी।
- सात वर्ष तक के दण्ड वाले अपराधों के लिये, पुलिस को पहले धारा 35(3) के अधीन नोटिस जारी करना चाहिये, और पालन न करने पर ही गिरफ़्तारी करनी चाहिये। याचिकाकर्त्ता के सहयोग करने की इच्छा के होते हुए भी, उसे कोई नोटिस जारी नहीं किया गया।
गिरफ्तारी के लिये विधिक ढाँचा क्या है?
सांविधानिक उपबंध:
अनुच्छेद 21 – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण:
- किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
- यह मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है कि स्वतंत्रता से किसी भी प्रकार का वंचित करने पर उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
अनुच्छेद 22 – कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण:
- प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये तथा उसे विधिक सलाहकार से परामर्श लेने तथा प्रतिरक्षा कराने का अधिकार होना चाहिये।
- प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर (यात्रा समय को छोड़कर) निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिये।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत सांविधिक उपबंध:
- धारा 35 – पुलिस वारण्ट के बिना कब गिरफ्तार कर सकती है:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 एक उपबंध है जो पुलिस अधिकारियों को संज्ञेय अपराधों से संबंधित विशिष्ट परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट से वारण्ट प्राप्त किये बिना किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है।
तत्काल गिरफ्तारी की स्थिति:
- जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है।
- जब विश्वसनीय सूचना प्राप्त हो कि किसी व्यक्ति ने कोई संज्ञेय अपराध किया है जिसके लिये सात वर्ष से अधिक कारावास, जुर्माने सहित या उसके बिना, या मृत्युदण्ड हो सकता है।
- जब किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी घोषित किया गया हो।
- जब किसी के पास चोरी की संपत्ति पाई जाती है और उस पर उससे संबंधित अपराध करने का उचित संदेह होता है।
- जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी के कर्त्तव्य पालन में बाधा डालता है या वैध अभिरक्षा से भाग जाता है या भागने का प्रयास करता है।
- जब किसी व्यक्ति पर सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित संदेह हो।
- जब कोई व्यक्ति भारत के बाहर किये गए किसी ऐसे कार्य में सम्मिलित होता है जो भारत में किये जाने पर अपराध के रूप में दण्डनीय होता।
- जब छोड़ा गया सिद्धदोष होते हुए धारा 394(5) के अधीन बनाए गए नियम को भंग करता है।
- जब किसी अन्य पुलिस अधिकारी से गिरफ्तारी हेतु अनुरोध प्राप्त होता है।
सात वर्ष तक के अपराधों के लिये सशर्त गिरफ्तारी:
- सात वर्ष से कम या अधिकतम सात वर्ष के कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराधों के लिये गिरफ्तारी की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब विशिष्ट शर्तें पूरी हों:
- पुलिस अधिकारी के पास युक्तियुक्त परिवाद, विश्वसनीय सूचना या उचित संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि व्यक्ति ने अपराध किया है।
- पुलिस अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि आगे अपराध रोकने, उचित अन्वेषण करने, साक्ष्यों से छेड़छाड़ रोकने, साक्षियों को प्रलोभन या धमकी देने से रोकने, या न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये गिरफ्तारी आवश्यक है।
- पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी करते समय लिखित में कारण अभिलिखित करने होंगे।
धारा 35(3) – नोटिस प्रक्रिया:
- ऐसे मामलों में जहाँ धारा 35(1) के अधीन गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, पुलिस अधिकारी व्यक्ति को उपस्थित होने का निदेश देते हुए नोटिस जारी करेगा।
- व्यक्ति को नोटिस की शर्तों का पालन करना होगा।
- गिरफ्तारी केवल तभी की जा सकती है जब अनुपालन न किया जाए या गिरफ्तारी आवश्यक होने के कारण अभिलिखित किये जाएं।
धारा 47 – गिरफ्तार व्यक्ति को सूचित किया जाना:
- बिना वारण्ट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाले प्रत्येक पुलिस अधिकारी को अपराध का पूरा विवरण तथा गिरफ्तारी के आधार तुरंत बताने होंगे।
- जमानतीय अपराधों के लिये, गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत के अपने अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।