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आपराधिक कानून
प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार
« »12-Sep-2025
राकेश दत्त शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य "प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को दरकिनार नहीं किया जा सकता और न ही इसे सोने के तराजू पर तौला जा सकता है। ऐसे मामले में, न्यायालय का दृष्टिकोण पांडित्यपूर्ण नहीं होगा।" जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
राकेश दत्त शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की न्यायपीठ ने एक चिकित्सक को, जिसे आपराधिक मानववध के लिये दोषी ठहराया गया था, दोषमुक्त कर दिया, तथा कहा कि उसके कृत्य प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के वैध प्रयोग थे।
राकेश दत्त शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2025) के मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्ता राकेश दत्त शर्मा एक चिकित्सक था, जिसका मृतक के साथ आर्थिक विवाद था।
- मृतक पिस्तौल से सज्जित होकर अपीलकर्ता के क्लिनिक में गया और उसे गोली मार दी, जिससे उसके सिर में चोट आई।
- जवाबी कार्यवाही में, अपीलकर्ता ने मृतक से पिस्तौल छीन ली और उसे गोली मार दी, जिसके परिणामस्वरूप मृतक की मृत्यु हो गई।
- दोनों पक्षकारों ने एक-दूसरे के विरुद्ध प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराई थी, लेकिन मृतक की मृत्यु के बाद उसके विरुद्ध मामला बंद कर दिया गया।
- अपीलकर्ता पर मूलतः भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 302 के अधीन आरोप लगाया गया था।
- विचारण न्यायालय ने उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 भाग-I (आपराधिक मानववध) के अधीन दोषी ठहराया और आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया।
- उच्च न्यायालय ने अपील पर दोषसिद्धि और दण्ड की संपुष्टि की।
- अपीलकर्ता ने दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय की शरण ली तथा दावा किया कि उसके कृत्य प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार के प्रयोग थे।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मृतक स्पष्ट रूप से हमलावर था, जिसने अपीलकर्ता के क्लिनिक में पिस्तौल ले जाकर हमला शुरू किया था।
- न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि "प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को दरकिनार नहीं किया जा सकता और न ही इसे सोने के तराजू पर तौला जा सकता है।"
- न्यायपीठ ने कहा कि आसन्न संकट की स्थिति में, "ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे अभियुक्त व्यक्ति प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग करते समय अपने तर्कसंगत मस्तिष्क का उपयोग कर सके।"
- न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि दृष्टिकोण पांडित्यपूर्ण नहीं होना चाहिये तथा इसे एक सामान्य एवं विवेकवान व्यक्ति के नजरिए से देखा जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने दर्शन सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2010) के मामले में स्थापित पूर्व-निर्णय में दिये गए निम्नलिखित सिद्धांतों का हवाला दिया:
- आत्म-रक्षा एक मूलभूत मानवीय प्रवृत्ति है जिसे सभ्य देशों में आपराधिक विधि में मान्यता प्राप्त है, जिसमें उचित सीमाओं के भीतर प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार भी शामिल है।
- प्राइवेट प्रतिरक्षा तभी लागू होती है जब किसी व्यक्ति को अचानक आसन्न संकट का सामना करना पड़ता है, तब नहीं जब खतरा स्वयं निर्मित हो।
- संकट की उचित आशंका ही प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने के लिये पर्याप्त है, वास्तविक अपराध घटित होना आवश्यक नहीं है।
- यह अधिकार तभी प्रारंभ होता है जब युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न होती है और जब तक आशंका बनी रहती है तब तक जारी रहता है।
- हमले के शिकार व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह गणितीय परिशुद्धता के साथ अपने बचाव में कोई बदलाव करेगा।
- प्राइवेट प्रतिरक्षा में प्रयुक्त बल पूरी तरह से अनुपातहीन या सुरक्षा के लिये आवश्यक से अधिक नहीं होना चाहिये।
- न्यायालय आत्मरक्षा पर विचार कर सकता है, भले ही अभियुक्त ने विशेष रूप से इसका अनुरोध न किया हो, बशर्ते कि यह साक्ष्य से उत्पन्न हो।
- अभियुक्त को प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को उचित संदेह से परे साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
- भारतीय दण्ड संहिता केवल विधिविरुद्ध या दोषपूर्ण कार्यों के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार देती है जो अपराध की कोटि में आते हैं।
- मृत्यु या गंभीर चोट के आसन्न और युक्तियुक्त खतरे का सामना कर रहा व्यक्ति, आत्मरक्षा में, हमलावर की मृत्यु तक भी कारित सकता है।
- इन सिद्धांतों को लागू करते हुए, न्यायालय ने माना कि शर्मा का कृत्य प्राइवेट प्रतिरक्षा के दायरे में आता है और विचारण न्यायालय तथा उच्च न्यायालय दोनों ने उसे दोषी ठहराने में गलती की है।
- न्यायालय ने कहा कि प्राइवेट प्रतिरक्षा से संबंधित स्थितियों का "उस समय की उत्तेजना और भ्रम की स्थिति में संबंधित अभियुक्त के व्यक्तिपरक दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया जाना चाहिये।"
- न्यायपीठ ने अभियोजन पक्ष के इस अभिवचन को खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता ने मृतक के महत्वपूर्ण अंगों पर गोली मारकर अपने प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण किया है।
- न्यायालय ने विचारण न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों के निर्णयों को रद्द करते हुए अपीलकर्ता को पूर्णतः दोषमुक्त कर दिया।
भारतीय न्याय संहिता के अधीन प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार क्या है?
बारे में:
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस), भारत की नई आपराधिक संहिता, जो 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी हुई, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (आईपीसी) के संबंधित प्रावधानों (धारा 96-106) को प्रतिस्थापित करते हुए भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 34-44 में प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को संहिताबद्ध करती है।
प्रमुख विधिक ढांचा:
- मौलिक सिद्धांत: भारतीय न्याय संहिता की धारा 34 में कहा गया है कि "कोई बात अपराध नहीं है जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है।
- प्रमुख धाराएं:
- धारा 34 : मौलिक सिद्धांत - वैध प्राइवेट प्रतिरक्षा में किये गए कार्य क्षमा योग्य हैं।
- धारा 35 : आपराधिक हमलों के विरुद्ध अपने शरीर/संपत्ति या दूसरों के शरीर/संपत्ति की प्रतिरक्षा करने का अधिकार।
- धारा 36 : पागल या उन्मत्त हमलावरों के विरुद्ध प्रतिरक्षा (समान अधिकार लागू होते हैं)।
- धारा 37 : प्रतिबंध - वैध लोक सेवक के कार्यों के विरुद्ध या सुरक्षित विकल्प विद्यमान होने पर कोई अधिकार नहीं
जब घातक बल का प्रयोग अनुमत हो:
शारीरिक की प्रतिरक्षा के लिये (धारा 38):
- जब हमलावर के हमले से मृत्यु या घोर उपहति की आशंका हो, या बलात्संग, प्रकृति विरुद्ध काम तृष्णा, व्यपहरण, अपहरण, सदोष परिरोध या तेजाब फेंकने के आशय से हमला किया गया हो।
संपत्ति की प्रतिरक्षा के लिये (धारा 41):
- लूट, रात्रिकालीन गृहभेदन (सूर्यास्त के बाद सूर्योदय से पहले), या किसी आवास में आग लगाकर नुकसान पहुंचाने के विरुद्ध।
उल्लेखनीय विशेषताएं:
- भारतीय न्याय संहिता ने आत्मरक्षा पर पुराने भारतीय दण्ड संहिता के नियमों को बरकरार रखा और उन्हें परिष्कृत किया, साथ ही अद्यतन भाषा और उदाहरणों का उपयोग किया।
- इस ढांचे में व्यक्ति और संपत्ति दोनों की प्रतिरक्षा शामिल है।
- निर्दोष दर्शकों से संबंधित परिदृश्यों के लिये विशेष प्रावधान मौजूद हैं (धारा 44)।
- विधि निर्दोष लोगों के जीवन को खतरे में डालकर भी उनकी प्रतिरक्षा करने की अनुमति देता है, जो रक्षक के जीवन को बचाने की प्राथमिकता को दर्शाता है।