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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528

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 05-Dec-2025

विश्व बंधु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 

"यदि आवेदक आरोपपत्र और संज्ञान आदेश को अभिलेख पर रखे बिना केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को चुनौती देता है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के अधीन याचिका पोषणीय नहीं है।" 

न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा 

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

विश्व बंधु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2025)के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा नेभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) कीधारा 528 के अधीन दायर एक आवेदन को खारिज कर दियाजिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की गई थीयह देखते हुए कि आरोप पत्र और संज्ञान आदेश अभिलेख पर नहीं लाए गए थे। 

विश्व बंधु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • आवेदक (विश्व बंधु) नेभारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 467, 468 और 471 के अधीन अपराधों का आरोप लगाते हुएप्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।  
  • चुनौती का प्राथमिक आधार यह था कि समान तथ्यों पर दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करनाटी.टी. एंटनी बनाम केरल राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसारविधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। 
  • राज्य ने आवेदन की स्वीकार्यता के संबंध में प्रारंभिक आक्षेप उठाया और तर्क दिया कि अन्वेषण के प्रक्रम मेंउपचार संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन रिट याचिका दायर करने में निहित हैन किभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 (पूर्व में धारा 482 दण्ड प्रक्रिया संहिता) के अधीन आवेदन करने में। 
  • आवेदक ने न्यायालय के समक्ष आरोपपत्र या संज्ञान आदेश प्रस्तुत किये बिना प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की। 
  • सुनवाई के समय मामले में कोई आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया थाजिसका अर्थ है कि आवेदक ऐसे दस्तावेज़ भौतिक रूप से प्रस्तुत नहीं कर सकता था। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायमूर्ति सिन्हा ने न्यायिक हस्तक्षेप के प्रक्रमो के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित करने के लियेप्रज्ञा प्रांजल कुलकर्णी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025)में उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय का हवाला दिया। 
  • न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने माना है कि संज्ञान लेने से पहले अनुच्छेद 226 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) याआरोप-पत्र को रद्द किया जा सकता हैकिंतु एक बार संज्ञान लेने के बादयदि विधिवत अभिवचन दिया जाए तो प्रथम सूचना रिपोर्ट/आरोप-पत्र और संज्ञान आदेश दोनों को चुनौती देने के लिये भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के अधीन उपचार विद्यमान है।  
  • न्यायालय ने कहा: "वर्तमान आवेदन में की गई प्रार्थनाओं के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि आवेदक ने केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की है और उसने आरोप पत्र के साथ-साथ सक्षम न्यायालय द्वारा आरोप पत्र पर लिये गए संज्ञान को भी प्रस्तुत नहीं किया है।" 
  • न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा: "प्रज्ञा प्रांजल कुलकर्णी (सुप्रा) में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के मद्देनजरचूँकि आरोप पत्र और संज्ञान अभिलेख पर नहीं रखा गया हैइसलिये भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 (पुरानी धारा 482 दण्ड प्रक्रिया संहिता) के प्रावधानों को लागू करके प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द नहीं किया जा सकता है।"  
  • याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि आरोपपत्र और संज्ञान आदेश अभिलेख पर नहीं रखे गए थे। 
  • राज्य ने राम लाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामलेमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की 1989 की पूर्ण पीठ के निर्णय का हवाला दियाजिसमें कहा गया था कि धारा 482 दण्ड प्रक्रिया संहिता (अब धारा 528 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) केवल संज्ञान लेने के बाद न्यायिक कार्यवाही पर लागू होती हैपुलिस अन्वेषण पर नहीं। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 क्या है? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 का स्थान लेती हैतथा न्यायालय प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने तथा न्याय सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को संरक्षित करती है। 
  • यह उपबंध नई शक्तियां प्रदान नहीं करता हैअपितु संहिता के अधीन किसी भी आदेश को प्रभावी करने के लिये आवश्यक आदेश देने के लिये उच्च न्यायालय की पूर्व-विद्यमान अंतर्निहित शक्तियों को मान्यता देता है। 
  • धारा 528 के अंतर्गत निहित शक्तियों का प्रयोग संज्ञेय प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के बाद पुलिस अन्वेषण को रद्द करनेसांविधिक अन्वेषण अधिकारों में हस्तक्षेप करने या प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के अभिकथनों की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाने के लिये नहीं किया जा सकता। 
  • निर्णय विधि यह स्थापित करती है कि इन शक्तियों का प्रयोग कार्यवाही को रद्द करने के लिये किया जा सकता हैजहाँ कोई विधिक बाधा होजहाँ आरोप अपराध न होंया जहाँ आरोपों का समर्थन करने में साक्ष्य असफल हों। 
  • उच्चतम न्यायालय ने धारा 528 के अधीन दायर याचिकाओं पर विचार करने के प्रति आगाह किया हैयदि वैकल्पिक उपचार नहीं अपनाए गए हैंतथा पहली याचिका दायर करते समय उपलब्ध आधारों पर दूसरी याचिका दायर करने पर रोक लगा दी है। 
  • एक व्यावृति प्रावधान के रूप मेंधारा 528 उच्च न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति को असाधारण परिस्थितियों में हस्तक्षेप करने के लिये संरक्षित करती हैजब पूर्ण न्याय के लिये सामान्य उपचार अपर्याप्त होते हैं। 
  • धारा 528 के अधीन शक्तियों के प्रयोग के लिये न्यायिक संयम की आवश्यकता होती हैविशेषकर उन मामलों में जहाँ अन्वेषण प्रारंभिक अवस्था में हो। 
  • ऐसी याचिकाओं पर विचार करते समयन्यायालयों को व्यक्तियों को अनुचित अभियोजन से बचाने तथा वैध अन्वेषण की अनुमति देने के बीच संतुलन बनाना होगाविशेष रूप से आर्थिक अपराधों के लिये 
  • ये शक्तियां दुरुपयोग को रोक सकती हैंजहाँ आपराधिक कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण आशय से या निजी द्वेष से उपजे गुप्त उद्देश्यों से शुरू की जाती है। 
  • न्यायालय सामान्यत: धारा 528 के अधीन आर्थिक अपराध के मामलों में कार्यवाही को रद्द करने के बारे में अधिक सतर्क रहते हैंक्योंकि वे उनकी विशिष्ट प्रकृति और वित्तीय प्रणाली पर उनके व्यापक प्रभाव को समझते हैं।