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सिविल कानून
वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का उपयोग संक्षिप्त बेदखली के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता
«09-Dec-2025
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जीतेन्द्र गोरख मेघ बनाम अपर कलेक्टर एवं अपीलीय अधिकरण "यह अधिनियम एक लाभकारी संविधि है जिसका उद्देश्य कमजोर (वरिष्ठ नागरिक) लोगों की सुरक्षा करना है, तथापि वरिष्ठ नागरिक द्वारा सांविधिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना इसका उपयोग संक्षिप्त बेदखली के साधन के रूप में (दुरुपयोग) नहीं किया जा सकता है।" न्यायमूर्ति रियाज़ चागला और फरहान दुबाश |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
जितेंद्र गोरख मेघ बनाम अपर कलेक्टर और अपीलीय अधिकरण (2025) के मामले में न्यायमूर्ति रियाज छागला और फरहान दुबाश की खंडपीठ ने अधिकरण और अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित बेदखली आदेशों को अपास्त कर दिया, और कहा कि उचित विधिक प्रक्रियाओं का पालन किये बिना संक्षिप्त बेदखली के लिये वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
जितेंद्र गोरख मेघ बनाम अपर कलेक्टर एवं अपीलीय अधिकरण (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के अधीन एक अधिकरण और एक अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित आदेशों के माध्यम से एक 53 वर्षीय व्यक्ति को मुंबई के आलीशान अंधेरी क्षेत्र में स्थित उसके बंगले से बेदखल कर दिया गया।
- यह बंगला याचिकाकर्त्ता के माता-पिता के स्वामित्व में था, जो पास की एक सोसायटी में चार बेडरूम वाले फ्लैट (1600 वर्ग फीट) में पृथक्-पृथक् रहते थे।
- माता-पिता ने अपने पुत्र को बिना कोई पैसा दिये बंगले में रहने की अनुमति दे दी थी।
- माता-पिता कभी भी याचिकाकर्त्ता के साथ उक्त बंगले में नहीं रहे।
- पिता द्वारा अधिनियम 2007 की धारा 5 के अधीन दायर आवेदन में, माता-पिता ने भरणपोषण न मिलने के संबंध में कोई परिवाद दायर नहीं किया और न ही उन्होंने अपने बालकों से कोई वित्तीय सहायता मांगी।
- प्रारंभिक आवेदन में एकमात्र तर्क यह दिया गया था कि वरिष्ठ नागरिक मधुमेह, गठिया, पैर दर्द से पीड़ित थे तथा उन्हें चलने में कठिनाई होती थी, इसलिये उन्हें परिसर के भूतल पर रहने की आवश्यकता थी।
- वरिष्ठ नागरिक आर्थिक रूप से संपन्न थे और उनके पास आवासीय और वाणिज्यिक दोनों तरह की कई अचल संपत्तियाँ थीं।
- यदि याचिकाकर्त्ता को परिसर से बेदखल कर दिया गया तो उसके सिर पर कोई अन्य छत नहीं रहेगी।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- पीठ ने कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 एक लाभकारी अधिनियम है, जिसका उद्देश्य कमजोर वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है और विधि का पालन किये बिना बेदखली के लिये इसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने कहा कि अधिनियम किसी वरिष्ठ नागरिक को धारा 5 के अधीन आवेदन दायर करने का अधिकार तभी देता है जब वह अपनी कमाई या संपत्ति से अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हो।
- न्यायालय ने कहा कि धारा 5 में विहित है कि वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण के लिये बालकों का दायित्त्व ऐसे वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं तक विस्तारित है, जिससे वे सामान्य जीवन जी सकें।
- पीठ ने पाया कि वरिष्ठ नागरिक ने आवेदन में भरणपोषण का कोई दावा नहीं किया है, जिससे यह अधिनियम की धारा 5(2) के अधीन अनुपोषणीय है।
- न्यायालय ने कहा कि न तो अधिकरण और न ही अपीलीय अधिकरण ने आवेदन में दिये गए कथनों पर विचार किया और न ही उन पर अपना ध्यान दिया।
- पीठ ने पाया कि विषय-वस्तु के आधार को अस्पष्ट कथन के रूप में प्रस्तुत करना उचित है, जिसमें कोई विवरण या विवरण नहीं है।
- पीठ ने कहा कि चूँकि वरिष्ठ नागरिक ने कभी भी संबंधित परिसर में निवास नहीं किया था, इसलिये वहां रहने से उनका कोई भावनात्मक लगाव नहीं था।
- तदनुसार, न्यायालय ने अधिकरण के बेदखली आदेश और अपीलीय अधिकरण के आदेश दोनों को अपास्त कर दिया ।
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 क्या है?
के बारे में:
- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण हेतु अधिक प्रभावी उपबंध प्रदान करने हेतु अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार, "वरिष्ठ नागरिक" वह व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का हो गया है।
प्रमुख उपबंध:
- भरणपोषण का दायित्व (धारा 4-18): बच्चों का अपने माता-पिता का भरणपोषण करना विधिक दायित्त्व है, तथा नातेदारों का निःसंतान वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण करना दायित्त्व है।
- अधिकरणों की स्थापना (धारा 7): राज्य सरकारों को भरणपोषण के दावों पर निर्णय लेने के लिये भरणपोषण अधिकरणों की स्थापना करनी होगी।
- वृद्धाश्रम की स्थापना (धारा 19): राज्य सरकारों को प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम स्थापित करना आवश्यक है।
- चिकित्सा सहायता (धारा 20): वरिष्ठ नागरिकों के लिये चिकित्सा देखरेख का उपबंध।
- जीवन और संपत्ति की संरक्षा (धारा 21-23): वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के उपाय।