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आपराधिक कानून
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के अधीन अतिरिक्त अभियुक्तों को समन करना
« »06-Dec-2025
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नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य "दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दोषी व्यक्ति विधि की प्रक्रिया से बच न सके, जिससे यह सूक्ति "judex damnatur cum nocens absolvitur" (जब दोषी को दोषमुक्त कर दिया जाता है तब न्यायाधीश स्वयं निंदा का पात्र होता है) ।" न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंगमेइकापम कोटिस्वर सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया और विचारण के दौरान सामने आए साक्ष्यों के आधार पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 358) के अधीन अतिरिक्त अभियुक्तों को समन की अनुमति दे दी।
नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- 25 मार्च 2021 को अपीलकर्त्ता नीरज कुमार ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 187/2021 दर्ज कराई, जिसमें अभिकथित किया गया कि उसकी बहन निशि को उसके पति राहुल ने उसके वैवाहिक घर (ससुराल) पर गोली मार दी थी।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) उनकी नौ वर्षीय भतीजी सृष्टि से प्राप्त सूचना के आधार पर दर्ज की गई, जिसने उन्हें बताया कि उसके पिता ने उसकी माता को गोली मार दी थी।
- मृतका को पहले बुलंदशहर के सरकारी अस्पताल और फिर नोएडा के कैलाश अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे गोली लगने से हुई चोटों का इलाज कराया गया।
- उपचार के दौरान, मृतक के कथन दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन दो मौकों पर अभिलिखित किये गए - 25 मार्च 2021 और 18 अप्रैल 2021, दोनों बार वीडियो रिकॉर्डिंग की गई।
- 25 मार्च 2021 को दिए गए अपने पहले कथन में उसने अपने पति राहुल का नाम उस व्यक्ति के रूप में लिया जिसने उसे गोली मारी थी।
- 18 अप्रैल 2021 को दिए गए अपने दूसरे कथन में, उसने आगे आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी माता राजो उर्फ़ राजवती, भाई शैतान उर्फ़ विनीत और बहनोई गब्बर के उकसावे पर उसे गोली मार दी थी।
- 15 मई 2021 को मृतका की मृत्यु हो गई।
- 20 मई 2021 को अपीलकर्त्ता ने SHO के समक्ष एक और परिवाद दर्ज कराया, जिसमें मृतका द्वारा अपने कथनों में नामजद किये गए उकसाने वालों (पति के नातेदारों) के विरुद्ध विधिक कार्रवाई का अनुरोध किया गया।
- 16 जुलाई 2021 को दायर आरोपपत्र में केवल राहुल (पति) का नाम धारा 302 और 316 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दर्ज किया गया है, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को दोषमुक्त कर दिया गया है।
- विचारण के दौरान, अपीलकर्त्ता से 28 मार्च 2022 को PW-1 के रूप में पूछताछ की गई, और अवयस्क पुत्री सृष्टि से 12 जुलाई 2022 को PW-2 के रूप में पूछताछ की गई।
- PW-2 ने परिसाक्ष्य में कहा कि उसके पिता ने उसकी दादी, चाचा और चाची के पति के उकसावे पर उसकी माता को गोली मार दी थी।
- इन साक्ष्यों और मृतक के कथनों के आधार पर अभियोजन पक्ष ने अतिरिक्त अभयुक्तों को समन के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के अधीन आवेदन प्रस्तुत किया।
- विचारण न्यायालय ने 3 अगस्त 2023 को आवेदन को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि अभिलेख पर विद्यमान सामग्री धारा 319 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन असाधारण शक्ति का प्रयोग करने के लिये अपर्याप्त थी।
- अपीलकर्त्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष दाण्डिक पुनरीक्षण संख्या 4729/2023 दायर की, जिसे भी 22 अप्रैल 2024 को खारिज कर दिया गया।
- उच्च न्यायालय ने माना कि मृतक के कथनों को मृत्युकालिक कथन नहीं माना जा सकता, क्योंकि मृत्यु काफी समय बाद हुई थी, PW-1 प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी, तथा पPW-2 ने प्रतिपरीक्षा में स्वीकार किया कि वह गोलियों की आवाज सुनने के बाद ही घटनास्थल पर पहुँची थी।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 एक असाधारण शक्ति है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी दोषी व्यक्ति न्याय से बच न सके, तथा इसके लिये प्रथम दृष्टया संलिप्तता को दर्शाने वाले ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है, जो आरोप विरचित करने से अधिक संतोषजनक हो, किंतु दोषसिद्धि के मानक से कम हो।
- न्यायालय ने पाया कि PW-1 के परिसाक्ष्यसे प्रथम दृष्टया प्रत्यर्थियों की सक्रिय भागीदारी और उकसावे का संकेत मिलता है, तथा स्पष्ट किया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) कोई विश्वकोश नहीं है, जिसमें हर सूक्ष्म विवरण की आवश्यकता होती है।
- PW-2 के परिसाक्ष्य पर, न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय ने लघु-विचारण का संचालन करते समय यह निष्कर्ष निकालने में त्रुटी की कि वह प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी, प्रतिपरीक्षा पर विश्वास करते हुए, न्यायालय ने कहा कि समन के प्रक्रम में यह दृष्टिकोण अग्राह्य था।
- न्यायालय ने इस तर्क को नामंजूर कर दिया कि PW-2 को कुछ सिखाया गया था, तथा यह भी कहा कि उसने धारा 161 के अपने कथन में भी प्रत्यर्थियों का नाम स्पष्ट रूप से बताया था, तथा स्पष्ट किया कि क्या उसने वास्तव में गोलीबारी देखी थी या उसके तुरंत बाद वहाँ पहुँची थी, यह मामला विचारण में ही अवधारित किया जाएगा।
- मृतक के कथनों पर न्यायालय ने कहा कि वे स्पष्ट रूप से मृत्युकालिक कथनों के रूप में साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के अंतर्गत आते हैं, तथा उच्च न्यायालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि सारवान् समय के बाद हुई मृत्यु उन्हें इस प्रकार अयोग्य बनाती है।
- न्यायालय ने दोहराया कि मृत्युकालिक कथन मजिस्ट्रेट के समक्ष अभिलिखित कराने की आवश्यकता नहीं है, डॉक्टर के प्रमाणीकरण का अभाव उन्हें अग्राह्य नहीं बनाता है, तथा किसी भी विसंगति की परीक्षा विचारण के दौरान की जानी चाहिये, न कि प्रारंभिक समन प्रक्रम में।
- न्यायालय ने पाया कि अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री - मृतक के कथनों के साथ PW-1 और पीडब्लूPW-2 के कथन - से प्रथम दृष्टया प्रत्यर्थियों की सहभागिता का पता चलता है, तथा धारा 319 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन उन्हें समन करने के लिये पर्याप्त आधार विद्यमान है।
- अपील को स्वीकार कर लिया गया, उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दिया गया, तथा पक्षकारों को शीघ्र विचारण के लिये 8 जनवरी 2026 को विचारण न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का निदेश दिया गया।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 क्या है?
- यह उपबंध किसी अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 358 में निहित है।
- यह "judex damantur cum nocens absolvitur" के सिद्धांत पर आधारित है , जिसका अर्थ है कि जब दोषी को दोषमुक्त कर दिया जाता है तब न्यायाधीश स्वयं निंदा का पात्र होता है। इस धारा में कहा गया है कि-
- जहाँ किसी अपराध की जांच या विचारण के दौरान साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति में, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये ऐसे व्यक्ति का अभियुक्त के साथ विचारण किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध उस अपराध के लिये जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, कार्यवाही कर सकता है।
- जहाँ ऐसा व्यक्ति न्यायालय में हाजिर नहीं है वहाँ पूर्वोक्त प्रयोजन के लिये उसे मामले की परिस्थितियों की अपेक्षानुसार, गिरफ्तार या समन किया जा सकता है ।
- कोई व्यक्ति जो गिरफ्तार या समन न किये जाने पर भी न्यायालय में हाजिर है, ऐसे न्यायालय द्वारा उस अपराध के लिये, जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है. जांच या विचारण के प्रयोजन के लिये निरुद्ध किया जा सकता है।
- जहाँ न्यायालय उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करता है, वहाँ—
- उस व्यक्ति के बारे में कार्यवाही फिर से प्रारंभ की जाएगी और साक्षियों को फिर से सुना जाएगा;
- खंड (क) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मामले में ऐसे कार्यवाही की जा सकती है, मानो वह व्यक्ति उस समय अभियुक्त व्यक्ति था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान किया था जिस पर जांच या विचारण प्रारंभ किया गया था।
- धारा 319 के आवश्यक तत्त्व:
- किसी अपराध की जांच या विचारण हो रहा है।
- साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये उस व्यक्ति पर अभियुक्त के साथ मिलकर विचारण चलाया जाना चाहिये।