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सिविल कानून
दिल्ली उच्च न्यायालय का इंडिगो क्षतिपूर्ति आदेश: यात्री अधिकार और विमानन संकट प्रबंधन
«11-Dec-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
11 दिसंबर, 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए इंडिगो को व्यापक उड़ान व्यवधानों से प्रभावित यात्रियों को तत्काल प्रतिकर देने का निदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इस संकट पर गंभीर चिंता व्यक्त की, जिसके कारण कई यात्री फंसे रह गए, और व्यवधान की अवधि के दौरान प्रतिस्पर्धी एयरलाइनों के हवाई किरायों में अभूतपूर्व वृद्धि पर प्रश्न उठाया।
न्यायालय के हस्तक्षेप का आधार क्या था?
व्यापक स्तर पर उड़ान व्यवधान:
- इंडिगो को परिचालन में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ा, जिसके कारण कई यात्री हवाई अड्डों पर फंसे रह गए।
- यात्रियों को न्यायालय द्वारा वर्णित "पक्षद्रोही कर्मचारी" स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसमें कई लोगों को पर्याप्त समर्थन या जानकारी के बिना लंबे समय तक रहना पड़ा।
हवाई किराए में बढ़ोतरी की चिंताएँ:
- न्यायालय ने इस बात पर प्रश्न उठाए कि संकट के दौरान अन्य एयरलाइनों के हवाई किराए अभूतपूर्व स्तर तक कैसे बढ़ गए।
- जो टिकट पहले ₹4,000-₹5,000 में उपलब्ध थे, उनकी कीमत कथित तौर पर बढ़कर ₹25,000-₹30,000 हो गई है।
- पीठ ने प्रश्न किया: "किराया 39,000-40,000 रुपए तक कैसे पहुँच सकता है? ऐसा कैसे हो सकता है?"
न्यायालय ने किस विधिक ढाँचे पर विश्वास किया?
प्रतिकर संबंधी नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) का परिपत्र:
- न्यायालय ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) द्वारा 6 अगस्त, 2010 को जारी एक परिपत्र का हवाला दिया, जिसमें बोर्डिंग से इंकार, उड़ान रद्द होने और देरी के मामलों में सुविधाओं और प्रतिकर से संबंधित प्रावधान थे।
- प्रत्यर्थी 3 (इंडिगो) को विशेष रूप से इस नियामक ढाँचे का कठोरता से पालन करने का निदेश दिया गया था।
न्यायालय की व्याख्या:
- पीठ ने इस बात पर बल दिया कि प्रतिकर की बाध्यताएँ केवल रद्द की गई उड़ानों तक ही सीमित नहीं हैं।
- न्यायालय ने कहा, "परिपत्र की मौजूदगी के अतिरिक्त, यदि क्षतिपूर्ति के संदाय के लिये कोई अन्य उपाय उपलब्ध हैं, तो ऐसी स्थिति में अधिकारियों द्वारा उन्हें भी सुनिश्चित किया जाएगा।"
न्यायालय के विशिष्ट निदेश क्या थे?
तत्काल प्रतिकर प्रक्रिया:
- न्यायालय ने इंडिगो को आदेश दिया कि वह "प्रतिकर का संदाय शुरू करे।" प्रतिकर में न केवल उड़ान रद्द होने के नुकसान की भरपाई होनी चाहिये, अपितु यात्रियों द्वारा झेली गई "अन्य परेशानियों" को भी सम्मिलित किया जाना चाहिये।
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को प्रतिकर के प्रावधानों का कठोरता से पालन सुनिश्चित करने का निदेश दिया गया था।
सरकारी हस्तक्षेप को स्वीकार किया गया:
- अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने न्यायालय को सूचित किया कि सरकार ने किराया सीमा लागू करके पहले ही हस्तक्षेप कर दिया है।
- यद्यपि, न्यायालय ने प्रश्न उठाया कि इस तरह के संकट प्रबंधन उपायों को पहले सक्रिय क्यों नहीं किया गया।
समयरेखा:
- इस मामले को आगे की सुनवाई 22 जनवरी, 2026 को होगी।
इसके व्यापक निहितार्थ क्या हैं?
यात्री अधिकारों का संरक्षण:
- यह निर्णय इस बात को पुष्ट करता है कि यात्रियों के अधिकारों को परिचालन सुविधा के अधीन नहीं किया जा सकता।
- एयरलाइंस का कर्त्तव्य है कि वे संविदात्मक दायित्त्वों से परे जाकर भी जिम्मेदारी निभाएं।
संकट प्रबंधन में विफलताएँ:
- न्यायालय की यह टिप्पणी कि "लाखों यात्री बिना किसी देखभाल के छोड़ दिये गए" आकस्मिक योजना में प्रणालीगत विफलताओं की ओर इशारा करती है।
- "ऐसी स्थिति केवल यात्रियों को होने वाली असुविधा तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है, क्योंकि आज के समय में यात्रियों की तेज आवाजाही अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है," पीठ ने टिप्पणी की।
नियामकीय निगरानी संबंधी प्रश्न:
- न्यायालय के निदेश से विमानन संकटों की रोकथाम और प्रबंधन में विनियामक प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ सामने आती हैं।
- प्रतिस्पर्धी एयरलाइनों पर हवाई किराए में अचानक वृद्धि के बारे में प्रश्न बाजार में संभावित हेरफेर या संकट की अवधि के दौरान नियामक हस्तक्षेप की कमी को दर्शाता है।
इस निर्णय से कौन-कौन सी चुनौतियाँ सामने आती हैं?
कार्यान्वयन की जटिलता:
- संभावित रूप से "लाखों यात्रियों" की पहचान करना और उन्हें प्रतिकर देना महत्त्वपूर्ण रसद संबंधी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
- विभिन्न प्रकार की "पीड़ा" के लिये मानक नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) प्रावधानों से परे उचित प्रतिकर के स्तर को अवधारित करने के लिये स्पष्ट मानदंडों का अभाव है।
पूर्व निर्णय स्थापित करना:
- यह निर्णय भविष्य में विमानन व्यवधानों के मामले में विद्यमान नियामक ढाँचे से परे प्रतिकर की अपेक्षाएँ स्थापित कर सकता है।
- अन्य एयरलाइनों को भी इसी तरह की न्यायिक जांच का सामना करना पड़ सकता है यदि उन्हें बड़े पैमाने पर परिचालन संबंधी विफलताओं का सामना करना पड़ता है।
- 22 जनवरी, 2026 को जब यह मामला फिर से न्यायालय में आएगा, तब विमानन क्षेत्र प्रतिकर के मानकों, नियामक अपेक्षाओं और संकट प्रबंधन प्रोटोकॉल पर स्पष्टता की प्रतीक्षा कर रहा है। सफलता के लिये यात्रियों की वैध सुरक्षा और परिचालन संबंधी वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक होगा, जिससे उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ भारत में हवाई यात्रा को सुलभ और किफायती बनाए रखा जा सके।
आर्थिक प्रभाव:
- वर्धित प्रतिकर संबंधी बाध्यताओं से उन एयरलाइनों के परिचालन लागत में वृद्धि हो सकती है जो पहले से ही कम लाभ पर चल रही हैं।
- यात्रियों की सुरक्षा और विमानन क्षेत्र की व्यवहार्यता के बीच संतुलन बनाए रखना निरंतर नीतिगत चुनौतियाँ पेश करता है।
इस निर्णय से किन सुधारों को गति मिल सकती है?
अद्यतन प्रतिकर ढाँचा:
- नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) का 2010 का परिपत्र भारत के विमानन परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों से पहले का है।
- समकालीन परिचालन संबंधी वास्तविकताओं और उपभोक्ता अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक पुनर्विलोकन आवश्यक हो सकता है।
संकट प्रबंधन प्रोटोकॉल:
- एयरलाइनों के लिये अनिवार्य संकट प्रबंधन योजनाएँ, जिनमें यात्रियों के साथ संवाद, वैकल्पिक व्यवस्थाएं और अत्यधिक तनावपूर्ण स्थितियों के लिये कर्मचारियों का प्रशिक्षण सम्मिलित है।
- जब व्यवधान कई उड़ानों को प्रभावित करते हैं तो स्वचालित किराया सीमा के लिये विनियामक ट्रिगर।
वर्धित नियामक शक्तियां:
- परिचालन संकटों के दौरान तत्काल उपचारात्मक उपाय लागू करने के लिये नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को स्पष्ट अधिकार दिया गया है, साथ ही प्रणाली-व्यापी व्यवधानों के प्रबंधन के लिये एयरलाइंस, हवाई अड्डों और नियामकों के बीच समन्वय तंत्र भी स्थापित किये गए हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप भारत में विमानन उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। तत्काल प्रतिकर का आदेश देकर और एयरलाइन के संकट प्रबंधन तथा व्यापक बाजार प्रतिक्रिया पर प्रश्न उठाकर, न्यायालय ने यह संकेत दिया है कि यात्रियों के अधिकार विमानन संचालन के केंद्र में होने चाहिये।
इस निर्णय से यह मूलभूत प्रश्न उठता है कि क्या भारत का विमानन नियामक ढाँचा दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते विमानन बाजार में बड़े पैमाने पर होने वाली बाधाओं को संभालने के लिये पर्याप्त है। आर्थिक प्रभाव का उल्लेख इस बात को स्वीकार करता है कि विमानन विश्वसनीयता केवल उपभोक्ता का विवाद्यक नहीं है, अपितु बुनियादी ढाँचे से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है।