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सिविल कानून
भारत की अंग प्रत्यारोपण प्रणाली में विधिक अनिश्चितताएँ: मस्तिष्क तंत्रिका मृत्यु की दुविधा
«08-Dec-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तीन दशकों से भी अधिक समय से लागू होते हुए भी, भारत में 2023 तक प्रति दस लाख जनसंख्या पर केवल 0.77 अंगदान दर्ज किये गए—जो अनुमानित वार्षिक पाँच लाख प्रत्यारोपण की आवश्यकता से बहुत कम है। इन चुनौतियों का मूल कारण ब्रेनस्टेम डेथ (BSD) प्रमाणन को लेकर स्पष्टता का अभाव है, जिससे चिकित्सा पेशेवरों, परिवारों और विधिक अधिकारियों के लिये भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
अंग प्रत्यारोपण के प्रकार
1994 के अधिनियम में दो श्रेणियों को मान्यता दी गई है:
- जीवित दान (Live Donations): ऐसे अंग जो पूर्णतः स्वस्थ जीवित व्यक्तियों से निकाले जाते हैं तथा ग्रहणकर्ताओं में प्रत्यारोपित किये जाते हैं। चूँकि दाता इन अंगों की स्थायी कार्यक्षमता खो देता है, अतः इस प्रक्रिया हेतु समुचित विधिक अनुमोदन आवश्यक है।
- मृतक दान (Deceased Donations): ऐसे अंग जो उन व्यक्तियों से प्रत्यारोपण हेतु प्राप्त किये जाते हैं जिनके मस्तिष्क तंत्रिका कार्य (Brainstem Functions) अपरिवर्तनीय रूप से समाप्त हो चुके हों, यद्यपि उनके अन्य महत्त्वपूर्ण अंग चिकित्सकीय हस्तक्षेप के कारण क्रियाशील बने रहें। इस प्रकार के प्रत्यारोपण की वैधता उचित मस्तिष्क तंत्रिका मृत्यु प्रमाणन (BSD Certification) पर निर्भर करती है — जो वर्तमान विधिक अनिश्चितताओं का मुख्य विषय है
मस्तिष्क तंत्रिका मृत्यु (Brainstem Death – (BSD)) क्या है?
- मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के अंतर्गत BSD को मृत्यु के एक विधिक रूप के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- यह वह अवस्था है जब हृदय एवं श्वसन क्रिया कृत्रिम/चिकित्सकीय सहायता से यथावत बनी रहने के बावजूद मस्तिष्क क्रियाओं (विशेषतः मस्तिष्क तंत्रिका कार्य) का स्थायी एवं अपरिवर्तनीय लोप हो जाता है।
- अधिनियम में मस्तिष्क-तंत्र के कार्य की अपरिवर्तनीय समाप्ति का अवधारण करने के लिये योग्य चिकित्सकों को शामिल करते हुए विशिष्ट प्रमाणन प्रक्रियाओं को अनिवार्य किया गया है।
प्रमुख विधिक अनिश्चितताएँ क्या हैं?
विवाद्यक 1: BSD की परिभाषा में अस्पष्टता
- जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 में मृत्यु को "जीवन के सभी साक्ष्यों का स्थायी रूप से लुप्त हो जाना" के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि BSD में हृदय की निरंतर गतिविधि के साथ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली का बंद हो जाना सम्मिलित है।
- कोई स्पष्ट प्रावधान इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि 1969 अधिनियम के अधीन मृत्यु रजिस्ट्रीकरण के लिए BSD प्रमाणीकरण पर्याप्त है या नहीं, जिससे समतुल्यता के बारे में विधिक संदेह उत्पन्न होता है।
विवाद्यक 2: मृत्यु प्रमाण पत्र का समय
महत्वपूर्ण प्रश्न: मृत्यु का आधिकारिक समय कब अभिलिखित किया जाना चाहिये - जब BSD प्रमाणित हो या जब पूर्ण हृदयाघात हो?
- वर्तमान में अधिकांश अस्पतालों में परम्परागत मृत्यु प्रमाण-पत्र केवल हृदयाघात के बाद ही जारी किया जाता है, भले ही BSD प्रमाणित हो चुका हो।
- इससे अनिश्चितता उत्पन्न होती है, जिससे चिकित्सा संबंधी निर्णय लेने, विधिक दस्तावेज़ीकरण, बीमा दावों और आघात के मामलों में आपराधिक दायित्त्व पर प्रभाव पड़ता है।
मुद्दा 3: सम्मति और जीवन समर्थन
दुविधा: यदि BSD प्रमाणन के बाद परिवार सम्मति से इंकार कर दे, तो क्या जीवन रक्षक प्रणाली जारी रहनी चाहिये? विधि में इन विवाद्यकों पर स्पष्टता का अभाव है:
- क्या डॉक्टर BSD के बाद परिवार की सम्मति के बिना जीवन रक्षक प्रणाली बंद कर सकते हैं?
- जब परिवार BSD निदान से असहमत हों तो अस्पताल की ज़िम्मेदारियाँ क्या होंगी?
- पारिवारिक सम्मति प्राप्त करने की समय सीमा क्या होंगी?
BSD प्रमाणन के लिये कौन से फॉर्म आवश्यक हैं?
- फॉर्म 10 (1994 अधिनियम): प्रमाणन की सटीक तिथि और समय निर्दिष्ट करने वाला BSD प्रमाणपत्र। प्रत्यारोपण करने वाले प्रत्येक ICU सुविधा वाले अस्पताल में इसे प्रमाणित किया जाना चाहिये।
- फॉर्म 8 (जन्म और मृत्यु अधिनियम, 1969): निकट संबंधियों से सम्मति पत्र जिसमें कहा गया हो कि "मुझे सूचित किया गया है कि मेरे नातेदार को ब्रेनस्टेम मृत/मृत घोषित कर दिया गया है।" दोहरी भाषा के कारण यह भ्रम उत्पन्न होता है कि क्या केवल BSD ही पर्याप्त है।
अस्पताल रजिस्ट्रीकरण आवश्यकताएँ क्या हैं?
- वर्तमान अंतर: BSD प्रमाणन और अंग संग्रहण केवल रजिस्ट्रीकृत प्रत्यारोपण अस्पतालों या गैर-प्रत्यारोपण अंग पुनर्प्राप्ति केंद्रों में ही होता है। यद्यपि, आघात या रक्तस्राव के कारण BSD किसी भी ICU में हो सकता है।
- परिणाम: इससे दाताओं की संख्या गंभीर रूप से सीमित हो जाती है, क्योंकि गैर-रजिस्ट्रीकृत ICU सुविधाओं में कई संभावित दाताओं को आवश्यक चिकित्सा अवसंरचना होते हुए भी BSD प्रयोजनों के लिये प्रमाणित नहीं किया जा सकता है।
किन संशोधनों की आवश्यकता है?
1. BSDमृत्यु के समतुल्यता को स्पष्ट करें:
- मृत्यु रजिस्ट्रीकरण के लिये पर्याप्त रूप से फॉर्म 10 में BSD प्रमाणन को स्पष्ट रूप से अनुमोदित करें। मृत्यु का समय तब अभिलिखित करें जब BSD प्रमाणित हो, न कि हृदय गति रुकने पर।
2. प्रमाणित डॉक्टरों के लियेपात्रता मानदंड का विस्तार करें:
- यह अनिवार्यता हटा दी जाए कि प्रमाणित करने वाले डॉक्टरों को मृतक की अंतिम बीमारी के दौरान उसकी देखभाल करनी होगी।
- अस्पतालों में किसी भी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सक को उचित प्रोटोकॉल का पालन करने के बाद BSD प्रमाणित करने का अधिकार दिया जाना चाहिये।
3. सभीICU सुविधाओं में BSD प्रमाणीकरण की अनुमति:
- ICU सुविधाओं वाले सभी अस्पतालों में BSD प्रमाणीकरण की अनुमति दी जाए, यहाँ तक कि प्रत्यारोपण कार्यक्रमों के बिना भी।
- इससे संभावित दाता की पहचान में महत्त्वपूर्ण विस्तार होगा तथा अंग पुनः प्राप्ति की प्रक्रिया में सुधार होगा।
4. समय औरसम्मति संबंधी अस्पष्टताओं का समाधान करें:
- मृत्यु प्रमाण पत्र कब जारी किया जाना चाहिये, क्या परिवार की सम्मति के बिना BSD के बाद जीवन समर्थन बंद किया जा सकता है, तथा परिवार द्वारा निर्णय लेने की समय सीमा के बारे में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करें।
निष्कर्ष
भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 0.77 दान और प्रतिवर्ष पाँच लाख प्रत्यारोपण की आवश्यकता के बीच का अंतर विधिक स्पष्टता की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। मुख्य चुनौती ब्रेनस्टेम मृत्यु प्रमाणन के इर्द-गिर्द घूमती है—जिसे व्यापक मृत्यु रजिस्ट्रीकरण विधियों के साथ पर्याप्त रूप से एकीकृत नहीं किया गया है।