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पर्यावरणीय विधि
टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ (2024)
«09-Dec-2025
परिचय
यह ऐतिहासिक निर्णय कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) के भीतर गंभीर पर्यावरणीय क्षरण को संबोधित करता है, जहाँ अवैध बुनियादी ढाँचे के विकास और बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और लोक न्यास सिद्धांत का उल्लंघन किया है।
- उच्चतम न्यायालय ने 6 मार्च, 2024 को यह निर्णय सुनाया, जिसमें मानव-केंद्रित विचारों की अपेक्षा पर्यावरण न्याय के लिये पारिस्थितिकी-केंद्रित (प्रकृति-केंद्रित) दृष्टिकोण पर बल दिया गया।
- इस मामले ने राजनीतिक और नौकरशाही पदाधिकारियों के बीच सांठगांठ को उजागर किया, जिसके कारण भारत के प्रमुख बाघ अभयारण्यों में से एक को विनाशकारी क्षति पहुँची।
तथ्य
- यह कार्यवाही दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में व्यापक अवैध क्रियाकलाप के संबंध में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेने से शुरू हुई।
- केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की रिपोर्ट में पुलों, भवनों और सड़कों के बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण का प्रकटन हुआ, जिसमें कंडी रोड का सुधार कार्य भी सम्मिलित है, जो अपेक्षित प्रशासनिक या वित्तीय अनुमोदन के बिना किया गया।
- पाखरौ टाइगर सफारी स्थल के लिये बड़े पैमाने पर अवैध वृक्षों की कटाई की गई, जिसमें लगभग 6,053 वृक्षों को काट दिया गया, जो कि 163 वृक्षों की अनुमत सीमा से बहुत अधिक था।
- तत्कालीन माननीय वन मंत्री और प्रभागीय वन अधिकारी (DFO) किशन चंद ने सतर्कता विभाग और प्रधान मुख्य वन संरक्षक की सिफारिशों को खारिज कर करोड़ों रुपए के अनधिकृत कार्यों को अंजाम दिया।
- अनियमितताओं में सम्मिलित प्रभागीय वन अधिकारी (DFO) को पूर्व में अवचार के होते हुए भी संरक्षण दिया गया और पदोन्नति दी गई, जिससे सत्ता का व्यवस्थित दुरुपयोग उजागर हुआ।
- यद्यपि पाखरौ में टाइगर सफारी का प्रस्ताव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन इसका निर्माण अंतिम सांविधिक मंजूरी मिलने से पहले ही शुरू हो गया था और इसका उद्देश्य घायल या संघर्षरत बाघों के पुनर्वास के बजाय चिड़ियाघरों से जानवरों को लाना था।
सम्मिलित विवाद्यक
- क्या कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (CTR) में राजनीतिक और नौकरशाही पदाधिकारियों के बीच सांठगांठ से संचालित अवैध निर्माण और बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई ने लोक न्यास सिद्धांत और पर्यावरण विधियों का उल्लंघन किया है?
- क्या बफर क्षेत्रों में टाइगर सफारियों के लिये मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों से जानवरों की आपूर्ति की अनुमति देने वाले 2019 राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) दिशानिर्देश विधिक रूप से वैध थे और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अध्याय 4ख के अधीन इन-सीटू बाघ संरक्षण अधिदेश के अनुरूप थे?
- संरक्षित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति को दूर करने के लिये कौन से पुनर्स्थापनात्मक उपाय और जवाबदेही तंत्र लागू किये जाने चाहिये?
न्यायालय की टिप्पणियां
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पर्यावरण न्याय मानव-केंद्रित होने के बजाय पारिस्थितिकी- केंद्रित (प्रकृति- केंद्रित) होना चाहिये, जो संरक्षण मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है।
- न्यायालय ने दोषी अधिकारियों के कार्यों को लोक न्यास सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन पाया, तथा कहा कि राज्य वनों और प्राकृतिक संसाधनों को जनता के न्यासी के रूप में रखता है तथा वाणिज्यिक या निजी उपयोग के लिये उनके कटाव की अनुमति नहीं दे सकता।
- न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार एक राजनेता और वन अधिकारी के बीच सांठगांठ ने राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिये पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचाया, जिससे जनता के विश्वास का व्यवस्थित दुरुपयोग प्रदर्शित हुआ।
- न्यायालय ने 2019 राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) दिशानिर्देशों के प्रावधानों को रद्द कर दिया, जो चिड़ियाघर में पाले गए जानवरों को बफर जोन में टाइगर सफारियों में स्थानांतरित करने की अनुमति देते थे, और उन्हें बाघ संरक्षण के उद्देश्य के पूरी तरह विपरीत घोषित किया।
- न्यायालय ने 2016 के दिशानिर्देशों के कठोर आदेश को बहाल कर दिया कि केवल घायल, संघर्षरत या अनाथ बाघों को ही ऐसे केंद्रों में प्रदर्शित किया जा सकता है, जो पुनः वन्यीकरण के लिये अयोग्य हों।
- न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय विधिशास्त्र (चोरजो फैक्ट्री केस सहित) से प्राप्त पारिस्थितिक पुनर्स्थापन के सिद्धांत को लागू किया, तथा कहा कि राज्य को न केवल भविष्य में होने वाले नुकसान को रोकना चाहिये, अपितु अवैध कृत्यों के सभी परिणामों को भी समाप्त करना चाहिये।
- पखरौ सफारी के लिये स्थल चयन मानदंडों का पालन न किये जाने को देखते हुए, न्यायालय ने 80% पूर्ण स्थापना में हस्तक्षेप करने से परहेज किया, लेकिन पशु स्रोत के लिये 2016 के दिशानिर्देशों का कठोरता से पालन करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि वास्तव में संकटग्रस्त बाघों के लिये उचित पुनर्वास सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिये पाखरौ सफारी स्थल के निकट एक बचाव केंद्र स्थापित किया जाए।
- न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को आदेश दिया कि वह पर्यावरणीय क्षति का आकलन और मात्रा निर्धारित करने, उत्तरदायी व्यक्तियों और अधिकारियों की पहचान करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये एक समिति गठित करे कि बहाली की लागत दोषी व्यक्तियों से वसूल की जाए।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि दोषी अधिकारियों के विरुद्ध CBI जांच और अनुशासनात्मक कार्यवाही की उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वयं सक्रिय निगरानी की जाए, जिससे सत्ता के घोर दुरुपयोग के लिये जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
निष्कर्ष
- यह ऐतिहासिक निर्णय पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में मानव-केंद्रित विकासात्मक क्रियाकलापों पर पर्यावरण संरक्षण और संरक्षण सिद्धांतों की सर्वोच्चता को पुष्ट करता है।
- उच्चतम न्यायालय ने अपीलों को खारिज कर दिया, किंतु कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के प्रभावी प्रबंधन और पुनरुद्धार के लिये व्यापक निदेश जारी किये।
- यह निर्णय पर्यावरण विधियों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के लिये मजबूत जवाबदेही तंत्र स्थापित करता है, तथा उत्तरदायी व्यक्तियों से पुनर्स्थापन लागत की वसूली अनिवार्य करता है।
- निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि बाघ संरक्षण में चिड़ियाघर में पाले गए पशु प्रदर्शनियों के माध्यम से वाणिज्यिक शोषण की बजाय वास्तविक संकटग्रस्त पशुओं के यथास्थान संरक्षण और पुनर्वास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।