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वाणिज्यिक विधि
भारती एयरटेल लिमिटेड और अन्य बनाम विजयकुमार वी. अय्यर और अन्य (2024)
«04-Dec-2025
परिचय
उच्चतम न्यायालय का यह ऐतिहासिक मामला दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के अधीन शुरू की गई कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान मुजरा दावे के अधिकार से संबंधित है। यह मामला 2020 की सिविल अपील संख्या 3088-3089 से उत्पन्न हुआ और इस बात की जांच की गई कि क्या कॉर्पोरेट देनदार का कोई देनदार, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू होने और धारा 25(2)(क) के लागू होने पर, पृथक् संव्यवहार से उत्पन्न होने वाले क्रॉस-दावों को एकतरफा समायोजित करने का अधिकार रखता है।
- यह निर्णय ऋण स्थगन अवधि के दौरान अनुमेय मुजरा के दायरे को स्थापित करता है, तथा दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता के मुख्य उद्देश्य - पुनर्गठन और पुनरुद्धार के साथ लेनदार के संरक्षण को संतुलित करता है।
तथ्य
- भारती एयरटेल लिमिटेड और भारती हेक्साकॉम लिमिटेड (एयरटेल संस्थाएँ) ने अप्रैल 2016 में कॉर्पोरेट देनदारों—एयरसेल लिमिटेड और डिशनेट वायरलेस लिमिटेड (एयरसेल संस्थाएँ) के साथ आठ स्पेक्ट्रम व्यापार करार किये। जब दूरसंचार विभाग (DoT) ने लाइसेंस बकाया राशि से संबंधित लगभग 453.73 करोड़ रुपए की बैंक प्रत्याभूति (BG) की मांग की, तो वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण, एयरसेल की कंपनियों ने एयरटेल की कंपनियों से अपनी ओर से ये बैंक प्रत्याभूति (BG) प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। समझौता पत्रों के अनुसार, एयरटेल की कंपनियाँ बैंक प्रत्याभूति प्रस्तुत करने और एयरसेल की कंपनियों को देय राशि से 586.37 करोड़ रुपए काटने पर सहमत हुईं।
- मार्च 2018 में एयरसेल संस्थाओं के विरुद्ध कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू की गई थी। न्यायिक हस्तक्षेप के बाद, एयरटेल संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत बैंक प्रत्याभूति जनवरी 2019 में रद्द कर दी गई थी। एयरटेल संस्थाओं ने 341.80 करोड़ रुपए का संदाय किया था, किंतु शेष 145.20 करोड़ रुपए की राशि का मुजरा करने की मांग की थी, यह दावा करते हुए कि यह बकाया ऋण एयरसेल संस्थाओं द्वारा परिचालन शुल्क, SMS शुल्क और इंटरकनेक्ट उपयोग शुल्क के रूप में उन पर बकाया था। एयरटेल संस्थाओं द्वारा दायर कुल दावा 203.46 करोड़ रुपए का था।
- समाधान पेशेवर (RP) ने कॉर्पोरेट देनदार के खाते में 112.87 करोड़ रुपए के संदाय की मांग वाले एकतरफा मुजरे के दावे को खारिज कर दिया और मुजरा को दिवाला विधि का उल्लंघन माना। अधिकरण (NCLAT) ने मुजरा की अनुमति दे दी, किंतु राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) ने इस निर्णय को पलट दिया और कहा कि मुजरा " दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के उद्देश्य के विपरीत" है।
न्यायालय की टिप्पणियां
उच्चतम न्यायालय ने अपीलों को खारिज कर दिया, जिससे कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान अनुमेय मुजरे के संबंध में महत्त्वपूर्ण पूर्व निर्णय स्थापित हुआ।
एक पूर्ण संहिता के रूप में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता:
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता एक पूर्ण संहिता है जो अन्य विधियों के असंगत प्रावधानों पर अधिभावी होती है।
- जब दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के प्रावधान अन्य विधियों के साथ टकराव में हों, तो दिवाला समाधान ढाँचे की अखंडता बनाए रखने के लिये दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता को ही प्रभावी होना चाहिये।
कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के दौरान दिवाला मुजरा का अपवर्जन:
- न्यायालय ने पुष्टि की कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान लेनदारों को कॉर्पोरेट देनदार के विरुद्ध दिवाला मुजरा का अधिकार नहीं देता है। "म्यूचुअल क्रेडिट और मुजरा" से संबंधित परिसमापन विनियमों का विनियमन 29 केवल परिसमापन प्रक्रिया (अध्याय 3, भाग 2) पर लागू होता है, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया पर नहीं।
- कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान दिवाला मुजरा की अनुमति देने से साम्यिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा, क्योंकि इससे मुजरा लेनदार को वरीयता प्राप्त स्थिति प्रदान की जाएगी, जिससे लेनदारों के बीच न्यायसंगत वितरण बाधित होगा।
अनुमेय मुजरा का अपवाद:
न्यायालय ने दो सीमित अपवादों को मान्यता दी जहाँ कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान मुजरा की अनुमति होगी:
- संविदात्मक मुजरा: यदि मुजरा का संविदात्मक अधिकार कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) प्रारंभ तिथि से पहले या उस दिन प्रभावी था, तो यह अनुमेय है। वैध रूप से निष्पादित संविदाओं की शर्तों में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता की धारा 14 के अधीन स्थगन के प्रारंभ होने से कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- संव्यवहार संबंधी प्रतिसंतुलन (साम्यिक प्रतिसंतुलन): यह तब अनुमेय है जब दावा और प्रतिदावा एक या एक से अधिक संव्यवहार के कारण इतने अभिन्न रूप से जुड़े हों कि उन्हें एक एकीकृत संव्यवहार माना जा सके, और इंकार करना न्यायसंगत नहीं होगा। यह अपवाद केवल निश्चित और निर्विवाद मौद्रिक दावों पर लागू होता है, परिसंपत्तियों या विवादित दावों पर नहीं।
तथ्यों पर अनुप्रयोग:
- न्यायालय ने पाया कि स्पेक्ट्रम संव्यवहार और बैंक प्रत्याभूति से संबंधित 145.20 करोड़ रुपए के मुजरे का प्रयास उचित नहीं था।
- स्पेक्ट्रम व्यापार करार, इंटरकनेक्ट शुल्क, परिचालन शुल्क और SMS शुल्क से बिल्कुल अलग और असंबद्ध संव्यवहार थे। ये संव्यवहार अलग-अलग संविदात्मक व्यवस्थाओं से उत्पन्न हुए थे और अलग-अलग वाणिज्यिक उद्देश्यों की पूर्ति करते थे।
- गंभीर बात यह है कि एयरसेल संस्थाओं को देय राशि जनवरी 2019 में अधिकार कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू होने के बाद देय हो गई, जब बैंक प्रत्याभूति रद्द कर दी गई। अधिकार कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के बाद के दायित्त्वों का मुजरा करने की अनुमति देने से धारा 14 के अधीन स्थगन प्रावधानों का उल्लंघन होगा, जो समाधान प्रक्रिया के दौरान कॉर्पोरेट देनदार की संपत्तियों की रक्षा करता है।
निर्णयाधार:
- कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान मुजरा स्पष्टतया निम्नलिखित तक सीमित है: (1) कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया-पूर्व संविदात्मक व्यवस्थाएँ जो स्पष्ट रूप से मुजरा के अधिकारों का प्रावधान करती हैं, और (2) अभिन्न रूप से जुड़े संव्यवहार से उत्पन्न होने वाले दावे जहाँ इंकार करना मूल रूप से अनुचित होगा (संव्यवहार संबंधी मुजरा)। असंबद्ध दावों, विशेष रूप से कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के प्रारंभ होने के बाद उत्पन्न होने वाले दावों के लिये मुजरा स्पष्ट रूप से निषिद्ध है क्योंकि यह दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, सांविधिक स्थगन को कमजोर करता है, और लेनदारों के साथ समान व्यवहार को बाधित करता है।
निष्कर्ष
उच्चतम न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि NCLAT ने सही कहा कि दिवाला मुजरा प्रावधान दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के अधीन कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) पर लागू नहीं होते। स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग सौदे से संबंधित 145.20 करोड़ रुपए के मुजरा का दावा संव्यवहार संबंधी मुजरे के परीक्षा में असफल रहा, क्योंकि अंतर्निहित संव्यवहार - स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग करार और इंटरकनेक्ट/परिचालन शुल्क - मूल रूप से अलग और स्वतंत्र थे। इसके अतिरिक्त, संदाय दायित्त्व कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू होने के बाद उत्पन्न हुए, जिससे यह दावा धारा 14 के अधीन स्थगन के उद्देश्य के विपरीत हो गया।