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वाणिज्यिक विधि

डी.बी.एस. बैंक लिमिटेड सिंगापुर बनाम रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य (2024)

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 05-Dec-2025

परिचय 

उच्चतम न्यायालय का यह ऐतिहासिक मामला, 2019 के संशोधनों के पश्चात्दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के अधीन एक असहमत सुरक्षित वित्तीय लेनदार की न्यूनतम पात्रता से संबंधित है। यह मामला 2019 की सिविल अपील संख्या 9133 से उत्पन्न हुआ था और इस बात की जांच की गई थी कि क्या धारा 30(2)(बी)(ii) एक असहमत लेनदार को उसके प्रतिभूति हित के परिसमापन मूल्य के समान राशि प्राप्त करने का अधिकार देती हैया स्वीकृत समाधान योजना के अधीन केवल एक आनुपातिक अंश।  

  • इस निर्णय में न्यायिक निर्वचन में एक मौलिक संघर्ष की पहचान की गई हैजिसके कारण अल्पसंख्यक लेनदारों को दी गई सुरक्षा पर निश्चित स्पष्टीकरण के लिये मामले को बड़ी पीठ को भेजने की आवश्यकता है। 

तथ्य 

  • डी.बी.एस. बैंक लिमिटेडसिंगापुर ने रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड को लगभग ₹243 करोड़ की वित्तीय ऋण सुविधा प्रदान की थीजो विभिन्न स्थानों पर स्थित विशिष्ट अचल एवं स्थिर परिसंपत्तियों पर विशिष्ट प्रथम भार (Exclusive First Charge) द्वारा सुरक्षित थी। कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) 15 दिसंबर 2017 को प्रारंभ हुईजिसमें डी.बी.एस. बैंक का दावा ₹242.96 करोड़ पर स्वीकृत किया गया 
  • पतंजलि आयुर्वेदिक लिमिटेड ने वित्तीय लेनदारों के कुल 8,398 करोड़ रुपए के दावों के विरुद्ध 4,134 करोड़ रुपये मूल्य की एक समाधान योजना प्रस्तुत की। लेनदारों की समिति (CoC) ने समरूप वितरण पद्धति को मंजूरी दे दी। डी.बी.एस. बैंक ने समाधान योजना से असहमति जताईजिसे 30 अप्रैल, 2019 को लेनदारों की समिति के 96.95% सदस्यों ने मंजूरी दे दी।    
  • दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता की धारा 30(2)(ख) में अगस्त 2019 में हुए संशोधन के बादडी.बी.एस. बैंक ने पुनर्विचार का अनुरोध किया और 217.86 करोड़ रुपए—जो उसके प्रतिभूति हित का परिसमापन मूल्य है—का दावा किया। लेनदारों की समिति (CoC) ने इसे अस्वीकार कर दिया। स्वीकृत वितरण के अधीनडी.बी.एस. बैंक को केवल लगभग 119 करोड़ रुपए ही प्राप्त होते। राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) ने डी.बी.एस. बैंक की अपीलों को खारिज कर दिया।   

सम्मिलित विवाद्यक  

  • क्या दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2019 का स्पष्टीकरण 2, कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) के समक्ष लंबित अपीलों पर प्रतिस्थापित धारा 30(2)(ख) के आवेदन को अनिवार्य करता हैजिसने संशोधन अधिसूचना से पहले अनुमोदित वितरण तंत्र को चुनौती दी थी। 
  • क्या दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता की धारा 30(2)()(ii) एक असहमत वित्तीय लेनदारजो अनन्य और बेहतर प्रतिभूति रखता हैको प्रतिभूति हित के समान न्यूनतम मूल्य प्राप्त करने का अधिकार देता हैजो उन्हें परिसमापन के दौरान धारा 53(1) के अधीन प्राप्त होताया केवल आनुपातिक अंश 
  • क्या इंडिया रिसर्जेंस ए.आर.सी. प्राइवेट लिमिटेड में किये गए न्यायिक निर्वचनअसहमत सुरक्षित लेनदारों के अधिकार के संबंध में एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड और जेपी केंसिंग्टन बुलेवार्ड अपार्टमेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की लेनदारों की समिति में तीन न्यायाधीशों की पीठ की घोषणाओं के साथ विरोधाभासी है। 

न्यायालय की टिप्पणियां  

उच्चतम न्यायालय ने संशोधित दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता प्रावधानों की व्याख्या और असहमत लेनदार अधिकारों के संबंध में कई आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। 

2019 संशोधन की प्रयोज्यता: 

  • न्यायालय ने पुष्टि की कि 2019 संशोधन अधिनियमविशेष रूप से स्पष्टीकरण 2(ii), कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) के समक्ष लंबित अपीलों पर लागू होता है। यह संशोधन किसी भी न्यायिक प्राधिकारी के समक्ष लंबित सभी कार्यवाहियों पर लागू होने की विधायी आशय को दर्शाता हैजब तक कि समाधान योजना अंतिम रूप न ले ले। 

धारा 30(2)()(ii) का निर्वचन: 

  • न्यायालय ने माना कि धारा 30(2)()(ii) असहमत लेनदारों को धारा 53(1) के अधीन परिसमापन में मिलने वाली राशि से कम राशि प्राप्त करने का आश्वासन देती है। यह प्रावधान अल्पसंख्यक लेनदारों की स्वायत्तता की रक्षा करता हैअनुचित व्यवहार को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि असहमत लेनदारों की स्थिति समाधान योजना के अधीन परिसमापन की तुलना में बदतर न हो। लेनदारों की समिति (CoC) के वाणिज्यिक विवेक का सम्मान करते हुएयह स्वतंत्रता सांविधिक न्यूनतम पात्रता द्वारा सीमित है। 

प्रतिभूति हित का मूल्य: 

  • जेपी केंसिंग्टन निर्णय का हवाला देते हुएन्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि असहमति जताने वाला सुरक्षित लेनदार "देय राशि" प्राप्त करने का हकदार हैजिसे "धारा 53 के अधीन प्राप्य संपत्तियों की आय" के रूप में परिमाणित किया गया है। जब असहमति जताने वाला लेनदार किसी समाधान योजना को स्वीकार करता हैतो वह अपना प्रतिभूति हित त्याग देता है। इसलियेउसका न्यूनतम अधिकार उस प्रतिभूति हित के समान मौद्रिक मूल्य हैजो उसे उस सुरक्षित लेनदार के समान स्थिति में रखता है जिसने धारा 53(1)()(ii) के अधीन स्वेच्छा से प्रतिभूति त्याग दी हो। 

तथ्यों पर अनुप्रयोग: 

  • डी.बी.एस. बैंकजिसके पास परिसमापन में 217.86 करोड़ रुपए मूल्य की अनन्य प्रतिभूति थीको समान वितरण के अधीन केवल 119 करोड़ रुपए ही मिल रहे थे। समाधान योजना असहमत सुरक्षित ऋणदाता को न्यूनतम सांविधिक सुरक्षा से वंचित करती प्रतीत हुई। यद्यपिपरस्पर विरोधी पूर्व निर्णयों को देखते हुएन्यायालय ने दो-न्यायाधीशों की पीठ के स्तर पर मामले का अंतिम समाधान करने से इंकार कर दिया। 

निर्णयाधार: 

  • अनन्य या उच्चतर प्रतिभूति हित रखने वाला कोई असहमत सुरक्षित वित्तीय लेनदारदिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की धारा 30(2)()(ii) के अधीन संरक्षण का हकदार हैजिसके अधीन उसे धारा 53(1) के अधीन परिसमापन में प्राप्त होने वाली राशि से कम राशि का संदाय अनिवार्य है। वितरण तंत्रों को मंजूरी देने में लेनदारों की समिति (CoC) की वाणिज्यिक बुद्धिमत्ता इस सांविधिक न्यूनतम अधिकार के अधीन है। यद्यपिउच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णयों—विशेष रूप से एस्सार स्टील और जेपी केंसिंग्टन बनाम इंडिया रिसर्जेंस ए.आर.सी.—के बीच इस बात को लेकर टकराव को देखते हुए कि क्या यह अधिकार प्रतिभूति हित के पूर्ण परिसमापन मूल्य तक विस्तारित हैइस मामले का समाधान एक बड़ी पीठ द्वारा किये जाने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष 

न्यायालय ने निष्कर्षतः यह प्रतिपादित किया कि धारा 30(2)()(ii) का उद्देश्य असहमत वित्तीय लेनदारों के हितों की रक्षा करना हैजिससे उन्हें न्यूनतम संदायजो परिसमापन मूल्य के समतुल्य होप्राप्त हो सके। चूँकि इस संरक्षण के सटीक दायरे को लेकर विद्यमान न्यायिक पूर्व निर्णयों में मौलिक विरोधाभास विद्यमान हैइसलिये पीठ ने केंद्रीय विधिक प्रश्न को निश्चित स्पष्टता हेतु विस्तृत पीठ के समक्ष संदर्भित किया। 

दिवाला विधि के इस महत्त्वपूर्ण पहलू को आधिकारिक रूप से निपटाने के लिये एक उपयुक्त वृहद पीठ के गठन हेतु मामले को भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया थाजिसका सुरक्षित लेनदार अधिकारोंप्रतिभूति हित की पवित्रता और कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) में बहुमत नियम और अल्पमत संरक्षण के बीच संतुलन के लिये दूरगामी प्रभाव है।