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आपराधिक कानून

‘ए’ (‘एक्स’ की माता) बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024)

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 03-Dec-2025

परिचय 

यह एक ऐतिहासिक निर्णय हैजो गर्भवती व्यक्तियोंविशेषकर लैंगिक उत्पीड़न के पीड़ित अवयस्कों के सांविधानिक अधिकारों को संबोधित करता हैतथा चौबीस सप्ताह की सांविधिक सीमा से परे देर से गर्भपात के मामलों में मेडिकल बोर्ड के लिये व्यापक दिशानिर्देश स्थापित करता है। 

तथ्य 

  • चौदह वर्षीय अवयस्क लड़की, 'एक्स', सितंबर 2023 मेंलैंगिक उत्पीड़न का शिकार हुई थी। 
  • गर्भावस्था का पता 20 मार्च, 2024 को लगभग 25 सप्ताह के गर्भ में चला और भारतीय दण्ड संहिता तथा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई। 
  • जे.जे. ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के प्रारंभिक मेडिकल बोर्ड ने 'एक्सको गर्भपात के लिये उपयुक्त मानाकिंतु 24 सप्ताह की सीमा पार हो जाने के कारण उच्च न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता पड़ी। 
  • बाद में एक 'स्पष्टीकरणराय मेंगर्भावधि आयु और भ्रूण में असामान्यताएँ न होने का हवाला देते हुए गर्भपात से इंकार कर दिया गया। बॉम्बे उच्च न्यायालय नेसांविधिक समय सीमा के आधार परयाचिका खारिज कर दी । 
  • उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और सायन अस्पताल में एक नए मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निदेश दियाजिसने रिपोर्ट दी कि इसे जारी रखने से अवयस्क के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। न्यायालय ने शुरुआत में 22 अप्रैल, 2024 को गर्भपात का आदेश दिया था। 
  • यद्यपिबाद में माता-पिता ने दत्तक लेने के लिये गर्भावस्था को पूरी अवधि तक जारी रखने की इच्छा व्यक्त की। उन्नत अवस्था (लगभग 31 सप्ताह) को देखते हुएमाता-पिता ने गर्भपात न कराने का निर्णय किया। 

सम्मिलित विवाद्यक 

  • क्या उच्च न्यायालय द्वारा लैंगिक उत्पीड़न की अवयस्क पीड़िता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार किये बिनाकेवल सांविधिक सीमा से अधिक गर्भावधि आयु के आधार पर चिकित्सीय समापन की अनुमति देने से इंकार करना उचित था? 
  • विहित गर्भावधि सीमा से परे गर्भपात से संबंधित मामलों मेंविशेष रूप से गर्भवती व्यक्ति की शारीरिक और भावनात्मक भलाई के व्यापक मूल्यांकन के संबंध मेंमेडिकल बोर्ड द्वारा दी जाने वाली राय का अनिवार्य दायरा क्या है? 
  • क्या न्यायालय को अवयस्क और उसके संरक्षक द्वारा गर्भावस्था जारी रखने के बाद लिये गए निर्णय के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने वाले अपने आदेश को वापस ले लेना चाहियेजिससे प्रजनन स्वायत्तता और अवयस्क के कल्याण की सर्वोच्चता बरकरार रहे? 

न्यायालय की टिप्पणियां  

सम्मति और स्वायत्तता की प्रधानता: 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गर्भ का समापन करने या जारी रखने का निर्णय अत्यंत व्यक्तिगत हैजो अनुच्छेद 21 के अधीन मौलिक अधिकारों में निहित है। गर्भावस्था को जारी रखने का विकल्प केवल व्यक्ति का है और इसका सम्मान किया जाना चाहियेतथा अवयस्क की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये 

मेडिकल बोर्ड की राय का अनिवार्य दायरा: 

  • मेडिकल बोर्ड को गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम की धारा 3(2-ख) के अधीन भ्रूण की असामान्यताओं की पुष्टि तक ही अपनी राय सीमित नहीं रखनी चाहिये। जब ​​गर्भ 24 सप्ताह से अधिक हो जाता हैतो बोर्ड को गर्भवती महिला पर पड़ने वाले शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन करना चाहिये 

न्यायिक दायित्त्व: 

  • यदि गर्भपात जारी रखना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होतो न्यायालय सिर्फ़ गर्भकालीन आयु के आधार पर गर्भपात से इंकार नहीं कर सकता। अवयस्कों से जुड़े मामलों मेंजहाँ अवयस्क और संरक्षकों के बीच मतभेद होंअवयस्क का दृष्टिकोण एक महत्त्वपूर्ण कारक होना चाहिये 

मेडिकल बोर्ड की जवाबदेही: 

  • न्यायालय ने रोगी की पुनः परीक्षा किये बिना जारी किये गए विरोधाभासी चिकित्सा राय की आलोचना की तथा कहा कि ऐसी अनिश्चितता से अनावश्यक आघात होता है। 

निर्णयाधार: 

  • निर्णय में यह स्थापित किया गया कि मेडिकल बोर्ड का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वह देर से गर्भपात के मामलों में गर्भवती महिलाओं पर पड़ने वाले शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन करेंतथा न्यायालय केवल गर्भावधि आयु के आधार पर गर्भपात से इंकार नहीं कर सकतेजब स्वास्थ्य खतरे में हो। 

निष्कर्ष 

न्यायालय ने अवयस्क और उसके माता-पिता द्वारा गर्भावस्था जारी रखने के संशोधित विकल्प का सम्मान करते हुए 22 अप्रैल, 2024 के अपने आदेश को वापस ले लिया। सायन अस्पताल को निरंतर देखरेख और प्रसव का सारा खर्च वहन करने का निदेश दिया गया। राज्य सरकार को निदेश दिया गया कि यदि वांछित होतो दत्तक लेने में सहायता प्रदान की जाए। यह निर्णय गर्भवती महिलाओं के सांविधानिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है और गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 के अधीन देर से गर्भपात के मामलों में चिकित्सा बोर्डों के लिये अनिवार्य कर्त्तव्य स्थापित करता है।