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होम / गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम

आपराधिक कानून

सविता सचिन पाटिल बनाम भारत संघ (2017)

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 02-Dec-2025

परिचय 

यह एक ऐतिहासिक निर्णय हैजो भ्रूण में गंभीर विसंगतियों से संबंधित मामलों में गर्भ का चिकित्सकीय समापन की विधिक सीमाओं को संबोधित करता हैविशेष रूप से तब जब माता के जीवन को तत्काल कोई शारीरिक खतरा न हो। 

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की दो सदस्यीय पीठ ने दिया 

तथ्य 

  • वर्तमान मामले मेंसैंतीस वर्षीय महिला अपनी गर्भावस्था के छब्बीसवें सप्ताह में थी। 
  • उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन रिट याचिका (सिविल) संख्या 121/2017 के माध्यम से उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 
  • चिकित्सकीय परीक्षा से पुष्टि हुई कि भ्रूण में ट्राइसोमी 21 पाया गया हैजिसे सामान्यत: डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) के रूप में जाना जाता हैजो गंभीर शारीरिक और मानसिक मंदता का कारण बनता है। 
  • न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता की परीक्षा एक विशेष मेडिकल बोर्ड द्वारा करने का निदेश दियाजिसमें सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज एवं के.ई.एम. अस्पताल तथा मुम्बई के एल.टी.एम.जी. अस्पतालों के प्रसूतिमनोचिकित्साचिकित्साएनेस्थीसिया और रेडियोलॉजी सहित विभिन्न विशेषज्ञताओं के सात डॉक्टर सम्मिलित थे। 
  • याचिकाकर्त्ता ने अपनी गर्भ का चिकित्सकीय समापन कराने की अनुमति देने के लिये न्यायिक निदेश मांगा। 

सम्मिलित विवाद्यक 

  • क्या न्यायालय को याचिकाकर्त्ता संख्या 1, जो 26 सप्ताह की गर्भवती थीके गर्भ का चिकित्सकीय समापन करने की अनुमति देनी चाहियेक्योंकि भ्रूण में ट्राइसोमी 21 (Down Syndrome) का निदान किया गया है? 
  • क्या माता के जीवन को तत्काल शारीरिक जोखिम के बिनाभ्रूण में गंभीर विसंगति का निदानसांविधिक सीमाओं के बाहर गर्भपात की अनुमति देने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप के लिये पर्याप्त आधार बनाता है? 

न्यायालय की टिप्पणियां  

ऐसे मामलों में दो प्राथमिक विचार: 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि इस प्रकार के मामलों में दो प्राथमिक बातें सम्मिलित होती हैं: माता के जीवन को खतराऔर भ्रूण के जीवन को खतरा। 

माता के लिये जोखिम मूल्यांकन: 

  • मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गर्भावस्था को जारी रखने या समाप्त करने से माता को कोई शारीरिक खतरा नहीं है। 
  • न्यायालय ने पाया कि यदि याचिकाकर्त्ता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई तो उसके जीवन को कोई खतरा नहीं होगा। 

भ्रूण का पूर्वानुमान और गंभीरता: 

  • मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि बच्चा ट्राइसोमी 21 के साथ पैदा हुआ हैतो उसे मानसिक और शारीरिक चुनौतियाँ होने की संभावना है। 
  • यद्यपिन्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि नहीं की गई हैऔर संभवतः नहीं की जा सकती है कि इस विशेष भ्रूण को गंभीर मानसिक और शारीरिक चुनौतियाँ होंगी। 
  • रिपोर्ट में स्वीकार किया गया कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की बुद्धिमत्ता परिवर्तनशील होती हैतथापि उनमें से एक बड़े हिस्से का बुद्धि लब्धि 50 से कम (गंभीर मानसिक मंदता) हो सकता है। 
  • न्यायालय ने पूर्वानुमान को तत्काल खतरे या मृत्यु की निश्चितता के बजाय एक संभावना के रूप में माना। 

निर्णय की अपरिवर्तनीयता: 

  • न्यायालय ने माना कि गर्भावस्था के इस उन्नत चरण में दी गई कोई भी अनुमति अपरिवर्तनीय होगी। 

चिकित्सकीय आवश्यकता का कठोर निर्वचन: 

  • न्यायिक प्राधिकारी माता के जीवन को तत्काल कोई शारीरिक खतरा न होने के कारण विवश थे। 
  • न्यायालय ने माना कि केवल भ्रूण की निदानित स्थितिजिसमें माता को कोई खतरा न होअनुमति देने के लिये अपर्याप्त आधार है। 

निर्णयाधार: 

  • इस निष्कर्ष के आधार पर कि माता के जीवन को कोई खतरा नहीं था और यह समझते हुए कि अनुमति देना अपरिवर्तनीय होगान्यायालय ने माना कि याचिकाकर्त्ता को भ्रूण के जीवन को समाप्त करने की अनुमति देना संभव नहीं था। 
  • निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि सांविधिक सीमाओं के बाहर देर से गर्भपात की अनुमति देने के अवधारण में माता के जीवन को होने वाला जोखिम भ्रूण की विसंगति से अधिक महत्त्वपूर्ण है। 

निष्कर्ष 

इस मामले में न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं की उस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने गर्भ का चिकित्सकीय समापन कराने का निदेश देने की मांग की थी। 

ऐसा इसलिये है क्योंकि मेडिकल बोर्ड के निष्कर्ष से यह स्थापित हो गया है कि गर्भावस्था जारी रखने से माता के जीवन को कोई शारीरिक खतरा नहीं है। 

यह निर्णय चिकित्सीय आवश्यकता और माता के लिये जोखिम के कठोर निर्वचन को रेखांकित करता हैजो कि चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 के अधीन भ्रूण संबंधी विसंगतियों के संबंध में देर से गर्भपात के लिये न्यायिक अनुमति में प्रमुख निर्धारक हैं।