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सांविधानिक विधि

सांविधानिक और सांविधिक निकाय

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 03-Dec-2025

परिचय 

भारत की शासन संरचना में विभिन्न निकाय और संस्थाएँ सम्मिलित हैं जो प्रशासनविनियमन और निरीक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन निकायों को व्यापक रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है: सांविधानिक निकाय और सांविधिक निकाय।   

  • सांविधानिक निकाय वे संस्थाएँ हैं जो अपनी शक्तियां और उत्तरदायित्त्व सीधे भारत के संविधान से प्राप्त करते हैं। संविधान या तो इन संस्थाओं की सीधे स्थापना करता है या उनके गठन का आदेश देता हैउनकी संरचनाशक्तियोंकार्यों और कर्त्तव्यों को रेखांकित करता है।  
  • दूसरी ओरसांविधिक निकाय असांविधानिक निकाय होते हैं जिनकी स्थापना संसद या राज्य विधानमंडलों के अधिनियमों के माध्यम से की जाती है। इनका निर्माण विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्तिविशिष्ट विवाद्यकों के समाधान और शासन के विभिन्न क्षेत्रों के विनियमन के लिये किया जाता है।  

सांविधानिक निकाय 

 बारे में: 

  • सांविधानिक निकाय भारत के शासन और प्रशासनिक ढाँचे के मूलभूत घटक हैंजिनका अस्तित्व और शक्तियां संविधान में ही निहित हैं। 

परिभाषा और प्राधिकार: 

  • सांविधानिक निकाय एक संस्था या प्राधिकरण है जो अपनी शक्तियां और उत्तरदायित्त्व सीधे भारत के संविधान से प्राप्त करता है।  
  • ये संस्थाएँ या तो सीधे संविधान द्वारा स्थापित की जाती हैंया उनका निर्माण सांविधानिक प्रावधानों द्वारा अनिवार्य होता हैजो उनकी संरचनाशक्तियोंकार्यों और कर्त्तव्यों को रेखांकित करते हैं।  

मुख्य विशेषताएँ: 

  • सांविधानिक मान्यता:इन निकायों का उल्लेख संविधान में किया गया हैजिससे उन्हें सांविधानिक दर्जा और संरक्षण प्राप्त है।  
  • सांविधानिक अधिदेश:उनकी स्थापनासंरचना और मुख्य कार्य विशिष्ट सांविधानिक प्रावधानों द्वारा परिभाषित किये जाते हैं। 
  • मौलिक भूमिका:वे देश के शासन और प्रशासनिक ढाँचे का एक अभिन्न अंग हैं। 
  • बढ़ी हुई स्वायत्तता:सांविधानिक निकायों को सामान्यत: अधिक स्वतंत्रता और मनमाने हस्तक्षेप से सुरक्षा प्राप्त होती है।  

भारत में प्रमुख सांविधानिक निकाय: 

  • भारत में कार्यरत कुछ प्रमुख सांविधानिक निकाय निम्नलिखित हैं:  
    • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) 
    • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) 
    • भारतीय वित्त आयोग (FCI) 
    • माल और सेवा कर परिषद् (GST Council) 
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) 
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) 
    • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) 
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) 

सांविधिक निकाय 

बारे में:  

  • सांविधिक निकाय असांविधानिक संस्थाएँ हैं जिन्हें विशिष्ट शासन आवश्यकताओं और नियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विधायिका द्वारा स्थापित किया जाता है। 

परिभाषा और स्थापना: 

  • भारत में सांविधिक निकाय असांविधानिक निकाय हैंक्योंकि उनका संविधान में उल्लेख नहीं है। 
  • इन निकायों की स्थापना संसद के अधिनियम या राज्य विधानमंडलों के अधिनियम के माध्यम से की जाती हैजिससे उन्हें शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ प्राप्त होती हैं। 
  • इन्हें 'सांविधिकइसलिये कहा जाता है क्योंकि ये अपनी शक्तियां संविधान से नहीं अपितु विधायिका द्वारा पारित संविधि (विधियों) से प्राप्त करते हैं। 

उद्देश्य और कार्य: 

  • सांविधिक निकायों का निर्माण विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्तिविशेष विवाद्यकों के समाधान तथा विभिन्न क्षेत्रों को विनियमित करने के लिये किया जाता है। 
  • उनकी स्थापना शिक्षावित्तस्वास्थ्य सेवाउद्योग और सामाजिक कल्याण जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में शासन और प्रशासन की उभरती आवश्यकताओं को दर्शाती है। 

शक्तियां और प्राधिकार: 

  • सांविधिक निकाय राज्य या देश की ओर से कुछ विधियों को लागू करनेविधि पारित करने और निर्णय लेने के लिये अधिकृत हैं। उनकी शक्तियों में सम्मिलित हैं: 
  • विधायी कार्यान्वयन:वे संसद या राज्य विधानमंडलों के विशिष्ट अधिनियमों को क्रियान्वित और लागू करते हैं। 
  • नियामक प्राधिकरण:वे अपनी अधिकारिता के भीतर विशिष्ट क्षेत्रों या गतिविधियों को विनियमित और देखरेख करते हैं। 
  • नियम बनाने की शक्तियां:कई सांविधिक निकाय मूल अधिनियम के ढाँचे के भीतर नियम और विनियम बना सकते हैं। 
  • निर्णय लेने वाला प्राधिकारी:वे अपने-अपने क्षेत्र में प्रशासनिक और अर्ध-न्यायिक निर्णय लेते हैं। 

सांविधिक निकायों की विशेषताएँ: 

  • विधायी उत्पत्ति:संविधान के बजाय संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम द्वारा निर्मित। 
  • विशिष्ट अधिदेश:स्पष्ट रूप से परिभाषित उद्देश्यों और कार्यों के साथ विशेष प्रयोजनों के लिये स्थापित। 
  • क्षेत्रीय केन्द्रीकरण:सामान्यत: विशिष्ट क्षेत्रों में काम करते हैं या विशेष विवाद्यकों को संबोधित करते हैं।  
  • लचीली संरचना:उनकी संरचनाशक्तियों और कार्यों को मूल विधान में संशोधन करके संशोधित किया जा सकता है। 
  • उत्तरदायित्त्व:उन्हें बनाने वाली विधायिका के प्रति जवाबदेह और संसदीय या विधायी निरीक्षण के अधीन। 

सांविधानिक और सांविधिक निकायों के बीच प्रमुख अंतर 

निम्नलिखित तालिका सांविधानिक और सांविधिक निकायों के बीच प्रमुख अंतर दर्शाती है: 

आधार 

सांविधानिक निकाय 

सांविधिक निकाय 

प्राधिकार का स्रोत  

  • भारत के संविधान से सीधे शक्तियां प्राप्त होती हैं। 
  • संसद या राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों से शक्तियां प्राप्त होती हैं। 

संविधान में उल्लेख 

  • संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। 
  • संविधान में उल्लेख नहीं है। 

स्थापना 

  • सांविधानिक प्रावधानों या सांविधानिक जनादेश द्वारा स्थापित। 
  • विधायी अधिनियम (संविधि/विधि) द्वारा स्थापित। 

शक्तियों का संशोधन 

  • शक्तियों और संरचना को संशोधित करने के लिये सांविधानिक संशोधन की आवश्यकता है। 
  • विधायी प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिनियम में संशोधन करके संशोधित किया जा सकता है। 

सांविधानिक संरक्षण 

  • सांविधानिक संरक्षण और दर्जा प्राप्त है।  
  • इसे सांविधानिक सुरक्षा नहीं मिली हैयह विधान परिवर्तनों के अधीन है।  

स्वतंत्रता 

  • सामान्यत: अधिक स्वायत्तता और स्वतंत्रता होती है। 
  • तुलनात्मक रूप से कम स्वतंत्रशासकीय नियंत्रण की अधिक संभावना।  

विघटन 

  • सामान्य विधायी प्रक्रिया द्वारा भंग नहीं किया जा सकतासांविधानिक संशोधन आवश्यक। 
  • मूल अधिनियम को निरस्त कर के भंग/समाप्त किया जा सकता है। 

दायरा 

  • प्राय: इसका व्यापक राष्ट्रीय महत्त्व और सांविधानिक जनादेश होता है। 
  • प्रायः विशिष्ट क्षेत्रीय अथवा विषय-केंद्रित कार्य-क्षेत्र तक सीमित। 

उत्तरदायित्त्व 

  • सांविधानिक प्रावधानों के अधीन उत्तरदायी।  
  • विधायिका के प्रति उत्तरदायी एवं संसदीय/विधायी पर्यवेक्षण के अधीन। 

 निष्कर्ष 

सांविधानिक और सांविधिक दोनों निकाय भारत की शासन संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और विशिष्ट होते हुए भी पूरक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। सांविधानिक निकाय संविधान से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं और उन्नत सुरक्षा एवं स्वतंत्रता के साथ आधारभूत संस्थागत समर्थन प्रदान करते हैं। विधायी कृत्यों के माध्यम से स्थापित सांविधिक निकायसांविधानिक संशोधनों की आवश्यकता के बिनाउभरती हुई शासन चुनौतियों का समाधान करने के लिये आवश्यक लचीलापन प्रदान करते हैं। ये निकाय मिलकर एक व्यापक ढाँचा बनाते हैं जो राष्ट्र की विविध प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए प्रभावी शासन और जवाबदेही का समर्थन करते है।