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पारिवारिक कानून

उत्तराधिकार प्रमाण पत्र, प्रोबेट और प्रशासन पत्र

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 11-Dec-2025

परिचय 

भारत मेंकिसी मृत व्यक्ति की संपत्ति के उत्तराधिकार की प्रक्रिया धर्म पर आधारित व्यक्तिगत विधियों के साथ-साथ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा नियंत्रित होती है। उत्तराधिकार प्रमाण पत्रप्रोबेट और प्रशासन पत्र जैसे शब्दों को समझना महत्त्वपूर्ण हैविशेषत: जब किसी दिवंगत व्यक्ति की संपत्ति से संबंधित मामले हों। 

  • विवाह और पारिवारिक संबंध ऐसे विधिक दायित्त्वों को जन्म देते हैं जो जीवन से परे तक विस्तारित होते हैंऔर उत्तराधिकार विधि मृत्यु के बाद अधिकारों और उत्तरदायित्त्वों के अंतरण के लिये ढाँचा प्रदान करते हैं। 

उत्तराधिकार प्रमाण पत्र – विधिक वारिसों के लिये 

अवधारणा को परिभाषित करना: 

  • उत्तराधिकार प्रमाण पत्र (जिसे विधिक उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र भी कहा जाता है) सामान्यत: तब आवश्यक होता है जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत बनाए (निर्वसीयती) मर जाता है और परिवार यह निर्धारित करना चाहता है कि विधिक उत्तराधिकारी कौन हैं। यह दस्तावेज़ अधिकारियों द्वारा मृतक व्यक्ति के सही उत्तराधिकारियों की आधिकारिक मान्यता के रूप में कार्य करता है।  

यह कहाँ उपयोगी है? 

  • उत्तराधिकार प्रमाण पत्र बिजली या फोन कनेक्शन के अंतरणबीमापेंशन या बैंक खातों का दावा करने और नगरपालिका अभिलेखों में संपत्ति के परिवर्तन सहित नियमित प्रशासनिक मामलों के लिये आवश्यक है। 

प्रमाणपत्र कौन जारी करता है: 

राजस्व प्राधिकरण (बुनियादी गैर-विवादास्पद मामलों के लिये): 

  • महाराष्ट्रतमिलनाडुआंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में तहसीलदारतलाठीसर्किल अधिकारी या मंडल राजस्व अधिकारी (MRO) पेंशन या पारिवारिक पेंशन दावोंसरकारी अभिलेखों में संपत्ति के परिवर्तनबैंक खातों को बंद करने या स्थानांतरित करने और बिजलीपानी या टेलीफोन कनेक्शन के अंतरण जैसे उद्देश्यों के लिये ये प्रमाण पत्र जारी करते हैं। 

जिला सिविल न्यायालय (उत्तराधिकार अधिकारों और विवादित दावों के लिये): 

  • संपत्तिवित्तीय परिसंपत्तियों या बैंक बैलेंस के अंतरण के समय इसकी आवश्यकता होती है। यह एक न्यायिक दस्तावेज़ हैप्रशासनिक दस्तावेज़ नहीं।  
  • भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 372 के अधीन उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिये या अचल संपत्तियों के मामले में उत्तराधिकार घोषणा वाद के माध्यम से आवेदन किये जाते हैं।  
  • ये दस्तावेज़ मृतक के अंतिम निवास स्थान या संपत्ति पर अधिकारिता रखने वाले वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश या जिला न्यायाधीश द्वारा जारी किये जाते हैं। 

नगर निगम/स्थानीय नागरिक निकाय (संपत्ति कर और स्थानीय अभिलेखों के अद्यतन के लिये): 

  • कुछ नगरपालिका प्राधिकरण संपत्ति कर अभिलेखों को अद्यतन करने और जल या स्थानीय प्राधिकरण अभिलेखों में नाम स्थानांतरित करने के लिये बुनियादी विधिक उत्तराधिकार स्वीकृति पत्र जारी कर सकते हैं। 

वसीयत के निष्पादकों के लिये प्रोबेट प्रक्रिया 

अवधारणा को परिभाषित करना: 

  • प्रोबेट एक सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किया गया विधिक प्रमाण पत्र है जो वसीयत की वैधता की पुष्टि करता है और वसीयत में नामित निष्पादक को मृतक की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिये शक्तियां प्रदान करता है। 
  • यह न्यायिक दस्तावेज़ वसीयती दस्तावेज़ को प्रमाणित करता है और वसीयत के निष्पादक को संपत्ति की ओर से कार्य करने के लिये अधिकृत करता है। 

प्रोबेट कब आवश्यक होता है? 

  • मृतक द्वारा वसीयत बनाए जाने और संपत्ति मुंबईचेन्नई या कोलकाता में होने पर (विधि द्वारा अनिवार्य रूप से)बैंकों या संस्थानों द्वारा इस पर बल दिये जाने परया उत्तराधिकारियों के बीच विवाद होने की संभावना होने पर प्रोबेट आवश्यक हो जाता है। 

कौन सा न्यायालय प्रोबेट प्रदान करता है: 

  • मृतक के निवास स्थान या संपत्ति वाले स्थान पर अधिकारिता रखने वाले जिला न्यायालय या उच्च न्यायालय को प्रोबेट जारी करने का अधिकार है। 

प्रोबेट प्राप्त करने की प्रक्रिया: 

  • इस प्रक्रिया में प्रोबेट याचिका दाखिल करनासभी विधिक वारिसों को नोटिस देनासमाचार पत्रों में प्रकाशन करना और आक्षेपों (यदि कोई हो) के बाद न्यायालय द्वारा प्रोबेट प्रदान करना सम्मिलित है। 

प्रशासन पत्र – जब कोई निष्पादक नामित न हो 

अवधारणा को परिभाषित करना: 

  • यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु वसीयत के साथ होती है किंतु उसने किसी निष्पादक का नाम नहीं दिया हैया निष्पादक कार्य करने से इंकार कर देता हैतो वारिसों को प्रशासन पत्र के लिये आवेदन करना होगा। 
  • इसके अतिरिक्तयदि कोई व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है (निर्वसीयती) और विधिक वारिस चाहते हैं कि न्यायालय किसी को संपत्ति का प्रबंधन करने के लिये नियुक्त करेतो वे भी इस दस्तावेज़ के लिये आवेदन करते हैं। 

कौन आवेदन कर सकता है: 

  • मृतक की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिये पति/पत्नीबच्चे या भाई-बहन जैसे विधिक उत्तराधिकारी प्रशासन पत्र के लिये आवेदन कर सकते हैं। 

न्यायालय की प्रक्रिया: 

  • यह प्रक्रिया प्रोबेट के समान है और इसमें याचिका दाखिल करनानोटिस देनासमाचार पत्र में प्रकाशनसुनवाई करना और अंत में सक्षम न्यायालय द्वारा प्रशासन पत्र प्रदान करना सम्मिलित है। 

तीनों दस्तावेज़ों के बीच प्रमुख अंतर 

  • उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की आवश्यकता तब होती है जब विधिक उत्तराधिकार साबित करने के लिये कोई वसीयत न होविधिक उत्तराधिकारियों द्वारा इसके लिये  आवेदन किया जाता हैऔर यह पेंशन और अभिलेखों जैसे नियमित मामलों के लिये लागू होता है। 
  • वसीयत विद्यमान होने और उसमें निष्पादक का नाम होने परनिष्पादक द्वारा आवेदन किये जाने परऔर वसीयत को साबित करने और उसे लागू करने के लिये उपयोग किये जाने पर प्रोबेट की आवश्यकता होती है। 
  • प्रशासन पत्र तब आवश्यक होता है जब कोई वसीयत न हो या वसीयत में कोई निष्पादक न होइसके लिये विधिक वारिसों द्वारा आवेदन किया जाता हैऔर इसका उपयोग बिना वसीयत के संपत्ति का प्रबंधन करने के लिये किया जाता है। 

सामान्यतः आवश्यक दस्तावेज़ 

  • इन सभी आवेदनों के लिये आवश्यक मानक दस्तावेज़ों में मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्रआवेदक का आधार कार्ड या पैन कार्डराशन कार्ड या रिश्ते का सबूतसंपत्ति के कागजात या बैंक विवरण और मूल वसीयत (यदि प्रोबेट के लिये आवेदन कर रहे हैं) सम्मिलित हैं। 

निष्कर्ष 

उत्तराधिकार विधि जटिल लग सकती हैंपरंतु इन बुनियादी शब्दों को समझने से प्रक्रिया काफी आसान हो जाती है। चाहे आप परिवार के सदस्य हों जो अपना हक पाने की कोशिश कर रहे होंया अधिवक्ता हों जो मुवक्किलों की सहायता कर रहे होंसही विधिक प्रक्रिया की जानकारी होने से समयमेहनत और अनावश्यक विवादों से बचा जा सकता है। उत्तराधिकार प्रमाण पत्रप्रोबेट और प्रशासन पत्र में से चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि मृतक ने वसीयत छोड़ी थी या नहींसंपत्ति का स्वरूप और स्थान क्या हैऔर क्या वारिसों के बीच विवाद होने की संभावना है।