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पारिवारिक कानून
भारत में बहुविवाह
«04-Dec-2025
परिचय
बहुविवाह दो शब्दों से मिलकर बना है: " Poly", जिसका अर्थ है "अनेक", और "Gamos", जिसका अर्थ है "विवाह"। परिणामस्वरूप, बहुविवाह कई विवाहों से संबंधित है।
इस प्रकार, बहुविवाह वह विवाह व्यवस्था है जिसमें किसी भी लिंग का पति/पत्नी एक ही समय में एक से अधिक पति/पत्नी रख सकता/सकती है।
- परंपरागत रूप से भारत में बहुविवाह — विशेषतः पुरुष द्वारा एक से अधिक पत्नियाँ रखने की प्रथा — व्यापक रूप से प्रचलित थी, किंतु हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने इस प्रथा को विधिविरुद्ध/अवैध घोषित कर दिया।
- विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 अंतर्धार्मिक विवाहों को वैधता प्रदान करता है, परंतु बहुविवाह को निषिद्ध करता है।
बहुविवाह के प्रकार
बहुविवाह (Polygyny) :
- यह वैवाहिक व्यवस्था है जिसमें एक पुरुष की कई पत्नियाँ होती हैं। इस रूप में बहुविवाह अधिक प्रचलित या व्यापक है।
- ऐसा माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के राजाओं और सम्राटों की कई पत्नियाँ होती थीं।
बहुपतित्व (Polyandry) :
- यह विवाह का एक प्रकार है जिसमें एक महिला के कई पति होते हैं।
- फिर भी, यह एक अत्यंत असामान्य घटना हो सकती है।
द्विविवाह (Bigamy) :
- जब कोई व्यक्ति पूर्व वैध विवाह की स्थिति में रहते हुए पुनः किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करता है, तो इस कृत्य को द्विविवाह कहा जाता है और ऐसा करने वाले व्यक्ति को द्विविवाही (Bigamist) कहा जाता है।
- भारत सहित अनेक देशों में यह एक दण्डनीय आपराधिक अपराध है। अर्थात्, किसी वैध विवाह के अस्तित्व में रहते हुए किसी अन्य से विवाह करना द्विविवाह कहलाता है।
भारत में विवाह से संबंधित विभिन्न धार्मिक विधि
हिंदू:
- 1955 में लागू हुए हिंदू विवाह अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि हिंदू बहुविवाह को समाप्त कर दिया जाएगा तथा इसे अपराध घोषित कर दिया जाएगा।
- अधिनियम की धारा 11 के अधीन, जिसमें कहा गया है कि बहुविवाह शून्य है, अधिनियम में सावधानीपूर्वक एकल विवाह को अनिवार्य बनाया गया है।
- जब कोई ऐसा करता है तो उसे उसी अधिनियम की धारा 17 के साथ-साथ भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (अब भारतीय न्याय संहिता) के प्रावधानों के अधीन दण्डित किया जाता है।
- चूँकि बौद्ध, जैन और सिख सभी को हिंदू माना जाता है और उनके पास अपनी विधि नहीं हैं, इसलिये हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान इन तीन धार्मिक संप्रदायों पर भी लागू होते हैं।
पारसी:
- पारसी विवाह और विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1936 ने पहले ही द्विविवाह को अवैध घोषित कर दिया था।
- कोई भी पारसी, जो अपने जीवनकाल में वैध रूप से विवाहित है, यदि वह अपनी पत्नी या पति से विधिक रूप से तलाक प्राप्त किये बिना अथवा अपने पूर्ववर्ती विवाह को निरस्त/विघटित कराए बिना पुनः विवाह करता/करती है, तो वह भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत निर्धारित दण्ड का भागी होगा/होगी।
मुस्लिम:
- अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा व्याख्यायित 'मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट (शरीयत) 1937 के अंतर्गत धाराएँ भारत में मुसलमानों पर लागू होती हैं।
- मुस्लिम विधि में बहुविवाह पर प्रतिबंध नहीं है क्योंकि इसे एक धार्मिक प्रथा के रूप में मान्यता प्राप्त है, इसलिये वे इसे संरक्षित रखते हैं और इसका पालन करते हैं।
- तथापि, यह स्पष्ट है कि यदि यह प्रथा संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के प्रतिकूल पाई जाती है तो न्यायालय द्वारा इसे निरस्त किया जा सकता है।
- भारतीय दण्ड संहिता एवं व्यक्तिगत (Personal) विधियों के मध्य विरोध की स्थिति में विशेष विधि सामान्य विधि पर प्रबल होती है, अतः व्यक्तिगत विधियाँ प्रभावी रूप से लागू की जाती हैं - यह एक स्थापित विधिक सिद्धांत है।
बहुविवाह से संबंधित न्यायिक दृष्टिकोण
- परायणकांडियाल बनाम के. देवी और अन्य (1996):
- उच्चतम न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि एकल विवाह संबंध हिंदू समाज का मानक और विचारधारा है, जो दूसरे विवाह का तिरस्कार करता है और उसकी निंदा करता है।
- धर्म के प्रभाव के कारण बहुविवाह को हिंदू संस्कृति का भाग बनने की अनुमति नहीं दी गई।
- बॉम्बे राज्य बनाम नरसु अप्पा माली (1951):
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि बॉम्बे (हिंदू द्विविवाह निवारण) अधिनियम, 1946 विभेदकारी नहीं था।
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य विधानमंडल को लोक कल्याण और सुधार के लिये उपाय लागू करने का अधिकार है, भले ही वह हिंदू धर्म या रीति-रिवाज का उल्लंघन करता हो।
- जावेद एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य (2003):
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 25 के अधीन स्वतंत्रता सामाजिक सद्भाव, गरिमा और कल्याण के अधीन है।
- मुस्लिम विधि चार महिलाओं से विवाह की अनुमति देता है, किंतु यह अनिवार्य नहीं है।
- चार महिलाओं से विवाह न करना धार्मिक प्रथा का उल्लंघन नहीं होगा।
किन देशों में बहुविवाह विधिक है?
- भारत, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों में बहुविवाह केवल मुसलमानों के लिये ही अनुमेय और विधिक है।
- अल्जीरिया, मिस्र और कैमरून जैसे देशों में बहुविवाह अभी भी मान्यता प्राप्त है और प्रचलित है। ये दुनिया के एकमात्र ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ बहुविवाह अभी भी वैध है।
निष्कर्ष
यह सत्य है कि भारतीय समाज में बहुविवाह लंबे समय से विद्यमान है, और यद्यपि अब यह अवैध है, फिर भी कुछ क्षेत्रों में इसका प्रचलन है। बहुविवाह की प्रथा किसी एक धर्म या संस्कृति तक सीमित नहीं है और अतीत में इसे विभिन्न कारणों से उचित ठहराया गया है। यद्यपि, जैसे-जैसे समाज विकसित हुआ है, बहुविवाह के औचित्य अब मान्य नहीं रहे हैं, और इस प्रथा को त्याग दिया जाना चाहिये।