होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

साक्षी की जिरह

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 30-Nov-2023

परिचय:

न्याय करने के लिये साक्षी की सत्यता का परीक्षण करना काफी महत्त्वपूर्ण है। एक बार जब हम किसी साक्षी की योग्यता पर निर्णय ले लेते हैं तो अगला कदम उनका परीक्षण होता है। यह न्यायालयी कार्यवाही का एक अपरिहार्य हिस्सा है क्योंकि यह न्यायालय को सच्चाई का पता लगाने में सहायता करता है।

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 137 जिरह को विरोधी पक्ष द्वारा साक्षी की जाँच के रूप में परिभाषित करती है।

परीक्षण के प्रकार एवं क्रम:

  • परीक्षण तीन प्रकार के होते हैं और IEA की धारा 138 परीक्षण का क्रम प्रदान करती है जो इस प्रकार है:
    • मुख्य परीक्षण
    • जिरह
    • पुन: परीक्षण

जिरह का उद्देश्य:

  • जिरह का उद्देश्य साक्षी की साख पर दोष लगाकर उसकी सत्यता का परीक्षण करना है।
  • जिरह को अक्सर एक शक्ति उपकरण के रूप में माना जाता है जिसके द्वारा प्रतिवादी साक्षी के साक्ष्य में झूठ से सच निकाल सकता है।

जिरह में प्रासंगिक प्रश्न:

  • IEA की धारा 138 के अनुसार, जिरह प्रासंगिक तथ्यों से संबंधित होनी चाहिये, किंतु जिरह उन तथ्यों तक सीमित नहीं होनी चाहिये जिनकी साक्षी ने अपने मुख्य परीक्षण में गवाही दी थी।
  • IEA की धारा 143 के अनुसार अग्रणी प्रश्न (कोई भी प्रश्न जो उस उत्तर का सुझाव देता है जिसे प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति प्राप्त करना चाहता है या प्राप्त करने की अपेक्षा करता है, लीडिंग क्वेश्चन/अग्रणी प्रश्न कहलाता है) जिरह में पूछा जा सकता है।
  • IEA की धारा 146 जिरह में निम्नलिखित प्रश्न पूछने की अनुमति देती है:
    • उसकी सत्यता को परखने के लिये प्रश्न।
    • यह जानने के लिये प्रश्न कि वह कौन है और जीवन में उसकी स्थिति क्या है?
    • उसके चरित्र पर आघात पहुँचाकर, उसकी साख को हिलाने वाले प्रश्न, हालाँकि ऐसे प्रश्नों के उत्तर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे दोषी ठहरा सकते हैं या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे दंड या ज़ब्ती के लिये उजागर कर सकते हैं।
    • बशर्ते कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376, धारा 376A, धारा 376B, धारा 376C, धारा 376D या धारा 376E के तहत अपराध के लिये अभियोजन या ऐसे किसी अपराध को करने का प्रयास, जहाँ सहमति का प्रश्न एक मुद्दा है, ऐसी सहमति या सहमति की गुणवत्ता को साबित करने के लिये किसी भी व्यक्ति के साथ ऐसे पीड़ित के सामान्य अनैतिक चरित्र या पिछले यौन अनुभव के बारे में सबूत पेश करना या पीड़ित की जिरह में सवाल करने की अनुमति नहीं होगी।

क्या कोई पक्ष अपने ही साक्षी से जिरह कर सकता है?

  • हाँ, एक पक्ष अपने साक्षी से जिरह कर सकता है और इससे संबंधित प्रावधान IEA की धारा 154 है।
  • यह धारा पक्ष द्वारा अपने स्वयं के साक्षी से किये गए प्रश्न से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    (1) न्यायालय, अपने विवेक से साक्षी को बुलाने वाले व्यक्ति को उससे कोई भी प्रश्न पूछने की अनुमति दे सकता है जिसे विरोधी पक्ष द्वारा जिरह में पूछा जा सकता है।
    (2) इस धारा की कोई भी बात उपधारा (1) के तहत अनुमति प्राप्त व्यक्ति को ऐसे साक्षी के साक्ष्य के किसी भी हिस्से पर भरोसा करने से वंचित नहीं करेगी।

कुछ मामलों में परिसाक्ष्य पर प्रभाव:

  • जहाँ कोई जिरह नहीं होती:
    • जब कोई तथ्य मुख्य परीक्षण में कहा जाता है और उसके बाद कोई जिरह नहीं होती है तो यह माना जाता है कि दूसरा पक्ष इसे सच मानता है जब तक कि सबूत पहली बार में अविश्वसनीय न लगे।
  • किसी साक्षी से जिरह करने का कोई अवसर नहीं दिया गया:
    • यदि किसी साक्षी से जिरह करने का कोई अवसर नहीं दिया जाता है तो उसके साक्ष्य पर विचार नहीं किया जाना चाहिये।
  • जहाँ साक्षी जिरह के लिये उपस्थित नहीं होता:
    • गोपाल सरवन बनाम सत्य नारायण (1988) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि कोई साक्षी मुख्य जाँच के बाद जिरह के लिये उपस्थित नहीं होता है, तो उसकी परिसाक्ष्य का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता है।
  • कुछ मामलों में कोई जिरह नहीं:
    • जहाँ किसी व्यक्ति को केवल IEA की धारा 139 के तहत दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये बुलाया जाए, वहाँ जिरह नहीं हो सकती।
    • धारा 139 किसी दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने के लिये बुलाए गए व्यक्ति की जिरह से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी दस्तावेज़ को पेश करने के लिये बुलाया गया व्यक्ति केवल इस तथ्य से साक्षी नहीं बन जाता है कि वह उसे पेश कर रहा है और उससे तब तक जिरह नहीं की जा सकती जब तक कि उसे साक्षी के रूप में नहीं बुलाया जाता है।