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आपराधिक कानून
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम, 2013 का अवलोकन
«02-Dec-2025
परिचय
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013, जिसे सामान्यत: महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (POSH) अधिनियम के नाम से जाना जाता है, महिलाओं को कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से बचाने के लिये बनाई गई एक ऐतिहासिक विधि है। यह अधिनियम भारत के पितृसत्तात्मक समाज में महिला संगठनों और अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा दशकों की वकालत के बाद सामने आया।
इस विधि के लिये उत्प्रेरक 1992 का भंवरी देवी सामूहिक बलात्संग मामला था। हरियाणा सरकार की एक सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी का बाल विवाह रोकने के लिये काम करते समय सामूहिक बलात्कार किया गया था। अभियुक्त के दोषमुक्त होने के बाद, गैर-सरकारी संगठनों ने 1997 में उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अधीन महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई। न्यायालय ने इस विधिक कमी को दूर करने के लिये विशाखा दिशानिर्देश जारी किये, किंतु महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम को 2013 में लागू होने में 16 वर्ष लग गए।
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (POSH) अधिनियम
- यह अधिनियम कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से निपटने के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है। यह मानता है कि इस तरह का उत्पीड़न अक्सर सिर्फ़ लैंगिक इच्छा व्यक्त करने के बजाय अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये किया जाता है, जिसका महिलाओं के भावनात्मक स्वास्थ्य और पेशेवर विकास पर गहरा असर पड़ता है।
- लैंगिक उत्पीड़न की परिभाषा (धारा 2(ढ)):
- अधिनियम में लैंगिक उत्पीड़न को लैंगिक प्रकृति के किसी भी अवांछनीय कार्य या व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है - मौखिक, शारीरिक या अमौखिक - जिसमें सम्मिलित हैं:
- अवांछनीय शारीरिक संपर्क और अग्रगमन
- लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध करना
- लैंगिक अत्युक्त टिप्पणियां करना
- अश्लील साहित्य दिखाना
- लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण
- दायरा (धारा 2(ण)):
यह अधिनियम सभी सरकारी और निजी कार्यस्थलों की बात करता है, चाहे उनका आकार या स्थान कुछ भी हो। - लैंगिक उत्पीड़न की परिस्थितियाँ (धारा 3):
- निम्नलिखित परिस्थितियाँ लैंगिक आचरण से संबंधित होने पर लैंगिक उत्पीड़न मानी जा सकती हैं:
- अधिमानी व्यवहार के विवक्षित या सुस्पष्ट वचन
- अहितकर व्यवहार का खतरा
- नियोजन की स्थिति को लेकर धमकी
- कार्य में हस्तक्षेप
- अभित्रासमय, संतापकारी या प्रतिकूल कार्य वातावरण बनाना
- अपमानजनक व्यवहार से स्वास्थ्य या सुरक्षा प्रभावित होने की संभावना
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (POSH) अधिनियम के उद्देश्य
- निवारण : लैंगिक उत्पीड़न के निवारण के लिये जागरूकता उत्पन्न करना और तंत्र स्थापित करना।
- प्रतिषेध : कार्यस्थल पर उत्पीड़न के सभी रूपों पर विधिक रूप से प्रतिबंध लगाएं।
- प्रतितोष: प्रभावी समयबद्ध परिवाद निवारण तंत्र प्रदान करना।
- संरक्षण : महिलाओं के समता और गरिमा के सांविधानिक अधिकारों की रक्षा करना।
- आत्मविश्वास निर्माण : महिला कर्मचारियों को सुरक्षा तंत्र में विश्वास दिलाना।
- सुरक्षित कार्यस्थल बनाना : उत्पीड़न मुक्त कार्य वातावरण को बढ़ावा देना।
- शीघ्र न्याय : कुशल परिवाद समाधान के माध्यम से न्यायिक कार्यभार कम करना।
निष्कर्ष
महिला समूहों और अधिवक्ताओं के दशकों के संघर्ष के बाद, महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013, कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है। यह स्पष्ट परिभाषाओं, सुदृढ़ निवारण तंत्रों और उल्लंघन पर कठोर दण्ड के साथ व्यापक प्रावधान प्रदान करता है।