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सांविधानिक विधि
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत संघ एवं अन्य (2014)
« »19-Aug-2025
परिचय
उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय ने भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सांविधानिक अधिकारों को संबोधित किया। न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तृतीय लिंग' के रूप में मान्यता दी और व्यापक विधिक सुरक्षा स्थापित की, जिससे भारत में LGBTQ+ अधिकारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया, क्योंकि उन्होंने स्वयं लिंग की पहचान करने के अधिकार की पुष्टि की और सकारात्मक कार्रवाई के उपायों को अनिवार्य बनाया।
तथ्य
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने ट्रांसजेंडर लोगों को विधिक मान्यता देने की मांग करते हुए याचिका दायर की।
- याचिकाकर्त्ताओं में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और पूज्य माता नसीब कौर जी महिला कल्याण सोसायटी जैसे सामाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित थे।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक संबंधों में व्यवस्थित भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- ट्रांसजेंडर समुदाय ने भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 के अधीन मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा किया।
- याचिकाकर्त्ताओं ने ट्रांसजेंडर लोगों, हिजड़ों और अन्य गैर-द्विआधारी लिंग समूहों सहित ‘तृतीय लिंग' श्रेणी को मान्यता देने की मांग की।
- पारंपरिक पुरुष-महिला द्विआधारी वर्गीकरण के अंतर्गत विधिक मान्यता के अभाव के कारण समुदाय को मूल अधिकारों से वंचित होना पड़ा।
विवाद्यक
- क्या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 'तृतीय लिंग' के रूप में विधिक मान्यता का अधिकार है।
- क्या ट्रांसजेंडर अधिकारों से वंचित करना अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 के अधीन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- क्या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान स्वयं बताने का अधिकार है।
- क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति सकारात्मक कार्रवाई के हकदार हैं।
- क्या राज्य का ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और विधिक संरक्षण प्रदान करने का दायित्त्व है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी ने कहा कि:
- लिंग पहचान व्यक्तिगत पहचान के मूल का प्रतिनिधित्व करती है और व्यक्तिगत स्वायत्तता और गरिमा से संबंधित है।
- समाज को व्यक्तियों पर लिंग संबंधी अपेक्षाएँ नहीं थोपनी चाहिये।
- तृतीय लिंग के रूप में पहचान का सांविधानिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता संरक्षण से संबंधित है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति विभेद अनुच्छेद 14 की समता के प्रत्याभूत अधिकार का उल्लंघन है।
- लिंग के आधार पर विभेद पर रोक लगाने वाले अनुच्छेद 15 और 16 का विस्तार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर भी होना चाहिये।
- अनुच्छेद 21 के अधीन प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में गरिमा के साथ जीने और लिंग पहचान व्यक्त करने का अधिकार सम्मिलित है।
- लिंग पहचान को अभिव्यक्त करने के अधिकार से वंचित करना व्यक्ति की गरिमा का उल्लंघन है तथा उत्पीड़न माना जाता है।
- ट्रांसजेंडर लोगों को सामाजिक विभेद से सुरक्षा के साथ-साथ अपनी पहचान प्रदर्शित करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिये।
- राज्य का दायित्त्व है कि वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आवश्यक अधिकार प्राप्त कराने के लिये सक्रिय कदम उठाए।
न्यायालय का निर्णय:
- भारतीय संविधान के अधीन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 'तृतीय लिंग' के रूप में मान्यता दी गई ।
- लिंग पहचान की स्व-पहचान के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध विभेद को समता और गैर-भेदभाव की सांविधानिक प्रत्याभूति का उल्लंघन है।
- केंद्र और राज्य सरकारों को शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और लोक सेवाओं में आरक्षण सहित सकारात्मक कार्रवाई के उपाय प्रदान करने का निदेश दिया गया।
- सरकारों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने वाले कल्याणकारी कार्यक्रम विकसित करने का अधिकार दिया गया।
- अन्य नागरिकों के समान आधार पर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया।
- सरकार को सामाजिक विभेद को समाप्त करने के उपाय करने का निदेश दिया गया।
- सामाजिक विभेद से निपटने और ट्रांसजेंडर अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये लोक शिक्षा पहल की आवश्यकता पर बल दिया गया।
निष्कर्ष
इस ऐतिहासिक निर्णय ने भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिये एक व्यापक विधिक ढाँचा स्थापित किया और उन्हें सांविधानिक संरक्षण के हकदार समान नागरिक के रूप में मान्यता दी। न्यायालय द्वारा 'तृतीय लिंग' को मान्यता देना और सकारात्मक कार्रवाई का आदेश देना सांविधानिक सिद्धांतों की एक प्रगतिशील व्याख्या का प्रतिनिधित्व करता है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये गरिमा और समता सुनिश्चित करता है और साथ ही भेदभाव को समाप्त करने और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने के लिये व्यवस्थागत परिवर्तनों का निदेश देता है।