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खुला नामा से परे मेहर की वापसी साबित होनी चाहिये

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 27-Oct-2025

"तलाक और मुबारत के मामले की तरह खुला भी न्यायेतर तलाक का एक तरीका है और कुटुंब न्यायालय को केवल यह सत्यापित करना होता है कि क्या उद्घोषणा/घोषणा उचित तरीके से की गई थी और क्या इससे पहले सुलह का कोई प्रभावी प्रयत्न किया गया था।" 

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और एम.बी. स्नेहलता 

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

मुहम्मद अशर.के. बनाम मुहसिना.पी.के. (2025) के मामलेमें न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ नेएक पत्नी द्वारा शुरू किये गए खुला तलाक को मान्यता देने के कुटुंब न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा, तथा इस तरह के न्यायेतर इस्लामी तलाक को मान्य करने की आवश्यकताओं को स्पष्ट किया। 

मुहम्मद अशर.के. बनाम मुहसिना.पी.के. (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अपीलकर्त्ता और प्रत्यर्थी काविवाह 15 दिसंबर, 2019 को हुआ था और 23 अप्रैल, 2021 को उनके एक पुत्र का जन्म हुआ। 
  • दोनों पक्षकारों के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके कारण प्रत्यर्थी (पत्नी) ने अपीलकर्त्ता (पति) को तलाक देते हुए 5 अक्टूबर, 2023 को खुलानामा जारी किया। 
  • तत्पश्चात्, प्रत्यर्थी ने थालास्सेरी के कुटुंब न्यायालय के समक्ष O.P. No. 998/2023 दायर किया, जिसमेंअपीलकर्त्ता से तलाकशुदा के रूप में अपनी वैवाहिक स्थिति की घोषणा की मांग की गई। 
  • कुटुंब न्यायालय नेप्रत्यर्थी का PW1 के रूप में कथन दर्ज करने तथा उसके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों का मूल्यांकन करने के बाद याचिका कोअनुमति दे दी। 
  • अपीलकर्त्ता ने कुटुंब न्यायालय के आदेश को दो मुख्य आधारों पर चुनौती दी: खुलानामा जारी होने से पहले पक्षकारों के बीच उचित सुलह का अभाव, तथा प्रत्यर्थी द्वारा उससे प्राप्त मेहर (दहेज) को वापस न करना। 
  • अपीलकर्त्ता ने असबी.के.एन. बनाम हाशिम.एम.यू. (2021) के पूर्व निर्णय पर विश्वास करते हुए तर्क दिया कि कुटुंब न्यायालय को यह पता लगाना चाहिये कि क्या प्रभावी सुलह प्रयासों से पहले खुला की वैध घोषणा हुई थी और क्या दहेज वापस करने का प्रस्ताव था। 
  • प्रत्यर्थी के अधिवक्ता ने तर्क दिया किखुला नामा मेंमध्यस्थों के. अब्दुल सथार और पी.के. महमूद के माध्यम से सुलह के प्रयासों का उल्लेख किया गया है, जिसे अपीलकर्त्ता ने खारिज कर दिया। 
  • मेहर के संबंध में, प्रत्यर्थी ने अपनी याचिका और परिसाक्ष्य में कहा कि मेहर (सोने के 10 सिक्के) अपीलकर्त्ता द्वारा खुलानामा जारी करने से पहले ही ले लिये गए थे। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने विवाह प्रमाणपत्र (Ext.A1), हस्तलिखित खुला नामा (Ext.A2), खुला से पहले जारी विधिक नोटिस (Ext.A3) और पावती दस्तावेज़ों (Ext.A4-A6) की जांच की। 
  • यह स्वीकार करते हुए कि खुलानामा मेंमेहर की वापसी का उल्लेख नहीं किया गया है, न्यायालय ने कहा कि प्रत्यर्थी ने अपनी याचिका, साक्ष्य शपथपत्र और PW1 के रूप में परिसाक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा है कि मेहर को अपीलकर्त्ता ने खुलानामा जारी होने से पहले ही ले लिया था। 
  • न्यायालय ने पाया कि प्रत्यर्थियों के अभिवचन और कथन से सतर्क होते हुए भी, अपीलकर्त्ता ने न तोसबूत के तौर पर शपथपत्र दायर किया और न ही कुटुंब न्यायालय के समक्ष अपना कथन पेश करने का विकल्प चुना। 
  • सुलह के संबंध में, न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्त्ता का यह तर्क कि मध्यस्थ प्रत्यर्थी के नातेदार थे, वास्तव में कुटुंब न्यायालय के इस निष्कर्ष को पुष्ट करता है कि सुलह के प्रयत्न किये गए थे, तथा यह भी कहा कि अपीलकर्त्ता अपने अभिवचनों में इस पक्षपातपूर्ण आरोप को उठाने में असफल रहा। 
  • न्यायालय ने असबी.के.एन. बनाम हाशिम.एम.यू. के मामले पर विश्वास किया, जिसमेंमेहर प्रश्न के मूल्यांकन के लिये तीन तरीके दिये गए हैं:खुलानामा का मूल्यांकन करना, जारी की गई किसी भी संसूचना की जांच करना, या पक्षकारों के कथनों को अभिलिखित करना। 
  • न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता द्वारा विचारण न्यायालय के समक्ष साक्ष्य शपथपत्र या प्रस्ताव कथन दाखिल करने में असफलता ने प्रत्यर्थी के इस दावे की सत्यता को स्थापित कर दिया कि मेहर को ले जाया गया था। 
  • असबी.के.एन. (supra) का हवाला देते हुए, न्यायालय ने दोहराया किखुला, तलाक और मुबारत की तरह, न्यायेतर तलाक का एक तरीका है, और कुटुंब न्यायालय की भूमिका केवल यह सत्यापित करना है कि क्या घोषणा ठीक से की गई थी और क्या इससे पहले प्रभावी सुलह के प्रयत्न किये गए थे। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सुलह का प्रयत्न और प्रत्यर्थी के साथ मेहर की अनुपस्थिति दोनों ही प्रथम दृष्टया सिद्ध थे, तथा कुटुंब न्यायालय के निर्णय में कोई त्रुटि नहीं पाई गई। 
  • यद्यपि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायेतर तलाक का समर्थन, अपीलकर्त्ता की विधि के अनुसार तलाक को चुनौती देने के अधिकार को समाप्त नहीं करता है, तथा असबी.के.एन. के पूर्व निर्णय के अनुसार स्वतंत्रताएँ सुरक्षित हैं। 
  • अपीलखारिज कर दी गई।  
  • खुला क्या है? 

बारे में: 

  • खुला इस्लामी विधि में तलाक का एक रूप है, जिसमें पत्नी विवाह विच्छेद की पहल करती है। 
  • तलाक (पति द्वारा शुरू किया गया तलाक) के विपरीत, खुला एक महिला को अपने पति की सहमति के बिना भी तलाक लेने की अनुमति देता है, सामान्यत: मेहर (दहेज) या अन्य प्रतिफल लौटाकर। 
  • खुला को तलाक का एक न्यायेतर रूप माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इसे औपचारिक न्यायालय कार्यवाही के बाहर निष्पादित किया जा सकता है। 
  • इस प्रक्रिया में सामान्यत: पत्नी द्वारा खुलानामा (तलाकनामा) के माध्यम से विवाह विच्छेद की इच्छा व्यक्त की जाती है।  
  • इस्लामी विधिशास्त्र खुला सहित किसी भी प्रकार के तलाक को अंतिम रूप देने से पहले सुलह के प्रयत्नों को प्रोत्साहित करता है। 

वैध खुला के लिये आवश्यकताएँ: 

भारत में न्यायिक पूर्व निर्णयों, विशेष रूप से असबी.के.एन. बनाम हाशिम.एमयू (2021) के आधार पर, न्यायालयों कोखुला तलाक को मान्यता देते समय कुछ तत्त्वों को सत्यापित करना चाहिये: 

  • खुला की उचित उद्घोषणा या घोषणा की जानी चाहिये 
  • तलाक से पहले सुलह या समाधान के प्रभावी प्रयत्न होने चाहिये 
  • पत्नी द्वारा मेहर (दहेज) लौटाने के प्रस्ताव का साक्ष्य अवश्य होना चाहिये, जिसे निम्नलिखित के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है: खुलानामा, तलाक के संबंध में जारी किया गया पत्र, या न्यायलय के समक्ष पक्षकारों द्वारा अभिलिखित किये गए कथन 

कुटुंब न्यायालयों की भूमिका: 

  • कुटुंब न्यायालय न्यायेतर तलाक के मामले में विस्तृत जांच नहीं करते, अपितु यह सत्यापित करते हैं कि क्या तलाक की घोषणा उचित तरीके से की गई थी और क्या इससे पहले प्रभावी सुलह के प्रयत्न किये गए थे। 
  • न्यायालय दस्तावेज़ों की जांच और पक्षकारों के कथनों को अभिलिखित करने के माध्यम से खुला आवश्यकताओं के अनुपालन का आकलन कर सकते हैं। 
  • तलाक को मान्यता देने की मांग करने वाले पक्षकार द्वारा किये गए दावों का खंडन करने का भार शपथपत्र या कथन के माध्यम से विरोधी पक्षकार पर पड़ता है। 

न्यायेतर इस्लामी तलाक की मान्यता: 

  • न्यायालयों द्वारा न्यायेतर तलाक का समर्थन, परिवर्तित वैवाहिक स्थिति को विधिक मान्यता प्रदान करता है। 
  • यद्यपि, ऐसी मान्यता दूसरे पक्षकार के उचित विधिक कार्यवाही के माध्यम से तलाक को चुनौती देने के अधिकार को बाधित नहीं करती है। 
  • यह दृष्टिकोण धार्मिक व्यक्तिगत विधियों की मान्यता को न्यायिक निगरानी की आवश्यकता के साथ संतुलित करता है जिससे निष्पक्षता और आवश्यक आवश्यकताओं का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।