इस दिवाली, पाएँ सभी ऑनलाइन कोर्सेज़ और टेस्ट सीरीज़ पर 50% तक की छूट। ऑफर केवल 14 से 18 अक्तूबर तक वैध।










होम / करेंट अफेयर्स

वाणिज्यिक विधि

आयकर अधिनियम की धारा 278ख

    «    »
 14-Oct-2025

राकेश अग्रवाल बनाम आयकर अधिकारी 

आयकर अधिनियम की धारा 278ख के अनुसार कंपनी और उसके अधिकारी दोनों ही अपराधों के लिये उत्तरदायी हैंलेकिन कंपनी के अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराने से पहले कंपनी को दोषी ठहराया जाना चाहिये।” 

न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा 

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही मेंन्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने यह निर्णय दिया कि किसी कंपनी के कार्यों के लिये किसी निदेशक पर व्यक्तिगत रूप से तब तक अभियोजन नहीं चलाया जा सकता जब तक कि कंपनी को स्वयं अभियुक्त न बनाया जाए। उन्होंने कहा कि कंपनी को पक्षकार न बनाना एक घातक दोष हैऔर इस बात पर बल दिया कि आयकर अधिनियम की धारा 278ख के अधीनकंपनी और उसके अधिकारियोंदोनों को संयुक्त रूप से दायित्त्व के लिये अभियोजित किया जाना चाहिये 

  • दिल्लीउच्च न्यायालय नेराकेश अग्रवाल बनाम आयकर अधिकारी (2025)मामले में यह निर्णय दिया 

राकेश अग्रवाल बनाम आयकर अधिकारी (2025) मामलेकी पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • मेसर्स एस.एन.आर. बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेडएक निजी कंपनीनिर्धारण वर्ष 2014-15, 2015-16 और 2016-17 के लिये अपनी कर देनदारियों का संदाय करने में असफल रही। इस संदाय न करने के परिणामस्वरूप आयकर विभाग ने 4,44,82,912 रुपए की कर बकाया राशि की मांग की। विभाग द्वारा शुरू की गई वसूली कार्यवाही के लंबित रहने के दौरानयह पता चला कि कंपनी के निदेशक राकेश अग्रवाल ने अपनी बहू को रजिस्ट्रीकरण संख्या UK 07 BE 2759 वाली एक ऑडी कार बिना किसी उचित प्रतिफल के अंतरित कर दी थी। 
  • आयकर विभाग नेइस अंतरण को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 281 के अधीनइस आधार पर शून्य घोषित कर दिया कि यह वसूली की कार्यवाही को असफल करने के लिये किया गया था। परिणामस्वरूपविभाग ने कंपनी के निदेशकोंनीलेश अग्रवाल और राकेश अग्रवालदोनों के विरुद्ध आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 276 के अधीन आपराधिक अभियोजन शुरू कियाजो कर वसूली को असफल करने के लिये संपत्ति को हटानेछिपानेअंतरित करने या सुपुर्दगी के अपराध से संबंधित है। 
  • प्रधान आयकर आयुक्त ने आयकर अधिनियम की धारा 276 के अधीन याचिकाकर्त्ता-निदेशकों के विरुद्ध अभियोजन चलाने की अनुमति प्रदान की। तत्पश्चात् आयकर कार्यालय ने विचारण न्यायालय में निदेशकों के विरुद्ध परिवाद दर्ज कराया। यद्यपिउल्लेखनीय बात यह है कि कंपनीमेसर्स एस.एन.आर. बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेडको परिवादों में अभियुक्त नहीं बनाया गया था। याचिकाकर्त्ता-निदेशकों ने इस आधार पर अभियोजन की स्वीकार्यता पर आपत्ति जताई और तर्क दिया कि कंपनी को कार्यवाही में पक्षकार न बनाए जाने के कारणकेवल निदेशक के रूप में उनके विरुद्ध अभियोजन चलाना विधि के अधीन अनुमेय नहीं है। 
  • विचारण न्यायालय ने 06.06.2024 के आदेश द्वारायाचिकाकर्त्ता-निदेशकों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को खारिज कर दियाऔर माना कि परिवाद विचारणीय हैं। विचारण न्यायालय ने मामले को आरोप-निर्धारण के लिये सूचीबद्ध कर दिया। इन आदेशों से व्यथित होकरयाचिकाकर्त्ता निदेशकों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 278ख एकसांविधिक काल्पनिकता कानिर्माण करती है जिसके अनुसार कंपनी और उसके कारबार के संचालन के लिये उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्तिकंपनी द्वारा किये गए अपराध का दोषी माना जाता है। इस उपबंध में निहित विधायी आशय स्पष्ट है: कंपनीमुख्य अपराधी होने के नातेपहले कार्यवाही में एक अभियुक्त के रूप में अभियोगित की जानी चाहिये। उसके बाद ही उसके अधिकारियों और निदेशकों पर प्रतिनिधिक दायित्त्व लगाया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141 के अधीन विकसित विधिशास्त्रजिसमें समान प्रतिनिधिक दायित्त्व प्रावधान शामिल हैआयकर अधिनियम की धारा 278ख पर प्रत्यक्षत: लागू होती है। 
  • अनीता हाडा बनाम गॉडफादर ट्रैवल्स एंड टूर्स मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह बाध्यकारी सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि प्रतिनिधिक दायित्त्व प्रावधान के अधीन निदेशकों के विरुद्ध अभियोजन चलाने के लियेकंपनी का अभियोग अनिवार्य है। कंपनीएक न्यायिक व्यक्ति होने के नातेअभियुक्त के रूप में पक्षकार होनी चाहियेऔर उसको पक्षकार बनाए बिनानिदेशकों पर अभियोजन नहीं चलाया जा सकता। ऐसे अभियोजन का आधार कंपनी द्वारा स्वयं अपराध किये जाने पर आधारित हैऔर उसके पश्चात् ही उसके निदेशकों पर दायित्त्व लागू हो सकता है। 
  • न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामले में परिवाद पूरी तरह से कंपनी के बकाया करों और कंपनी की परिसंपत्तियों के कथित अंतरण से उत्पन्न देयता पर आधारित थीं। याचिकाकर्त्ता-निदेशकों के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से कोई स्वतंत्र आरोप नहीं लगाया गया था। 
  • दिनांक 31.10.2019 को जारी कारण बताओ नोटिस केवल कंपनी को संबोधित था और इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि याचिकाकर्त्ताओं पर अभियोजन "कंपनी के निदेशक की क्षमता में" चलाया जा रहा हैजिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि याचिकाकर्त्ताओं पर केवल प्रतिनिधिक दायित्त्व के आधार पर अभियोजन चलाया जा रहा है। 
  • न्यायालय ने कहा कि कंपनी को पक्षकार बनाने में लोपकेवल एक तकनीकी या प्रक्रियात्मक अनियमितता नहींहै जिसे परिवादों में बाद में संशोधन करके ठीक किया जा सकता है। अपितुयह लोप अधिकारिता की जड़ तक जाता है और पूरे अभियोजन को विधिक रूप से अस्थिर बना देता है। 
  • कंपनी को अभियुक्त बनाए बिनाकेवल निदेशक के रूप में याचिकाकर्त्ता-निदेशकों के विरुद्ध कार्यवाही जारी रखनाआयकर अधिनियम की धारा 278ख और अनीता हाडा में घोषित विधि के विपरीत होगाजिससे विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। 

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 278ख क्या है? 

  • अवलोकन और उद्देश्य: 
    • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 278प्रतिनिधिक दायित्त्व का एक ढाँचा स्थापित करती हैजो आपराधिक उत्तरदायित्त्व को कॉर्पोरेट संस्थाओं से लेकर उनके कार्यों की देखरेख करने वाले व्यक्तियों तक विस्तारित करती है। 
    • यह उपबंध सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति कॉर्पोरेट ढाँचे की आड़ में जवाबदेही से बच नहीं सकते। 
    • यह कंपनियोंफर्मों और व्यक्तियों के किसी भी संघ पर लागू होता हैचाहे वह निगमित हो या नहींतथा कर उल्लंघनों के लिये निर्णयकर्त्ताओं को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराने के लिये एक व्यापक तंत्र का निर्माण करता है। 
  • प्राथमिक दायित्त्व ढाँचा: 
    • धारा 278ख (1) में उपबंध है कि जहाँ आयकर अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया हैवहाँ उसके कारोबार के संचालन के लिये उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्ति के साथ-साथ स्वयं कंपनी भी अपराध की दोषी मानी जाएगी। 
    • ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है और तदनुसार दण्डित किया जा सकता है। यह उपबंध एक काल्पनिक कल्पना का निर्माण करता है जो दायित्त्व को कॉर्पोरेट इकाई से बढ़ाकर उत्तरदायी व्यक्तियों तक ले जाता है। 
    • इस धारा में एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय सम्मिलित है। यदि कोई व्यक्ति यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने अपराध को रोकने के लिये पूरी सावधानी बरती थीतो उसे दण्ड का सामना नहीं करना पड़ेगा 
    • यह रक्षा तंत्र उत्तरदायी व्यक्तियों को या तो जागरूकता की कमी या उल्लंघनों को रोकने के लिये उनके सक्रिय प्रयासों का प्रदर्शन करके उत्तरदायित्त्व से बचने की अनुमति देता है। 
  • सक्रिय संलिप्तता के लिये बढ़ा हुआ दायित्त्व: 
    • धारा 278(2) विशिष्ट कॉर्पोरेट अधिकारियों पर वर्धित उत्तरदायित्त्व अधिरोपित करती है। जहाँ यह साबित हो जाता है कि कोई अपराध किसी निदेशकप्रबंधकसचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मिलीभगत से किया गया हैया उसकी ओर से किसी उपेक्षा के कारण हुआ हैतो ऐसे अधिकारी को दोषी माना जाएगा। 
    • यह उपबंध उन व्यक्तियों पर लागू होता है जिनके कार्योंलोपों या प्राधिकरण ने प्रत्यक्षत: अपराध को बढ़ावा दिया। ऐसे अधिकारियों को धारा 278(1) के अधीन उपलब्ध "सम्यक् तत्परता" बचाव के लाभ के बिना दायित्त्व का सामना करना पड़ता है। 
  • समवर्ती दण्ड व्यवस्था: 
    • धारा 278ख (3) यह सुनिश्चित करती है कि कंपनी और उत्तरदायी व्यक्तियों दोनों को एक साथ दण्डित किया जा सकता है। 
    • जहाँ किसी अपराध के लिये कारावास और जुर्माने का उपबंध हैवहाँ कंपनी को जुर्माना देना पड़ता हैजबकि व्यक्तियों को कारावास और जुर्माना दोनों का सामना करना पड़ सकता हैं। इससे ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता है जहाँ केवल कॉर्पोरेट इकाई को ही दण्डित किया जाता है जबकि व्यक्ति परिणामों से बच जाते हैं 
  • दायरा और परिभाषा: 
    • धारा 278ख के स्पष्टीकरण में व्यापक रूप से "कंपनी" को परिभाषित किया गया हैजिसमें कोई भी निगमित निकायफर्मव्यक्तियों का संघ या व्यक्तियों का निकाय सम्मिलित हैचाहे वह निगमित हो या नहीं। 
    • "निदेशक" शब्द का अर्थ फर्मों में भागीदार तथा संघों के मामलों को नियंत्रित करने वाले किसी भी सदस्य से है। 
    • यह विस्तृत परिभाषा सुनिश्चित करती है कि यह प्रावधान विभिन्न व्यावसायिक संगठनों पर लागू होता है। 
  • बचाव और महत्त्व: 
    • कोई व्यक्ति अभियोजन से बचाव के लिये या तो अपराध के बारे में जानकारी न होने या रोकथाम में उचित सावधानी बरतने का सबूत देकर बचाव कर सकता है। सम्यक् तत्परता में आंतरिक अनुपालन तंत्रनिगरानी प्रणालियाँ लागू करना और अनियमितताओं का पता चलने पर सुधारात्मक कार्रवाई करना सम्मिलित है। 
    • धारा 278 व्यक्तिगत जवाबदेही से बचने के लिये कॉर्पोरेट ढाँचों के दुरुपयोग को रोककरव्यक्तिगत उत्तरदायित्त्व के माध्यम से अनुपालन को प्रोत्साहित करके और कर प्रथाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देकर महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करती है। व्यक्तियों को कंपनी के अपराधों का दोषी मानकरयह उपबंध एक निवारक प्रभाव उत्पन्न करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वरिष्ठ प्रबंधन कर उल्लंघनों के परिणामों से बचने के लिये कॉर्पोरेट आवरण के पीछे न छिप सके। इसलियेकंपनियों को अनुपालन को प्राथमिकता देनी चाहिये और इस धारा के अधीन अभियोजन के जोखिमों को कम करने के लिये मज़बूत आंतरिक नियंत्रण लागू करने चाहिये