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इनपुट टैक्स क्रेडिट

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 16-Oct-2025

आयुक्त व्यापार एवं कर दिल्ली बनाम मेसर्स शांति किरण इंडिया (प्रा.) लिमिटेड 

दिल्ली व्यापार एवं कर विभाग द्वारा दायर अपीलों को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा, "हमें उचित सत्यापन के बाद इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) लाभ प्रदान करने के उच्च न्यायालय के निदेश में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं मिला।" 

न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिश्वर 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में,न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंहकी पीठ नेनिर्णय दिया है कि वास्तविक खरीदारों को दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम के अधीन इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) से केवल इसलिये वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि विक्रेता VAT जमा करने में असफल रहा हैतथा इस तरह से वास्तविक क्रेताओं की रक्षा करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा गया है।  

  • उच्चतम न्यायालय ने कमिश्नर ट्रेड एंड टैक्स दिल्ली बनाम मेसर्स शांति किरण इंडिया (प्रा.) लिमिटेड (2025)के मामले में यह निर्णय दिया 

कमिश्नर ट्रेड एंड टैक्स दिल्ली बनाम मेसर्स शांति किरण इंडिया (प्रा.) लिमिटेड (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • ये अपीलें दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2004 के अंतर्गत रजिस्ट्रीकृत क्रेता डीलरों द्वारा किये गए इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) दावों से संबंधित विवादों से उत्पन्न हुईं। प्रतिवादी मेसर्स शांति किरण इंडिया (प्रा.) लिमिटेड एक रजिस्ट्रीकृत डीलर थाजिसने कुछ विक्रेता डीलरों से माल खरीदा थाजो संव्यवहार के समय विभाग के साथ विधिवत रजिस्ट्रीकृत थे। 
  • क्रेता डीलरों ने रजिस्ट्रीकृत विक्रेता डीलरों को उनके द्वारा जारी किये गए चालानों के अनुसार मूल्य वर्धित कर सहित संदाय किया था। चालानों में विक्रेताओं की कर पहचान संख्या सहित सभी आवश्यक विवरण सम्मिलित थेऔर संव्यवहार का दस्तावेज़ीकरण दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम की धारा 50 के अनुसार किया गया था।  
  • तत्पश्चात्इन संव्यवहारों के पूरा होने के बादविभाग द्वारा विक्रेता डीलरों का रजिस्ट्रीकरण रद्द कर दिया गया। यह पाया गया कि ये विक्रेता डीलर क्रेता डीलरों से वसूला गया कर सरकार के पास जमा करने में असफल रहेजिससे वे व्यतिकारी (डिफॉल्टर) बन गए। 
  • दिल्ली के व्यापार एवं कर आयुक्त ने क्रेता डीलरों के इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावों को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि विक्रेता डीलरों ने एकत्रित कर सरकार के पास जमा नहीं किया था। विभाग ने दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2004 की धारा 9(2)(छ) का हवाला दियाजिसमें इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की अनुमति देने के लिये शर्तें निर्धारित की गई थीं। 
  • क्रेता-डीलरों ने इस इंकार को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि वे वास्तविक क्रेता थे जिन्होंने सद्भावनापूर्वक कार्य किया थावैध चालानों के अनुसार करों का संदाय किया थाऔर विक्रेताओं द्वारा बाद में किये गए व्यतिक्रम में उनकी कोई जानकारी या संलिप्तता नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया कि विक्रेता-डीलरों द्वारा किये गए अपराध या व्यतिक्रम के लिये उन्हें दण्डित नहीं किया जाना चाहिये 
  • यह मामला दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम की धारा 9(1) और धारा 9(2)(के निर्वचन से संबंधित थाजो क्रमशः इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) प्रदान करने और अस्वीकार करने की शर्तों से संबंधित थे। मुख्य विवाद्यक यह था कि क्या एक क्रेता डीलरजिसने अपने सभी दायित्त्व पूरे कर लिये हैंको केवल इसलिये इनपुट टैक्स क्रेडिट से वंचित किया जा सकता है क्योंकि विक्रेता डीलर एकत्रित कर अधिकारियों के पास जमा करने में असफल रहा। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने इससे पहले ऑन क्वेस्ट मर्केंडाइजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली सरकार मामले में इसी तरह के एक मामले में निर्णय दिया  थाजिसमें उसने धारा 9(2)(छ) के प्रावधानों को पढ़ा थाजिससे किसी दुरभिसंधि या कपट के अभाव में वास्तविक क्रेताओं को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) से वंचित होने से बचाया जा सके। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि विचारणीय प्राथमिक विवाद्यक यह है कि क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ रजिस्ट्रीकृत क्रेता डीलरों को उपलब्ध हैजिन्होंने रजिस्ट्रीकृत विक्रेता डीलरों को उनके द्वारा जारी किये गए चालानों के आधार पर कर का संदाय किया हैभले ही उन विक्रेता डीलरों ने एकत्रित कर को सरकार के पास जमा नहीं किया हो। 
  • न्यायालय ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि संव्यवहार की तिथि पर विक्रेता डीलर विभाग में विधिवत रजिस्ट्रीकृत थे। उन विक्रेता डीलरों का रजिस्ट्रीकरण संव्यवहार के बाद ही रद्द किया गया थाऔर उन्होंने क्रेता डीलरों से वसूला गया कर जमा करने में व्यतिक्रम किया था 
  • न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी वास्तविक क्रेता डीलर हैंजिन्होंने रजिस्ट्रीकृत विक्रेता डीलरों को सद्भावनापूर्वक कर का संदाय किया था और इसलिये वे चालानों के उचित सत्यापन के बाद इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लाभ के हकदार थे। 
  • न्यायालय ने ऑन क्वेस्ट मर्केंडाइजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली सरकार के मामले में दिये गए निर्णय का संज्ञान लियाजिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम की धारा 9(2)(का निर्वचन करते हुए 'डीलर या डीलरों के वर्गकी अभिव्यक्ति को कमतर करके उन वास्तविक क्रय डीलरों को अपवर्जित कर दिया थाजिन्होंने वैध रूप से रजिस्ट्रीकृत विक्रेता डीलरों के साथ क्रय संव्यवहार किया थाजिन्होंने अधिनियम की धारा 50 के अनुसार कर चालान जारी किये थेजहाँ संव्यवहार में कोई बेमेल नहीं था। 
  • न्यायालय ने कहा कि जब तक प्रावधान को इस तरीके से नहीं पढ़ा जाताइसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना जाएगा। 
  • न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की कटौती का परिणाम यह होगा कि विभाग को दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम की धारा 9(2)(छ) का प्रयोग करके ऐसे क्रेता डीलर को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC)  देने से मना करने से रोक दिया जाएगाजिसने सद्भावपूर्वक ऐसे रजिस्ट्रीकृत विक्रेता डीलर के साथ क्रय संव्यवहार किया हैजिसने टी.आई.एन. संख्या को दर्शाते हुए कर चालान जारी किया है।  
  • न्यायालय ने आगे कहा कि यदि विक्रेता डीलर क्रेता डीलर से वसूला गया कर जमा करने में असफल रहता हैतो विभाग के लिये उपचार यह होगा कि वह दोषी विक्रेता डीलर के विरुद्ध कार्यवाही करके कर वसूल करे और क्रेता डीलर को इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) से वंचित न करे। यद्यपियदि विभाग को यह दर्शाने वाले प्रमाण मिलते हैं कि क्रेता डीलर और विक्रेता डीलर ने दुरभिसंधि की हैतो विभाग दिल्ली वर्धित कर अधिनियम की धारा 40क के अधीन कार्यवाही कर सकता है। 
  • न्यायालय ने पाया कि ऑन क्वेस्ट मर्केंडाइजिंग में उच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को विशेष अपील (सिविल) संख्या 36750/2017 के अधीन उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थीजिसका निपटारा उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप किये बिना कर दिया गया था। 
  • न्यायालय ने पाया कि विक्रेता डीलर के संव्यवहार की तिथि पर रजिस्ट्रीकृत होने के संबंध में कोई विवाद नहीं थाऔर न ही संबंधित संव्यवहार या चालान की सत्यता की किसी भी जांच के आधार पर उन पर संदेह किया गया था। न्यायालय को विक्रेता डीलरों द्वारा किये गए अपराध के संबंध में क्रेता डीलरों की ओर से किसी भी दुरभिसंधि या कपटपूर्ण आचरण का संकेत देने वाला कोई साक्ष्य नहीं मिला। 
  • न्यायालय ने कहा कि उसे उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई ठोस कारण नहीं मिला जिसमें उचित सत्यापन के बाद इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) लाभ प्रदान करने का निदेश दिया गया था। न्यायालय ने माना कि अपीलों में कोई दम नहीं है और तदनुसार उन्हें खारिज कर दिया।  

इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्या है? 

  • परिभाषा: 
    • इनपुट टैक्स क्रेडिट एक ऐसी व्यवस्था है जो रजिस्ट्रीकृत कारबारों को उनके कारबार के परिचालन में प्रयुक्त वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर चुकाए गए कर के लिये क्रेडिट का दावा करने की अनुमति देती है। 
  • मूल सिद्धांत: 
    • विक्रय (उत्पादन) पर कर का संदाय करते समयकोई कारबार क्रय (इनपुट) पर पहले से संदाय किये गए कर को घटा सकता है और केवल शेष राशि सरकार को भेज सकता है। 
  • उद्देश्य: 
    • इनपुट टैक्स क्रेडिट यह सुनिश्चित करके करों के व्यापक प्रभाव को समाप्त करता है कि कर केवल प्रत्येक चरण में मूल्य संवर्धन पर लगाया जाएन कि संपूर्ण संव्यवहार मूल्य पर।  
  • कार्यरत: 
    • जब कोई कारबार इनपुट खरीदता हैतो वह कर चुकाता है। जब वह आउटपुट बेचता हैतो वह कर वसूलता है। कारबार इनपुट टैक्स को आउटपुट टैक्स से समायोजित करता है और केवल अंतर का संदाय करता है। 
  • उदाहरण: 
    • एक निर्माता ₹1,00,000 + ₹18,000 GST में कच्चा माल खरीदता है। वह तैयार माल ₹2,00,000 + ₹36,000 GST में बेचता है। वह सरकार को केवल ₹18,000 (₹36,000 में से ₹18,000 घटाकर) का संदाय करता है। 
  • पात्रता की शर्तें: 
    • कारबार के पास वैध कर चालान होना चाहियेमाल या सेवाएँ प्राप्त होनी चाहियेआपूर्तिकर्त्ता ने सरकार के पास कर जमा किया होना चाहियेतथा प्राप्तकर्त्ता ने रिटर्न दाखिल किया होना चाहिये 
  • लाभ : 
    • इनपुट टैक्स क्रेडिट कारबारों और उपभोक्ताओं पर समग्र कर भार को कम करता हैपारदर्शिता को बढ़ावा देता हैअनुपालन को प्रोत्साहित करता हैतथा वस्तुओं और सेवाओं को अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उपलब्ध कराता है। 
  • प्रतिबंध: 
    • मोटर वाहन (निर्दिष्ट उपयोगों के सिवाय), खाद्य एवं पेय पदार्थअचल संपत्ति के निर्माणव्यक्तिगत उपभोग की वस्तुओं और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 17(5) के अधीन अन्य अवरुद्ध क्रेडिट पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं किया जा सकता है।  
  • सांविधिक ढाँचा 
    • इनपुट टैक्स क्रेडिट केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 16 द्वारा शासित हैजिसमें धारा 17(5) के अधीन निर्दिष्ट प्रतिबंध हैं। 

दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2004 

  • धारा 7 - कर संदाय का दायित्त्व यह उपबंध माल के विक्रय पर कर संदाय करने के लिये डीलरों की दायित्त्व से संबंधित है। 
  • धारा 9(1) - इनपुट टैक्स क्रेडिट यह उपबंध रजिस्ट्रीकृत डीलर को कर अवधि के दौरान होने वाली खरीद के टर्नओवर के संबंध में इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति देता हैजहाँ कर डीलर के रूप में उसकी गतिविधियों के दौरान उत्पन्न होता है और माल का उपयोग उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विक्रय करने के उद्देश्य से किया जाता है जो दिल्ली वर्धित कर अधिनियम की धारा के अधीन कर के लिये उत्तरदायी है।  
  • धारा 9(2) - इनपुट टैक्स क्रेडिट से इंकार करने की शर्तें यह उपधारा उन शर्तों को निर्धारित करती है जिनके अधीन रजिस्ट्रीकृत डीलर को इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति नहीं दी जाएगी। 
  • धारा 9(2)() - इनपुट टैक्स क्रेडिट अस्वीकृति के लिये विशिष्ट शर्त यह खण्ड क्रेता डीलर को इनपुट टैक्स क्रेडिट लाभ तभी उपलब्ध कराता है जब क्रेता डीलर द्वारा संदाय किया गया कर वास्तव में विक्रेता डीलर द्वारा सरकार के पास जमा कर दिया गया हो या आउटपुट कर देयता के विरुद्ध विधिपूर्वक समायोजित कर दिया गया हो और संबंधित कर अवधि के लिये दाखिल रिटर्न में सही ढंग से दर्शाया गया हो। 
  • धारा 40 – दुरभिसंधि से कार्य करने वाले डीलरों के विरुद्ध कार्यवाही यह उपबंध विभाग को उन डीलरों के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार देता हैजहाँ ऐसे भौतिक साक्ष्य विद्यमान होंजो दर्शाते हों कि क्रेता डीलर और विक्रेता डीलर ने कपट या कर चोरी के अपराध करने के लिये दुरभिसंधि से कार्य किया है। 
  • धारा 50 - कर चालान यह उपबंध रजिस्ट्रीकृत डीलरों द्वारा जारी किये जाने वाले वैध कर चालानों की आवश्यकताओं को अनिवार्य करता हैजिसमें कर पहचान संख्या (TIN), माल का विवरण और वसूला गया कर जैसे विवरण सम्मिलित हैं।