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आपराधिक कानून

मिथ्या दस्तावेज़ रचना

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 27-Oct-2025

"अंतरिम अभिरक्षा तय करने के प्रक्रम में दस्तावेज़ों की कूटरचना पर चर्चा नहीं की जा सकती।” 

न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लिकर 

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लिकरकी पीठ नेकहा कि ज़ब्त किये गए वाहन की अंतरिम अभिरक्षा तय करने के चरण में दस्तावेज़ों की कूटरचना से संबंधित विवाद्यकों की जांच नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा कि अंतरिम अभिरक्षा प्रदान करने के लिये, प्राथमिक विचार यह है कि क्या आवेदक वाहन का स्वामी है और क्या वाहन उसके कब्जे से ज़ब्त किया गया था। 

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय नेमेसर्स ए.यू. स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्यमें यह निर्णय दिया 

मेसर्स ए.यू. स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • .यू. स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड ने सुनील श्रीकृष्ण नांधे (प्रत्यर्थी संख्या 3) को एक बोलेरो पिक-अप वाहन खरीदने के लिये ऋण दिया, जिसका रजिस्ट्रीकरण नंबर MH 30 BD 0266 था। बैंक और उधारकर्त्ता के बीच एक आडमान करार किया गया, जिसमें पूर्ण ऋण चुकौती तक बैंक को स्वामित्व अधिकार दिया गया। 
  • ऋण चुकाए बिना, प्रत्यर्थी संख्या 3 ने कथित तौर पर कूटरचित दस्तावेज़ों, जिनमें एक गढ़ा हुआ अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) और फॉर्म संख्या 35 सम्मिलित था, का प्रयोग करके रवि प्रदीपराव डांगे (प्रत्यर्थी संख्या 2) को वाहन बेच दिया। बैंक ने आरोप लगाया कि कपटपूर्वक अंतरण करने के लिये इन दस्तावेज़ों में कूटरचना की गई थी। 
  • बैंक ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 464, 468 और 469 सहपठित धारा 34 के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों का आरोप लगाते हुए परिवाद दर्ज करायादण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के अधीन आदेश के अनुपालन में, राजापेठ पुलिस स्टेशन ने प्रत्यर्थी संख्या 3 के विरुद्ध अपराध संख्या 1449/2021 दर्ज कीअन्वेषण के दौरान, पुलिस ने प्रत्यर्थी संख्या 2 से वाहन जब्त कर लिया। 
  • प्रत्यर्थी संख्या 2 ने महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंस कंपनी लिमिटेड से ऋण लेकर 5,53,000 रुपए में वाहन खरीदा था। आरटीओ अमरावती ने दस्तावेज़ों की जांच और सत्यापन के बाद वाहन को प्रत्यर्थी संख्या 2 के नाम पर रजिस्ट्रीकृत कर दिया। प्रत्यर्थी संख्या 2 ने अपने ऋण की 20 किश्तें पहले ही चुका दी थीं और अपने परिवार की आजीविका के लिये वाहन की आय पर निर्भर था।   
  • बैंक और प्रत्यर्थी संख्या 2, दोनों ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 454 के अधीन आवेदन दायर कर ज़ब्त वाहन की अंतरिम अभिरक्षा की मांग की। प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, न्यायालय संख्या 9, अमरावती ने बैंक के आवेदन को खारिज कर दिया और 30 अगस्त 2022 के आदेश के माध्यम से प्रतिवादी संख्या 2 को अंतरिम अभिरक्षा प्रदान की। 
  • बैंक ने अमरावती के अतिरिक्त सेशन न्यायाधीश के समक्ष दाण्डिक पुनरीक्षण संख्या 105/2022 दायर करके इस आदेश को चुनौती दी। 6 मार्च 2024 को मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखते हुए पुनरीक्षण खारिज कर दिया गया। इसके बाद बैंक ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के अधीन इस दाण्डिक रिट याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दोनों समवर्ती आदेशों को चुनौती दी। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने पाया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में लगाए गए आरोप उन दस्तावेज़ों की कूटरचना से संबंधित हैं जिनके द्वारा वाहन का अंतरण किया गया था। यद्यपि, अंतरिम अभिरक्षा तय करने के चरण में, उन दस्तावेज़ों की कूटरचना पर चर्चा नहीं की जा सकती।  
  • अंतरिम अभिरक्षा तय करने के लिये, सबसे पहले यह जांचना आवश्यक है कि क्या प्रत्यर्थी संख्या 2 वाहन का स्वामी है और दूसरा यह कि क्या वाहन की ज़ब्ती प्रत्यर्थी संख्या 2 के कब्ज़े से हुई थी। ये दो महत्त्वपूर्ण शर्तें हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है। 
  • न्यायालय ने पाया कि दोनों ही तथ्य प्रत्यर्थी संख्या 2 के पक्ष में थे। यह निर्विवाद था कि वाहन प्रत्यर्थी संख्या 2 के कब्जे से ज़ब्त किया गया था, रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उसके नाम पर जारी किया गया था, और उसने वाहन खरीदने के लिये महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंस कंपनी लिमिटेड से 20 किश्तें चुकाकर ऋण लिया था। 
  • वैभव जैन बनाम हिंदुस्तान मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड (2024) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विश्वास करते हुए, न्यायालय ने कहा कि वाहन का कब्जा या नियंत्रण अंतरिम अभिरक्षा उद्देश्यों के लिये स्वामित्व का निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि यदि अंतरिम अभिरक्षा प्रतिवादी संख्या 2 को नहीं सौंपी जाती है, तो उसे अपूरणीय क्षति होगी, जिससे उसके लिए वित्तीय कंपनी का ऋण चुकाना मुश्किल हो जाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने दोनों पक्षों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त नियम और शर्तें लगाई थीं। 
  • न्यायालय ने माना कि दोनों निचले न्यायालयों ने सही निष्कर्ष निकाला था कि प्रत्यर्थी संख्या 2 अंतरिम अभिरक्षा का हकदार होगा। न्यायालय को समवर्ती निष्कर्षों में परिवर्तन करने का कोई कारण नहीं मिला और उसने रिट याचिका खारिज कर दी, तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 को वाहन की अंतरिम अभिरक्षा देने के आदेश को बरकरार रखा। 

भारतीय न्याय संहिता की धारा 335 क्या है? 

  • धारा 335 – मिथ्या दस्तावेज़ रचना  
  • परिभाषा:निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को मिथ्या दस्तावेज़ या मिथ्या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचना कहा जाता है:  
  • कपटपूर्ण सृजन:वह व्यक्ति जो बेईमानी या कपटपूर्ण कोई दस्तावेज़ बनाता है, उस पर हस्ताक्षरित करता है, मुद्रांकित करता है, उसे निष्पादित करता है, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को रचित या पारेषित करता है, या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरित करता है, जिसका उद्देश्य यह विश्वास दिलाना है कि यह दस्तावेज़ किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा या उसके प्राधिकार से बनाया गया है, जिसके बारे में वह जानता है कि यह दस्तावेज़ नहीं बनाया गया है। 
  • विधिविरुद्ध परिवर्तन:वह व्यक्ति जो, वैध प्राधिकार के बिना, किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के किसी भी भौतिक भाग को, उसके निर्माण या निष्पादन के बाद, चाहे वह स्वयं द्वारा हो या किसी अन्य जीवित या मृत व्यक्ति द्वारा, बेईमानी या कपटपूर्ण रूप से रद्द करके या अन्यथा परिवर्तित करता है। 
  • अक्षमता का शोषण:वह व्यक्ति जो बेईमानी या कपटपूर्ण रूप से किसी व्यक्ति को किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने, मुद्रांकित करने, निष्पादित करने या उसमें परिवर्तन करने या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर करने के लिये विवश करता है, यह जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति चित्त-विकृति, मत्तता या उसके साथ हुई प्रवंचना के कारण परिवर्तन की सामग्री या प्रकृति को नहीं समझ सकता है।