आरोप-पत्र अथवा चार्जशीट
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आपराधिक कानून

आरोप-पत्र अथवा चार्जशीट

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 02-May-2024

शरीफ अहमद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

"विवेचना अधिकारी को आरोप-पत्र में सभी कॉलमों की स्पष्ट एवं पूर्ण प्रविष्टियाँ भरनी करनी चाहिये ताकि न्यायालय स्पष्ट रूप से समझ सके कि किस आरोपी द्वारा कौन-सा अपराध किया गया है तथा फाइल पर उपलब्ध भौतिक साक्ष्य क्या हैं”।

जस्टिस संजीव खन्ना एवं एसवीएन भट्टी

स्रोत:  उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जस्टिस संजीव खन्ना एवं एसवीएन भट्टी की पीठ ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 173 के अधीन आरोप-पत्र के महत्त्व एवं इसे तैयार करने के तरीके पर ज़ोर दिया।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय शरीफ अहमद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में दिया था।

शरीफ अहमद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • उच्चतम न्यायालय ने आरोप-पत्र के महत्त्व पर विचार करते हुए कई दिशा-निर्देश दिये तथा उन दिशा-निर्देशों को देते समय विधिक पूर्वनिर्णयों पर विचार किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने मुख्य रूप से कहा कि "विवेचना अधिकारी को आरोप-पत्र में सभी कॉलमों की स्पष्ट एवं पूर्ण प्रविष्टियाँ भरनी करनी चाहिये ताकि न्यायालय स्पष्ट रूप से समझ सके कि किस आरोपी द्वारा कौन-सा अपराध किया गया है तथा फाइल पर उपलब्ध भौतिक साक्ष्य क्या हैं”।

चार्जशीट क्या है?

परिचय

CrPC की धारा 173 के अधीन परिभाषित एक आरोप-पत्र, एक पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट है। इसे आपराधिक अभियोजन प्रारंभ करने के लिये न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

कंटेंट

  • पक्षकारों के नाम;
  • सूचना की प्रकृति;
  • उन व्यक्तियों के नाम, जो मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होते हैं,
  • क्या ऐसा प्रतीत होता है कि कोई अपराध किया गया है और यदि हाँ, तो किसके द्वारा किया गया है,
  • क्या आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है;
  • क्या उसे उसके बाॅण्ड पर रिहा किया गया है और यदि हाँ, तो क्या ज़मानत के साथ या उसके बिना,
  • क्या उसे धारा 170 के अधीन हिरासत में भेजा गया है।

आरोप-पत्र दाखिल करने की समय-सीमा

आरोप-पत्र दाखिल करने की निर्धारित समय-सीमा इस प्रकार है:

  • मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय अपराध: 60 दिन
  • सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराध: 90 दिन

आरोप-पत्र दाखिल करने के बाद की प्रक्रिया

आरोप-पत्र तैयार करने के बाद, पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी इसे एक मजिस्ट्रेट के पास भेजता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों पर ध्यान देने का अधिकार है, ताकि आरोप तय किये जा सकें।

अनुपूरक आरोप-पत्र

CrPC की धारा 173 (8) के अधीन, जहाँ ऐसी विवेचना पर, पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को अतिरिक्त साक्ष्य, मौखिक या दस्तावेज़ी साक्ष्य प्राप्त होता है, वह मजिस्ट्रेट को एक और रिपोर्ट भेज देगा।

भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में स्थिति

BNSS की धारा 193 में आरोप-पत्र से संबंधित विधि सम्मिलित है।

charge-sheet

आरोप-पत्र पर महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?

  • एच.एन. रिशबड एवं इंदर सिंह बनाम दिल्ली राज्य (1954):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विवेचना की प्रक्रिया में आम तौर पर निम्नलिखित प्रक्रिया निहित होती हैं:
      • संबंधित स्थान पर जाना,
      • तथ्यों एवं परिस्थितियों का पता लगाना,
      • खोज एवं गिरफ्तारी,
      • साक्ष्यों का संग्रह, जिसमें विभिन्न व्यक्तियों से पूछताछ, स्थानों की तलाशी एवं वस्तुओं (साक्ष्य हेतु) की ज़ब्ती शामिल है, और
      • अपराध बनता है या नहीं, इस पर राय बनाना एवं उसके अनुसार आरोप-पत्र दाखिल करना।
  • अभिनंदन झा एवं अन्य बनाम दिनेश मिश्रा (1968):
    • इस मामले में कहा गया था कि आरोप-पत्र/चार्जशीट दाखिल करना विवेचना के बाद बनी राय की प्रकृति पर निर्भर करता है।
  • भगवंत सिंह बनाम पुलिस आयुक्त (1985):
    • न्यायालय ने धारा 173(2) के अधीन पुलिस रिपोर्ट प्राप्त करने पर मजिस्ट्रेट के पास उपलब्ध तीन विकल्पों पर चर्चा की:
      • रिपोर्ट स्वीकार करें तथा संज्ञान लें
      • धारा 156(3) के अधीन आगे की विवेचना का निर्देश दें
      • रिपोर्ट एवं आरोप मुक्त करने से असहमत
  • के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991):
    • न्यायालय ने माना कि आरोप-पत्र में साक्ष्यों का विस्तृत मूल्यांकन करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह अभियोजन के चरण के लिये है।
    • हालाँकि, इसे CrPC की धारा 173(2) एवं राज्य के नियमों की आवश्यकताओं के अनुसार तथ्यों का प्रकटन/उद्धरण करना चाहिये।
  • ज़किया अहसन जाफ़री बनाम गुजरात राज्य (2022):
    • न्यायालय ने बताया कि CrPC की धारा 173(2)(i)(d) के अधीन एक राय बनाने के लिये, विवेचना अधिकारी को विवेचना के दौरान प्राप्त किसी भी जानकारी का समर्थन करने के लिये युक्तियुक्त साक्ष्य एकत्र करना होगा।
    • केवल संदेह पर्याप्त नहीं है, यह मानने के लिये पर्याप्त सामग्री के आधार पर गंभीर संदेह होना चाहिये कि आरोपी ने कथित अपराध किया है।
  • डबलू कुजूर बनाम झारखंड राज्य (2024):
    • उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 173(2) के अधीन पुलिस रिपोर्ट/चार्जशीट में शामिल किये जाने वाले विवरण के संबंध में निम्नलिखित दिशा-निर्देश दिये:
      • पक्षकारों के नाम।
      • सूचना की प्रकृति।
      • परिस्थितियों से भिज्ञ व्यक्तियों के नाम।
      • क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है तथा किसके द्वारा किया गया है।
      • क्या आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
      • क्या अभियुक्त को बांड पर, ज़मानतदारों के साथ या उसके बिना रिहा किया गया है।
      • क्या आरोपी को धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा गया।
      • क्या कतिपय अपराधों में मेडिकल रिपोर्ट संलग्न है।