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« »24-Oct-2025
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“न्यायालय ने कहा कि अन्वेषण को प्रारंभिक चरण में रोका नहीं जा सकता, जब संदेशों में अनकहे शब्दों के माध्यम से धार्मिक समुदायों के बीच शत्रुता की भावना उत्पन्न करने की क्षमता हो ।” न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और प्रमोद कुमार श्रीवास्तव |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने अफाक अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2025) मामले में एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कथित तौर पर सांप्रदायिक सामंजस्य को बिगाड़ने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले व्हाट्सएप संदेश भेजने के लिये दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की गई थी।
- न्यायालय ने कहा कि यहाँ तक कि एक व्हाट्सएप संदेश, जिसमें स्पष्ट रूप से धर्म का उल्लेख नहीं किया गया हो, अपने 'अनकहे' शब्दों और 'सूक्ष्म' संदेश के माध्यम से समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा दे सकता है।
अफाक अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- 23.07.2025 को, पुलिस स्टेशन चांदपुर, जिला बिजनौर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 296, 352, 351 (2) के अधीन आरिफ (याचिकाकर्त्ता के भाई) के विरुद्ध मामला अपराध संख्या 414/2025 दर्ज किया गया था।
- 24.07.2025 को अन्वेषण के दौरान, अतिरिक्त धाराएँ जोड़ी गईं: अर्थात् भारतीय न्याय संहिता की धारा 123, 64(1), 318(4) और 336(3), उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 के सिवाय।
- आरिफ को महिलाओं के धर्म परिवर्तन के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, यद्यपि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में किसी विशिष्ट महिला का नाम नहीं था।
- अपने भाई की गिरफ्तारी के बाद याचिकाकर्त्ता अफाक अहमद ने गिरफ्तारी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कई व्यक्तियों को व्हाट्सएप संदेश भेजे।
- 30.07.2025 को, अमीर आज़म नामक व्यक्ति ने सब-इंस्पेक्टर प्रशांत सिंह को सूचित किया कि उन्हें लगभग सात दिन पहले याचिकाकर्त्ता (व्हाट्सएप नंबर 9548080007 का उपयोग करके) से एक भड़काऊ व्हाट्सएप संदेश प्राप्त हुआ था।
- आजम ने ऐप में टाइमर द्वारा संदेश को डिलीट किये जाने से पहले उसका स्क्रीनशॉट सेव कर लिया था और उसे पुलिस के साथ साझा कर दिया था।
- सूचना देने वाले ने पाँच स्क्रीनशॉट लिये और आजम के मोबाइल डिवाइस को जब्त कर लिया तथा उसे एक सीलबंद पारदर्शी कंटेनर में रख दिया।
- अफाक अहमद के विरुद्ध धारा 299 और 353(3) भारतीय न्याय संहिता के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 421/2025 दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने सांप्रदायिक सामंजस्य बिगाड़ने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिये भड़काऊ संदेश भेजे थे।
- याचिकाकर्त्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) रद्द करने की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि यद्यपि व्हाट्सएप पोस्ट में धर्म के बारे में बात नहीं की गई है, किंतु इसमें निश्चित रूप से एक अंतर्निहित और सूक्ष्म संदेश दिया गया है कि याचिकाकर्त्ता के भाई को एक विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित होने के कारण मिथ्या मामले में निशाना बनाया गया है।
- न्यायालय ने कहा कि संदेश में ये "अनकहे शब्द" प्रथम दृष्टया एक विशेष समुदाय के नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करेंगे, जो सोचेंगे कि उन्हें उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया जा रहा है।
- भले ही किसी धार्मिक भावना को प्रत्यक्षत: ठेस न पहुँचायी गई हो, किंतु संदेश के अनकहे शब्दों से धार्मिक समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा और दुर्भावना की भावना उत्पन्न होने या उसे बढ़ावा मिलने की संभावना थी।
- किसी विशेष समुदाय के सदस्य यह सोच सकते हैं कि विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करके उन्हें दूसरे धार्मिक समुदाय के सदस्यों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।
- न्यायालय ने कहा कि यद्यपि यह कृत्य धारा 353(3) भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत नहीं आता है, फिर भी यह प्रथम दृष्टया धारा 353(2) भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत आता है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के समग्र संदर्भ और जिस तरह से याचिकाकर्त्ता ने ऐसी क्षमता वाले कई व्यक्तियों को व्हाट्सएप संदेश भेजे, उसे ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने अनुच्छेद 226 के अधीन अनुतोष देने से इंकार कर दिया।
- याचिका खारिज कर दी गई।
संदर्भित सुसंगत विधिक उपबंध क्या हैं?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 353 – लोक रिष्टिकारक वक्तव्य:
- धारा 353(1) ऐसे कथन, मिथ्या जानकारी, अफवाह या रिपोर्ट (इलेक्ट्रॉनिक साधनों सहित) बनाने, प्रकाशित करने या प्रसारित करने पर दण्ड देती है जो:
- सैन्य कर्मियों को विद्रोह करने या कर्त्तव्य में असफल होने के लिये प्रेरित कर सकता है; या
- लोक भय या चिंता उत्पन्न कर सकता है जिससे राज्य या लोक शांति के विरुद्ध अपराध उत्पन्न हो सकते हैं; या
- एक वर्ग/समुदाय को दूसरे वर्ग/समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिये उकसाना।
- धारा 353(2) विशेष रूप से मिथ्या जानकारी, अफवाह या चिंताजनक समाचार (इलेक्ट्रॉनिक साधनों सहित) वाले कथनों या रिपोर्टों को लक्षित करती है जो किसी भी आधार पर विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई, क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना की भावना उत्पन्न करती हैं या उसे बढ़ावा देती हैं।
- धारा 353(3) में उपधारा (2) के अधीन अपराध पूजा स्थलों या धार्मिक कर्म के दौरान किये जाने पर वर्धित दण्ड का उपबंध है (पाँच वर्ष तक का कारावास और जुर्माना)।
- दण्ड : सामान्यतः तीन वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों (उपधारा 3 के सिवाय)।
- अपवाद : कोई अपराध नहीं होगा यदि व्यक्ति के पास यह विश्वास के लिये उचित आधार थे कि कथन सत्य है और उसने विद्वेषपूर्ण आशय के बिना सद्भावनापूर्वक कार्य किया।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 299 – विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किये गए हो :
- अपराध : भारत के किसी भी वर्ग के नागरिकों के धर्म या धार्मिक विश्वासों का जानबूझकर और विद्वेषपूर्ण आशय से अपमान करना या अपमान करने का प्रयत्न करना, उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से।
- साधन : अपमान इस प्रकार किया जा सकता है:
- शब्द (उच्चारित या लिखित)
- संकेतों द्वारा
- दृश्यरूपणों द्वारा
- इलेक्ट्रॉनिक साधन
- किसी अन्य रीति द्वारा
- आवश्यक तत्त्व :
- जानबूझकर और विद्वेषपूर्ण आशय
- धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आशय
- भारत के किसी भी वर्ग के नागरिकों को लक्षित करना
- दण्ड : तीन वर्ष तक का कारावास (कठोर या साधारण) या जुर्माना, या दोनों।