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सिविल कानून
प्रमोशनल ट्रेलर
« »23-Apr-2024
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 यशराज फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आफरीन फातिमा जैदी एवं अन्य प्रमोशनल ट्रेलर एकपक्षीय हैं तथा स्वीकृति प्राप्त करना, विधि द्वारा लागू करने योग्य प्रस्तावों/वचनों के रूप में योग्य नहीं हैं। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं अरविंद कुमार  | 
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने यशराज फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आफरीन फातिमा जैदी एवं अन्य के मामले में सुनवाई की। यह माना गया है कि प्रमोशनल ट्रेलर एकपक्षीय हैं तथा स्वीकृति प्राप्त करना, विधि द्वारा लागू करने योग्य प्रस्तावों/वचनों के रूप में योग्य नहीं हैं।
यशराज फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आफरीन फातिमा जैदी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता है। इसने वर्ष 2016 में 'फैन' नाम की फिल्म बनाई थी।
 - फिल्म की रिलीज़ से पहले, अपीलकर्त्ता ने टेलीविज़न एवं ऑनलाइन दोनों प्लेटफॉर्म पर एक प्रमोशनल ट्रेलर प्रसारित किया, जिसमें वीडियो के रूप में एक गाना था।
 - शिकायतकर्त्ता, जो औरंगाबाद के एक स्कूल में एक शिक्षिका है, का कहना है कि फिल्म का प्रमोशनल ट्रेलर देखने के बाद, उसने अपने परिवार के साथ सिल्वर स्क्रीन पर फिल्म देखने जाने का निर्णय किया।
 - हालाँकि, उन्होंने पाया कि फिल्म में गाना नहीं था, भले ही फिल्म के प्रचार-प्रसार के लिये इस गाने को व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था। उसने ज़िला उपभोक्ता निवारण फोरम के समक्ष उपभोक्ता शिकायत दायर की और 60,550 रुपए का हर्ज़ाना के रूप में का दावा किया।
 - ज़िला उपभोक्ता निवारण फोरम ने शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का कोई संबंध नहीं है।
 - इसके बाद, शिकायतकर्त्ता ने राज्य आयोग के समक्ष अपील दायर की तथा राज्य आयोग ने मानसिक उत्पीड़न के लिये मुआवज़े के रूप में 10,000 रुपए और शिकायतकर्त्ता को लागत के रूप में 5,000 रुपए का मुआवज़ा दिया।
 - मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में ले जाया गया।
 - NCDRC ने माना था कि फिल्म के प्रोमो में एक गाना शामिल करना, जबकि यह वास्तव में फिल्म का हिस्सा नहीं है, दर्शकों को धोखा देने के सामान है तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (1) (r) के अधीन एक अनुचित व्यापारिक कृत्य है।
 - इसके बाद, अपीलकर्त्ता द्वारा NCDRC के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
 - अपील को स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने NCDRC के आदेश को रद्द कर दिया।
 
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा एवं अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि प्रमोशनल ट्रेलर एकपक्षीय है। इसका उद्देश्य केवल दर्शकों को फिल्म का टिकट खरीदने के लिये प्रोत्साहित करना है, जो कि प्रमोशनल ट्रेलर से एक स्वतंत्र विनिमय एवं संविदा है। एक प्रमोशनल ट्रेलर स्वयं में कोई प्रस्ताव नहीं है तथा न ही कोई संविदात्मक संबंध बनाने का आशय रखता है और न ही बना सकता है। चूँकि प्रमोशनल ट्रेलर कोई प्रस्ताव नहीं है, इसलिये इसके वचन होने की कोई संभावना नहीं है।
 - न्यायालय ने आगे इस बिंदु पर बल दिया कि कला की प्रस्तुति से जुड़ी सेवाओं में आवश्यक रूप से सेवा प्रदाता की स्वतंत्रता एवं विवेक निहित होता है तथा कोई अनुचित व्यापारिक कृत्य नहीं किया गया और न ही कोई लागू करने योग्य संविदात्मक वचन-भंग किया गया।
 
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(r)
- यह अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने एवं उपभोक्ता विवादों के निपटान के लिये प्राधिकरण स्थापित करने के लिये बनाया गया है।
 - इस अधिनियम की धारा 2(1)(r) अनुचित व्यापारिक कृत्यों से संबंधित है।
 - वर्ष 2019 में संशोधन के बाद, धारा 2(47) अनुचित व्यापारिक कृत्यों से संबंधित है।
 
प्रस्ताव:
- संविदा करने के लिये पहला तत्त्व एक वैध प्रस्ताव है।
 - भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 2 (a) में कहा गया है कि जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कुछ भी करने या करने से परहेज़ करने की अपनी इच्छा का संकेत देता है, तो ऐसे कार्य या परहेज़ के लिये दूसरे व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने की दृष्टि से, उसे एक प्रस्ताव देने के लिये कहा जाता है।
 
वचन:
- ICA की धारा 2(b) के अनुसार, जब जिस व्यक्ति को प्रस्ताव दिया जाता है वह उस पर अपनी सहमति व्यक्त करता है, तो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया माना जाता है। एक प्रस्ताव, जब स्वीकार कर लिया जाता है, एक वचन बन जाता है।
 - इसलिये एक प्रस्ताव एक वचन की पूर्व शर्त है।