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आपराधिक कानून

बलात्संग का संज्ञान

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 17-Sep-2025

XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य 

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376ख के अधीन अपराध का संज्ञान केवल पत्नी द्वारा परिवाद पर ही लिया जा सकता है, जैसा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख द्वारा अनिवार्य है, और चूँकि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट पर कार्रवाई की, इसलिये कार्यवाही रद्द कर दी गई।” 

न्यायमूर्ति जी. गिरीश 

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति जी. गिरीश नेभारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 (पृथक्करण के दौरान पति द्वारा मैथुन) के अधीन अभियुक्त एक व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख के अनुसार, संज्ञान केवल पत्नी द्वारा दर्ज किये गए परिवाद पर ही लिया जा सकता है, पुलिस रिपोर्ट पर नहीं। न्यायालय ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने इस विधिक आदेश के विपरीत कार्य किया था। 

केरलउच्च न्यायालय ने XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • याचिकाकर्त्ता और वास्तविक परिवादकर्त्ता का व्यक्तिगत विधि के अधीन विधिक रूप से विवाह हुआ था।  
  • याचिकाकर्त्ता नेवास्तविक परिवादकर्त्ता कोतलाक दे दिया और इसकी सूचना 02.11.2016 को जुमा मस्जिद समिति को दी। 
  • तलाक की घोषणा के बाद, दोनों पक्षकारपृथक्- पृथक् रह रहे थे, यद्यपि व्यक्तिगत विधि की आवश्यकताओं के अनुसार तलाक अभी तक विधिक रूप से प्रभावी नहीं हुआ था।  
  • वास्तविक परिवादकर्त्ता ने प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय, मलप्पुरम के समक्ष घरेलू हिंसा का परिवाद दर्ज कराया था 
  • घरेलू हिंसा की कार्यवाही में मजिस्ट्रेट के आदेश के आधार पर, वास्तविक परिवादकर्त्ता को याचिकाकर्त्ता के साथ एक ही घर में रहने की अनुमति दी गई थी। 
  • 16.12.2016 को, जब दोनों पक्षकार पृथक् रह रहे थे, लेकिन अभी भी विधिक रूप से विवाहित थे, याचिकाकर्त्ता ने कथित तौर पर वास्तविक परिवादकर्त्ता की सम्मति के विरुद्ध लैंगिक संबंध बनाए।  
  • इसके बाद, 25.12.2016 को याचिकाकर्त्ता ने मजिस्ट्रेट के आदेश का उल्लंघन करते हुए कथित रूप से वास्तविक परिवादकर्त्ता को वैवाहिक घर से निकाल दिया। 
  • मलप्पुरम पुलिस ने दोनों घटनाओं को एक ही प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में सम्मिलित करते हुए अपराध संख्या 763/2016 दर्ज की। 
  • याचिकाकर्त्ता पर भारतीय दण्ड संहिता कीधारा 376 (पृथक्करण के दौरान पति द्वारा मैथुन) और घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 31(1) (सुरक्षा आदेश के भंग के लिये दण्ड) के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया था। 
  • मजिस्ट्रेट ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट के आधार पर दोनों अपराधों का संज्ञान लिया। 
  • यह मामला फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट, मंजेरी को S.C No. 826/2017 के रूप में सौंपा गया था। 
  • याचिकाकर्त्ता ने केरल उच्च न्यायालय में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के अधीन याचिका दायर करके कार्यवाही को चुनौती दी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376तब लागू होती है जब कोई अपराधी अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करता है, जबकि वे पृथक्करण के आदेश के अधीन या अन्यथा अलग रह रहे हों। 
  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376ख के आवेदन के लिये, पीड़िता की वैवाहिक स्थिति, अपराध के समय अभियुक्त की पत्नी के रूप में विद्यमान होनी चाहिये 
  • न्यायालय ने कहा कि पक्षकारों पर लागू व्यक्तिगत विधि के अधीन, तलाक के माध्यम से तलाक, तलाक की घोषणा की तारीख से 90 दिनों की समाप्ति पर ही प्रभावी होता है। 
  • न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता की पत्नी के रूप में वास्तविक परिवादकर्त्ता की वैवाहिक स्थिति 16.12.2016 को विद्यमान थी, जब कथित मैथुन घटित हुआ था। 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख में स्पष्ट रूप से उपबंध है कि धारा 376 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध का संज्ञान न्यायालय द्वारा केवल पत्नी द्वारा दायर किये गए परिवाद पर ही लिया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख एक विधिक प्रतिबंध उत्पन्न करती है और पत्नी के परिवाद के अतिरिक्त किसी भी अन्य तरीके से धारा 376 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध का संज्ञान लेने पर स्पष्ट रूप से रोक लगाती है। 
  • न्यायालय ने पाया कि विद्वान मजिस्ट्रेट ने पुलिस द्वारा दायर अंतिम रिपोर्ट के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376ख के अधीन अपराध का गलत संज्ञान लिया था, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख के अधीन अनिवार्य आवश्यकता का उल्लंघन था। 
  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 31(1) के अधीन अपराध के संबंध में, न्यायालय ने पाया कि परिवादकर्त्ता का कथित निष्कासन 25.12.2016 को हुआ था, जो कथित बलात्कार की घटना के नौ दिन बाद था। 
  • न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक घर से निष्कासन का कृत्य एक अलग अपराध है जो बाद में हुआ। 
  • न्यायालय ने पाया कि अन्वेषण अभिकरण ने दोनों अपराधों को एक ही प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में दर्ज करके गलती की है, जबकि दोनों की प्रकृति भिन्न है और समय-सीमा भी अलग-अलग है। 
  • न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता की इस दलील से सहमति जताई कि घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 31(1) के अधीन अपराधों का निपटारा प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाना चाहिये 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया किवर्तमान कार्यवाही को रद्द करते हुए, यह आदेश विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुरूप याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध अभियोजन कार्यवाही शुरू करने पर रोक नहीं लगाएगा। 

विधिक उपबंध क्या हैं? 

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 198: 
    • कोई भी न्यायालय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376ख के अंतर्गत दण्डनीय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जहाँ व्यक्ति वैवाहिक संबंध में हों। 
    • संज्ञान केवल उन तथ्यों की प्रथम दृष्टया संतुष्टि के बाद ही लिया जा सकता है जो अपराध का गठन करते हैं। 
    • ऐसा संज्ञान केवल तभी अनुमेय है जब पत्नी द्वारा पति के विरुद्ध परिवाद दर्ज कराया गया हो। 
    • यह उपबंध पुलिस की अंतिम रिपोर्ट सहित किसी अन्य माध्यम से संज्ञान लेने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। 
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 198ख के अधीन सांविधिक रोक अनिवार्य है और न्यायालय इसे नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। 
    • पुलिस अन्वेषण और अंतिम रिपोर्ट संज्ञान लेने के लिये पत्नी द्वारा परिवाद की आवश्यकता का स्थान नहीं ले सकती। 
    • विधायी उद्देश्य विवाह की पवित्रता की रक्षा करना है, साथ ही आपराधिक उपचारों में पत्नी की स्वायत्तता सुनिश्चित करना है। 
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376ख के अधीन वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पुलिस चालान या अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से संज्ञान लेना विधिक रूप से अनुचित है। 
  • भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 376: 
    • यह धारा पृथक्करण के दौरान पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ मैथुन से संबंधित है। 
    • यह अपराध तब लागू होता है जब पति अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करता है, जबकि वे पृथक्करण के आदेश के अधीन या अन्यथा पृथक् रह रहे हों। 
    • अपराध के समय पीड़िता की वैवाहिक स्थिति अभियुक्त की पत्नी के रूप में विद्यमान होनी चाहिये