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पारिवारिक कानून

विदेशी विधि से परे हिंदू विवाह अधिनियम

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 05-Sep-2025

एक्स. बनाम वाई. 

"भारत में धार्मिक संस्कारों और रीति-रिवाजों के अनुसार अनुष्ठित हिंदू विवाह सदैव हिंदू विवाह अधिनियम के उपबंधों द्वारा शासित होगा और किसी अन्य विधि द्वारा शासित नहीं हो सकता, भले ही पक्षकारों ने विश्व के किसी भी देश का नया निवास या नागरिकता प्राप्त कर ली हो।" 

न्यायमूर्ति ए.वाई. कोग्जे और न्यायमूर्ति एन.एस. संजय गौड़ा 

स्रोत: गुजरात उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति ए.वाई. कोगजे और न्यायमूर्ति एन.एस. संज्या गौड़ा की खंडपीठ नेएक्स. बनाम वाई. (2025)के मामले में यह निर्णय दिया कि भारत में विवाह करने वाले दो हिंदुओं के बीच वैवाहिक विवाद केवल हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अधीन ही सुना जा सकता है और विदेशी पारिवारिक विधि उस पर लागू नहीं होगी, भले ही दंपत्ति किसी विदेशी देश के निवासी हों या उनके पास वहाँ की नागरिकता हो। 

एक्स. बनाम वाई. (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस दंपति ने 2008 मेंअहमदाबाद में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अधीन हिंदू रीति-रिवाजों और संस्कारों के अनुसार विवाह किया। 
  • वे ऑस्ट्रेलिया चले गए जहाँ उनके पति स्थायी निवासी थे और 2013 में उनका एक बच्चा भी हुआ। 
  • 2014 में वैवाहिक मतभेद उत्पन्न हो गए और पति 2015 में OCI कार्ड प्राप्त कर भारत लौट आया।  
  • पत्नी ऑस्ट्रेलिया में ही रही और 2015 में उसने ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता प्राप्त कर ली। 
  • 10 सितम्बर 2015 को उनकी पत्नी अपने पुत्र के साथ भारत लौट आईं। 
  • 2016 में, पति नेसिडनी स्थित ऑस्ट्रेलिया के संघीय सर्किट न्यायालय मेंतलाक के लिये अर्जी दायर की। 
  • 23 सितंबर, 2016 को पत्नी ने अहमदाबाद के कुटुंब न्यायालय में दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन की मांग करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन एक याचिका और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अधीन एक वाद दायर किया। 
  • 24 नवंबर 2016 को सिडनी स्थित ऑस्ट्रेलिया के संघीय सर्किट न्यायालय ने तलाक को मंजूरी दे दी; पत्नी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी गई। 
  • 5 जुलाई 2017 को पत्नी को OCI कार्ड प्रदान किया गया। 
  • 11 जुलाई, 2018 को पत्नी ने एक पारिवारिक वाद दायर कर यह घोषित करने की मांग की कि सिडनी स्थित ऑस्ट्रेलिया के संघीय सर्किट न्यायालय द्वारा पारित आदेश शून्य है। 
  • 31 मार्च, 2023 को कुटुंब न्यायालय नेउनकी याचिका खारिज कर दी, जिसके कारण यह अपील दायर की गई। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

मुख्य अवलोकन: 

  • गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा कि भारत में किये गए हिंदू विवाहों में नागरिकता का "बिल्कुल कोई महत्त्व नहीं"है, केवल पक्षकारों की हिंदू आस्था ही सुसंगत है। 
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसे विवाहों को विदेशी विधि के अधीन संचालित करने की अनुमति देने से "असंगत परिणाम" उत्पन्न होंगे और पाया कि पति ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों से बचने के लिये आस्ट्रेलियाई तलाक की मांग की थी। 
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि आस्ट्रेलियाई न्यायालय को भी भारत में अपने निर्णय को मान्यता दिये जाने के संबंध में अधिकारिता संबंधी संदेह था। 

स्थापित विधिक सिद्धांत: 

  • न्यायालय ने यह स्थापित किया कि भारत में अनुष्ठित हिंदू विवाह, बाद में नागरिकता या निवास स्थान में परिवर्तन के होते हुए भी, विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम द्वारा शासित होते हैं, जिससे विदेशी विधि का अनुप्रयोग "अनुचित" हो जाता है। 
  • वाई. नरसिम्हा राव मामले में उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णय के अनुसार, वैवाहिक विवादों पर केवल वही विधि लागू होती है जिसके अधीन पक्षकार विवाहित होते हैं। 
  • न्यायालय नेफोरम शॉपिंग(न्यायालय-चयन) पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जहाँ पक्षकार भारतीय वैवाहिक विधियों से बचने के लिये विदेशी अधिकारिता की मांग करते हैं। 

न्यायालय के निदेश: 

  • गुजरात उच्च न्यायालय ने पत्नी की याचिका को खारिज करने केकुटुंब न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दियातथा कुटुंब न्यायालय को निदेश दिया कि वह उसके मामले पर विधि के अनुसार निर्णय करे तथा उसकी वैध कार्यवाही को मान्यता दे। 
  • पति के अधिवक्ता के अनुरोध पर न्यायालय ने अपने आदेश पर दो सप्ताह के लिये रोक लगा दी। 

हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह के संबंध में सुसंगत विधिक प्रावधान क्या हैं? 

परिचय: 

  • विवाह हिंदू विधि के अधीन एक पवित्र संस्कार है और आवश्यक संस्कारों में से एक है। 
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) हिंदू विवाहों को नियंत्रित करता है और हिंदू विवाह विधि में सुधार करता है। 
  • यह नियम बौद्ध, सिख और जैन सहित सभी हिंदुओं पर लागू होता है। 

विवाह का अनुष्ठान (धारा 7): 

  • विवाह तभी वैध है जब वह किसी भी पक्षकार के पारंपरिक संस्कार और रीति-रिवाजों के अनुसार अनुष्ठित हो। 
  • सप्तपदी (पवित्र अग्नि के चारों ओर सात कदम) में सातवाँ कदम उठाने पर विवाह पूर्ण और बंधनकारी हो जाता है। 
  • प्रथागत संस्कार समुदाय के अनुसार अलग-अलग होते हैं - साधारण माला विनिमय से लेकर विस्तृत यज्ञ अनुष्ठान तक। 

वैध विवाह के लिये आवश्यक शर्तें (धारा 5): 

एकपत्नीत्व (Monogamy) (धारा 5(i)):  

  • दोनों पक्षकारों में में से किसी का पति या पति विवाह के समय जीवित नहीं होना चाहिये 
  • इसका उल्लंघन विवाह को शून्य एवं अकृत बना देता है 
  • द्विविवाह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494-495 और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 17 के अधीन दण्डनीय है। 

पक्षकारों की सम्मति (धारा 5(ii)): 

  • दोनों पक्षकारों को स्वतंत्र एवं सूचित सहमति देनी होगी। 
  • यदि किसी भी पक्षकार को मानसिक बीमारी के कारण सम्मति देने के लिये विवश किया जाता है या वह सम्मति देने में असमर्थ है तो विवाह शून्यकरणीय हो जाता है। 

आयु आवश्यकताएँ (धारा 5(iii)): 

  • वर्तमान न्यूनतम आयु: वर के लिये 21 वर्ष, वधू के लिये 18 वर्ष। 
  • मूलतः लड़कों के लिये 18 वर्ष, लड़कियों के लिये 15 वर्ष; 1978 में संशोधित। 
  • दण्ड: 2 वर्ष तक का कठोर कारावास या ₹1 लाख तक का जुर्माना, या दोनों (धारा 18)। 

प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियाँ (धारा 5(iv)):  

निम्नलिखित के बीच प्रतिषिद्ध विवाह: 

  • अग्रपुरुष/वंशज। 
  • अग्रपुरुष/वंशजों के पूर्व पति-पत्नी।  
  • विनिर्दिष्ट ससुराल संबंध (भाई की पत्नी, चाचा की पत्नी, आदि) 
  • भाई-बहन, चाचा-भतीजी, चाची-भतीजा, भाई-बहन के बच्चे 
  • दण्ड: 1 मास तक का साधारण कारावास या ₹1,000 का जुर्माना, या दोनों (धारा 18())। 

सपिण्ड नातेदारी (धारा 5(v)): 

  • प्रतिषिद्ध का विस्तार: माता की ओर से तीसरी पीढ़ी तक, पिता की ओर से पाँचवीं पीढ़ी तक 
  • दण्ड : 1 मास तक का कारावास या ₹1,000 का जुर्माना, या दोनों (धारा 18())। 

विवाह रजिस्ट्रीकरण (धारा 8): 

  • राज्य सरकारों को रजिस्ट्रीकरण नियम बनाने का अधिकार दिया गया। 
  • राज्य सार्वभौमिक रूप से या विनिर्दिष्ट क्षेत्रों/मामलों के लिये रजिस्ट्रीकरण को अनिवार्य कर सकता है। 
  • उल्लंघन पर जुर्माना: ₹25 तक