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आपराधिक कानून
पुलिस अधिकारिता का समावेश
« »17-Sep-2025
वी.डी. मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य "पुलिस अधिकारियों के पास अपने क्षेत्रीय सीमाओं या आसपास के थानों के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 के अधीन नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है।" न्यायमूर्ति डॉ. वेंकट ज्योतिर्मय प्रताप |
स्रोत: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
वी.डी. मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति डॉ. वेंकट ज्योतिर्मय प्रताप की पीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन पुलिस अधिकारियों की अधिकारिता संबंधी सीमाओं को स्पष्ट किया, विशेष रूप से अपनी क्षेत्रीय अधिकारिता से बाहर रहने वाले व्यक्तियों से साक्षियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की उनकी शक्ति के संबंध में।
वीडी मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता, वी.डी. मूर्ति, सिग्मा सप्लाई चेन सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के 65 वर्षीय निदेशक हैं, जो नोएडा, उत्तर प्रदेश में रहते हैं।
- CID पुलिस थाने, मंगलगिरी में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 409 सहपठित 120-ख के अधीन मामला (अपराध संख्या 21/2024) दर्ज किया गया, जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 318, 316(5) सहपठित धारा 61(2) के अनुरूप है।
- याचिकाकर्त्ता अभियुक्त नहीं था, लेकिन उसे 18.08.2025 को अन्वेषण के लिये उपस्थित होने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 के अधीन दिनांक 15.08.2025 को नोटिस जारी किया गया था।
- अन्वेषण अधिकारी के अनुरोध पर दो बार उपस्थित होने के बावजूद, उन्हें 21.08.2025 को विजयवाड़ा में S.I.T. कार्यालय में उपस्थित होने के लिये 19.08.2025 को एक और नोटिस मिला।
- याचिकाकर्त्ता ने अपनी अधिक आयु (65 वर्ष से अधिक), सर्वाइकल रेडिकुलोपैथी सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत अधिकारिता संबंधी सीमाओं का हवाला देते हुए इस कार्रवाई को चुनौती दी।
- उन्होंने नोएडा स्थित अपने आवास या किसी तटस्थ स्थान पर अपने अधिवक्ताओं की उपस्थिति में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग सुविधा के साथ पूछताछ की मांग की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 के अधीन नोटिस का सम्मान करते हुए अन्वेषण अधिकारी के समक्ष पहले ही दो बार उपस्थित हो चुका है।
- अन्वेषण अभिकरण ने इस बात पर विवाद नहीं किया कि याचिकाकर्त्ता नोएडा, उत्तर प्रदेश में रहता है, जो उनके क्षेत्रीय अधिकारिता से बाहर है।
- न्यायमूर्ति वेंकट ज्योतिर्मय प्रताप ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179(1) के अधीन एक पुलिस अधिकारी की शक्ति "क्षेत्रीय रूप से प्रतिबंधित" है और "उसकी अधिकारिता से बाहर रहने वाले व्यक्तियों तक विस्तारित नहीं होती है।"
- न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 के बीच प्रमुख अंतरों की जांच की:
- पुरुषों के लिये आयु सीमा 65 वर्ष (CrPC में) से घटाकर 60 वर्ष (BNSS में) कर दी गई।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने एक दूसरा प्रावधान प्रस्तुत किया, जिसके अधीन लोगों को पुलिस थाने में उपस्थित होने की इच्छा व्यक्त करने की अनुमति दी गई।
- परंतुकों के आवेदन के संबंध में, न्यायालय ने स्पष्ट किया: "पुलिस अधिकारी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179(1) के अधीन शक्ति के आधार पर उन्हें लिखित में आदेश जारी कर सकता है, लेकिन वह अधिकार के रूप में उनके समक्ष उनकी उपस्थिति सुनिश्चित नहीं कर सकता।"
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कमजोर व्यक्तियों के लिये " भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179(1) के अधीन नोटिस के पालन में उनके समक्ष उपस्थित होने का कोई विधिक दायित्त्व नहीं है" और "ऐसे व्यक्ति, जो कमजोर हैं, उन्हें अन्वेषण के नाम पर पुलिस अधिकारी द्वारा परेशान नहीं किया जा सकता है।"
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 क्या है?
के बारे में:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 ने कुछ संशोधनों के साथ दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 160 को प्रतिस्थापित कर दिया।
- यह पुलिस अधिकारियों को लिखित आदेशों के माध्यम से अन्वेषण के दौरान साक्षियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का अधिकार देता है।
- अन्वेषण कर रहे पुलिस अधिकारी किसी भी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने के लिये लिखित आदेश जारी कर सकते हैं।
- धारा 179 अन्वेषण की आवश्यकताओं को कमजोर व्यक्तियों की सुरक्षा के साथ संतुलित करती है, जबकि पुलिस की अधिकारिता को उनकी क्षेत्रीय सीमाओं तक ही सीमित रखती है।
- संरक्षित श्रेणियों को अपने निवास पर परीक्षा कराने का अधिकार है, लेकिन यदि वे पुलिस थाने जाना चाहें तो स्वेच्छा से इस सुरक्षा को छोड़ सकते हैं।
क्षेत्रीय परिसीमा:
- यह नियम केवल अपने पुलिस थाने या किसी निकटवर्ती थाने की सीमा के भीतर रहने वाले व्यक्तियों पर लागू होता है।
- व्यक्ति को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होना चाहिये।
- ऐसे व्यक्ति आवश्यकतानुसार उपस्थित होने के लिये विधिक रूप से बाध्य हैं।
संरक्षित श्रेणियाँ (प्रथम परंतुक):
निम्नलिखित कमजोर समूहों को अपने निवास स्थान से भिन्न कहीं और उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं हो सकती है:
- 15 वर्ष से कम या 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष
- महिलाएँ (आयु की परवाह किये बिना)
- मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्ति
- गंभीर बीमारी वाले व्यक्ति
स्वैच्छिक उपस्थिति (दूसरा परंतुक):
- संरक्षित व्यक्ति यदि चाहें तो स्वेच्छा से पुलिस थाने में उपस्थित हो सकते हैं।
- यह सुरक्षात्मक उपायों को बनाए रखते हुए व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करता है।
वित्तीय उपबंध:
- राज्य सरकारें पुलिस अधिकारियों के लिये नियम बना सकती हैं कि वे अपने निवास से भिन्न अन्य स्थानों पर उपस्थित व्यक्तियों के उचित खर्च का संदाय करें।