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पारिवारिक कानून
कार्यवाही के स्थगन के दौरान रखरखाव पेंडेंट लाइट
« »03-Sep-2025
अंकित सुमन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य "न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कार्यवाही पर रोक लगाने मात्र से कार्यवाही समाप्त नहीं हो जाती तथा भार-पोषण देने का दायित्त्व तब तक जारी रहता है जब तक कि आदेश को अपास्त, परिवर्तित या संशोधित नहीं कर दिया जाता।" न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
अंकित सुमन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने वादकालीन भरण-पोषण के लिये वसूली वारण्ट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि स्थानांतरण याचिका के कारण वैवाहिक कार्यवाही पर रोक लगाने से पति को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 24 के अधीन भरण-पोषण के संदाय करने के दायित्त्व से मुक्ति नहीं मिलती है।
अंकित सुमन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता पति ने 20 जुलाई 2018 को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अधीन अपनी पत्नी के विरुद्ध कुटुंब न्यायालय, पीलीभीत में तलाक की याचिका दायर की ।
- पत्नी ने आरोपों से इंकार करते हुए एक लिखित कथन दायर किया और बाद में 26 मार्च 2019 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के अधीन भरण-पोषण के लिये एक आवेदन दायर किया।
- कुटुंब न्यायालय ने शुरू में 30 अक्टूबर 2020 को पत्नी के भरण-पोषण के आवेदन को खारिज कर दिया था, किंतु इस आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 नवंबर 2021 को अपास्त कर दिया था।
- उच्च न्यायालय ने पत्नी को 10,000 रुपए प्रति माह तथा अवयस्क पुत्री को 10,000 रुपए प्रति माह तथा मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 30,000 रुपए देने का आदेश दिया।
- पति ने इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी, जिसने 29 नवंबर 2022 को भरण-पोषण राशि को संशोधित कर पत्नी के लिये 10,000 रुपए और अवयस्क पुत्री के लिये 5,000 रुपए कर दिया।
- पत्नी ने 26 अगस्त 2024 तक 2,50,000/- रुपए के भरण-पोषण बकाया की वसूली के लिये निष्पादन मामला दायर किया।
- इस बीच, पत्नी ने तलाक के मामले को पीलीभीत से बरेली स्थानांतरित करने के लिये स्थानांतरण याचिका दायर की थी, और उच्च न्यायालय ने 18 सितंबर 2023 को तलाक की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी ।
- पति ने तर्क दिया कि चूँकि कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है, इसलिये वह रोक की अवधि के लिये भरण-पोषण देने के लिये उत्तरदायी नहीं था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 का विश्लेषण किया, जिसमें वैवाहिक कार्यवाही के दौरान वादकालीन भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय का उपबंध है।
- न्यायमूर्ति निगम ने इस बात पर बल दिया कि धारा 24 का उद्देश्य वैवाहिक कार्यवाही में आर्थिक रूप से कमजोर पक्षकारों को तत्काल अनुतोष प्रदान करना है, जिससे मुकदमेबाजी के दौरान उन्हें वंचित होने से बचाया जा सके।
- न्यायालय ने कार्यवाही को "रद्द" करने और "स्थगित" करने के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए श्री चामुंडी मोपेड्स लिमिटेड बनाम चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन (1992) का हवाला देते हुए कहा कि किसी आदेश पर रोक लगाने से उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता, अपितु केवल उसका संचालन निलंबित हो जाता है।
- न्यायालय ने कहा कि भरण-पोषण संदाय के लिये उच्चतम न्यायालय का 29 नवंबर 2022 का आदेश वैध है और उसे न तो वापस लिया गया है और न ही अपास्त किया गया है।
- निर्णय में यह स्थापित किया गया कि स्थानांतरण कार्यवाही स्वयं "हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन कार्यवाही" है।
- न्यायालय ने अनेक पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए बताया कि धारा 24 के आवेदन, पुनर्स्थापन आवेदन, पुनरीक्षण कार्यवाही तथा अन्य सहायक कार्यवाहियों के दौरान भी विचारणीय हैं।
- न्यायालय ने पति के तर्क को "पूर्णतया गलत" बताते हुए खारिज कर दिया तथा कहा कि कार्यवाही पर रोक मात्र से विवाह समाप्ति नहीं हो जाती, अतः इससे भरण-पोषण दायित्त्व समाप्त नहीं होता।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 क्या है?
बारे में:
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 में वादकालीन भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय का उपबंध है। भरण-पोषण एक मानवीय और कानूनी अधिकार दोनों है।
- यह धारा वादकालीन मुकदमे के दौरान पति-पत्नी को अस्थायी भरण-पोषण सुनिश्चित करती है।
भरण-पोषण का अर्थ:
- पिता द्वारा संतानों को या पति द्वारा पत्नी को आश्रितों के व्यय और आवश्यकताओं के लिये प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता।
- इसे निर्वाह व्यय भी कहा जाता है, यह जीवन-यापन के व्ययों के संदाय की बात करता है। निर्वाह व्यय इस बात की परवाह किये बिना दिया जाता है कि पक्ष साथ रहते हैं या हिंदू विधि के अधीन तलाक हो गया है।
वादकालीन (Pendente Lite) का अर्थ:
- "पेंडेंट लाइट (वादकालीन)" का अर्थ है "मुकदमा लंबित रहने तक" या "मामले के लंबित रहने के दौरान।"
- यह हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन कार्यवाही के दौरान आजीविका सहायता और आवश्यक व्यय के लिये अंतरिम भरण-पोषण को नियंत्रित करता है, जब स्वतंत्र आय अपर्याप्त हो या न हो।
- वादकालीन भरण-पोषण का अर्थ:
- पक्षकारों के बीच मुकदमा लंबित रहने के दौरान पत्नी और संतानों को जीवन-यापन व्यय और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- यह प्रावधान लिंग-तटस्थ अधिकार प्रदान करता है, जिससे पति और पत्नी दोनों को इस उपचार के लिये आवेदन करने की अनुमति मिलती है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के उपबंध:
- जब किसी पति या पत्नी के पास मुकदमेबाजी की कार्यवाही के लिये पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं होती है, तो न्यायालय प्रत्यर्थी को प्रत्यर्थी की आय को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्त्ता के कार्यवाही व्यय और भरण-पोषण का संदाय करने का आदेश दे सकता है।
- आवेदनों का निपटान नोटिस की तारीख से 60 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के मूल सिद्धांत:
- कार्यवाहियों का व्यय: लंबित हिंदू विवाह अधिनियम कार्यवाही के दौरान होने वाले व्यय की बात करता है, जिसमें अधिवक्ता की फीस, न्यायालय फीस, स्टांप शुल्क, यात्रा व्यय और संबंधित व्यय सम्मिलित हैं। यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक रूप से कमज़ोर पति-पत्नी बिना किसी व्यय के विधिक प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग ले सकें।
- न्यायालय का विवेकाधिकार: न्यायालयों के पास वादकालीन और व्यय के लिये भरण-पोषण देने का विवेकाधिकार है। इससे भरण-पोषण की रकम के उचित निर्धारण के लिये व्यक्तिगत मामले की परिस्थितियों पर विचार करने की अनुमति मिलती है। न्यायालय दोनों पक्षकारों की आय, संपत्ति और आवश्यकताओं का आकलन करते हैं।
- अस्थायी प्रकृति: धारा 24 के अधीन भरण-पोषण अस्थायी है, जो केवल लंबित विधिक कार्यवाही के दौरान ही वित्तीय सहायता प्रदान करता है। न्यायालयों को मामलों का निपटारा करते समय अंतिम भरण-पोषण राशि तय करने का विवेकाधिकार है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के बीच अंतर:
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 |
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) |
केवल हिंदुओं पर लागू |
धर्म, जाति, विश्वासों की परवाह किये बिना सभी नागरिकों पर लागू |
केवल विवाह-विच्छेद याचिका लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण |
विवाह-विच्छेद के दौरान और पश्चात् भरण-पोषण |
केवल पति/पत्नी ही पात्र हैं |
पति/पत्नी, बच्चे (धर्मज/अधर्मज), माता-पिता पात्र |
जीवन स्तर, आय, आवश्यकताओं के आधार पर पंचाट |
दावेदार की आवश्यकताओं और प्रत्यर्थी की संदाय करने की क्षमता के आधार पर पंचाट |