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सिविल कानून
पासपोर्ट अधिनियम, 1967
«11-Sep-2025
नवप्रीत कौर बनाम भारत संघ और अन्य "पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पति/पत्नी के नाम में अनजाने में हुई भूल पासपोर्ट अधिनियम की धारा 10(3)(ख) के अंतर्गत नहीं आती है और इसके लिये पासपोर्ट जब्त या रद्द करने का औचित्य नहीं ठहराया जा सकता है ।" न्यायमूर्ति हर्ष बंगर |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति हर्ष बंगर ने निर्णय दिया कि पासपोर्ट आवेदन में वैवाहिक स्थिति या पति या पत्नी के नाम का उल्लेख करने में अनजाने में हुई भूल पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(ख) के अधीन पासपोर्ट को जब्त करने या रद्द करने का औचित्य नहीं रखती है। इसने स्पष्ट किया कि ऐसी अनजाने त्रुटियों को दण्डात्मक कार्रवाई के लिये "रिष्टि" नहीं माना जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय ने नवप्रीत कौर बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
नवप्रीत कौर बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- व्यक्तिगत इतिहास और विवाह: याचिकाकर्त्ता, नवप्रीत कौर ने 2000 में डॉ. सिद्धार्थ नरूला से विवाह किया और उनकी एक पुत्री है। विवाह से पहले उनके पास पासपोर्ट संख्या P514726 था और उन्होंने 2005 में पासपोर्ट संख्या F1754413 प्राप्त किया, जिसमें उनके पति का नाम "डॉ. सिद्धार्थ नरूला" दर्ज था। चंडीगढ़ के जिला न्यायाधीश द्वारा 02.04.2011 को जारी तलाक के आदेश के माध्यम से उनका विवाह भंग हो गया।
- पासपोर्ट समस्या: 2015 में, याचिकाकर्त्ता ने एक अज्ञात ट्रैवल एजेंट के माध्यम से अपना पासपोर्ट नवीनीकृत कराया और उसे 26.05.2015 दिनांकित पासपोर्ट संख्या M9280984 प्राप्त हुआ, जो 25.05.2025 तक वैध था। 2011 में तलाक के होते हुए भी, पति का नाम गलती से "सिद्धार्थ नरूला" लिखा गया था। याचिकाकर्त्ता का दावा है कि यह ट्रैवल एजेंट की अनजाने में हुई भूल थी।
- पश्चात्वर्ती घटनाएँ और परिवाद: याचिकाकर्त्ता ने 19.11.2023 को श्री नीरज कुमार से पुनर्विवाह किया। उसने 12.03.2024 और 18.12.2024 को पति/पत्नी के नाम में संशोधन के लिये आवेदन किया। यद्यपि, उसके दूसरे पति ने पंजाब सरकार के प्रवासी भारतीय मामलों के अधीक्षक के माध्यम से परिवाद दर्ज कराया, जिसमें उसके तलाकशुदा पति का नाम बताकर कपटपूर्ण पासपोर्ट बनवाने का आरोप लगाया गया।
- प्रशासनिक कार्रवाई: क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, चंडीगढ़ ने वैवाहिक स्थिति की जानकारी छिपाने के संबंध में दिनांक 21.01.2025 को कारण बताओ नोटिस जारी किया। याचिकाकर्त्ता ने स्व-घोषणा प्रस्तुत कर बताया कि यह भूल जागरूकता की कमी और ट्रैवल एजेंट की संलिप्तता के कारण हुई। उसके स्पष्टीकरण के बावजूद, पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(ख) के अधीन 29.01.2025 को उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया। संयुक्त सचिव एवं मुख्य पासपोर्ट अधिकारी, नई दिल्ली के समक्ष उसकी अपील 27.03.2025 को खारिज कर दी गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(ख) के अधीन पासपोर्ट जब्त करने या रद्द करने का पासपोर्ट प्राधिकारियों का अधिकार विवेकाधीन है, जैसा कि "हो सकता है" शब्द से संकेत मिलता है। धारा 10(5) के अधीन इस अधिकार का प्रयोग करते समय प्राधिकारियों को संक्षिप्त कारण दर्ज करने होंगे।
- न्यायालय ने कहा कि धारा 10(3)(ख) और 12(1)(ख) के अनुसार "पासपोर्ट प्राप्त करने के उद्देश्य से" जानकारी को छिपाना या गलत जानकारी देना आवश्यक है। ऐसी छिपाई गई जानकारी इतनी महत्त्वपूर्ण होनी चाहिये कि यदि उसे सही ढंग से प्रकट किया जाता, तो धारा 5(2)(ग) के अधीन पासपोर्ट देने से इंकार कर दिया जाता।
- न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक स्थिति या पति या पत्नी के नाम का प्रकटन करने में अनजाने में हुई भूल या चूक धारा 10(3)(बी) के अधीन रिष्टि नहीं मानी जाती हैं और पासपोर्ट जब्त करने या रद्द करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि पासपोर्ट नियम, 1980 की अनुसूची 3 में वैवाहिक स्थिति/पति/पत्नी के नाम की जानकारी अनजाने में छिपाने को मामूली अपराध माना गया है, जिसके लिये साक्षर आवेदकों पर केवल 500 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- न्यायालय ने पाया कि पासपोर्ट के दुरुपयोग या अनुचित लाभ को दर्शाने वाले साक्ष्य के अभाव में याचिकाकर्त्ता का स्पष्टीकरण उचित था। पूर्व पति का यह कथन कि उसके नाम का उल्लेख एक वास्तविक चूक थी, इस निष्कर्ष को और पुष्ट करता है।
- न्यायालय ने पाया कि अपीलीय प्राधिकारी याचिकाकर्त्ता के तर्क को नकारने में असफल रहे तथा केवल यह कहा कि पासपोर्ट रद्द के बाद उसका पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता, जबकि उन्होंने नए आवेदन के लिये उसकी व्यावसायिक आवश्यकताओं को स्वीकार किया।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, चंडीगढ़ और अपीलीय प्राधिकरण दोनों ने विधि और तथ्य में भूल की, जिसके कारण 29.01.2025 और 27.03.2025 के आदेशों को रद्द कर दिया गया।
पासपोर्ट अधिनियम, 1967 क्या है?
बारे में
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 भारत की संसद द्वारा पारित एक व्यापक विधि है जो भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ जारी करने और भारत से उनके प्रस्थान को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम भारत में पासपोर्ट प्रशासन के लिये प्राथमिक विधिक ढाँचे के रूप में कार्य करता है और पासपोर्ट जारी करने के लिये प्राधिकरण, प्रक्रियाएँ और शर्तें निर्धारित करता है।
- यह अधिनियम 24 जून, 1967 को लागू हुआ और पूरे भारत में लागू है, साथ ही भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है। यह पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ जारी करने, भारतीय नागरिकों और अन्य व्यक्तियों के भारत से प्रस्थान को विनियमित करने, और पासपोर्ट प्रशासन से संबंधित या उससे संबंधित मामलों का समाधान करने का प्रावधान करता है।
संदर्भित विधिक उपबंध क्या हैं?
पासपोर्ट अधिनियम, 1967:
- धारा 5(2)(ग) - पासपोर्ट, यात्रा दस्तावेज़ आदि के लिये आवेदन और उन पर आदेश।
- पासपोर्ट प्राधिकरण को पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज़ जारी करने से इंकार करने या अनुमोदन करने से इंकार करने का अधिकार देता है।
- धारा 6(2) - पासपोर्ट, यात्रा दस्तावेज़ आदि देने से इंकार करना।
- इसमें उन विशिष्ट आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर पासपोर्ट प्राधिकारी पासपोर्ट जारी करने से इंकार कर सकता है, जिनमें सम्मिलित हैं:
- भारत की गैर-नागरिकता
- भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये हानिकारक गतिविधियाँ
- सुरक्षा चिंताएँ
- आपराधिक दोषसिद्धि
- लंबित आपराधिक कार्यवाही
- लंबित वारण्ट
- जनहित संबंधी विचार
- धारा 10(3)(ख) - पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ों में परिवर्तन, जब्ती और निरसन।
- पासपोर्ट प्राधिकरण को पासपोर्ट जब्त करने या रद्द करने का अधिकार देता है, यदि पासपोर्ट महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाकर या गलत जानकारी के आधार पर प्राप्त किया गया हो।
- धारा 10(5) - कारणों का अभिलेखन
- पासपोर्ट प्राधिकारी को आदेश दिया गया है कि वह परिवर्तन, निरस्तीकरण, जब्ती या निरसन के आदेश देते समय कारणों का संक्षिप्त विवरण लिखित रूप में दर्ज करे।
- धारा 11 - अपील प्रावधान
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 के अंतर्गत अपीलीय प्राधिकारी का प्रावधान।
- धारा 12(1)(ख) - अपराध और दण्ड
- पासपोर्ट प्राप्त करने के उद्देश्य से जानबूझकर गलत जानकारी देने या महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाने पर दण्ड का उपबंध।
- इसमें उन विशिष्ट आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर पासपोर्ट प्राधिकारी पासपोर्ट जारी करने से इंकार कर सकता है, जिनमें सम्मिलित हैं:
पासपोर्ट नियम, 1980:
- अनुसूची 3 - सूचना छिपाने पर दण्ड
- वैवाहिक स्थिति/पति या पत्नी के नाम के बारे में जानकारी को अनजाने में छिपाने को मामूली अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ऐसे छोटे-मोटे दोषों के लिये साक्षर आवेदकों के लिये 500 रुपए का जुर्माना निर्धारित किया गया है।