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आपराधिक कानून
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अधीन आपराधिक कार्यवाही को रद्द करना
«16-Sep-2025
“अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा है कि पीड़िता को आवेदक द्वारा बहला-फुसलाकर ले जाया गया था। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अधीन अपराध के आवश्यक तत्त्व सिद्ध नहीं हुए हैं।” न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हिमांशु दुबे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2025) मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 363 के अधीन आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि पीड़ित से केवल बात करना व्यपहरण के आरोपों के लिये उसे बहकाना नहीं माना जा सकता, जब पीड़ित ने पारिवारिक उत्पीड़न के कारण स्वेच्छा से घर छोड़ दिया हो।
हिमांशु दुबे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- दिनांक 25.12.2020 को थाना गौरी बाजार, जिला देवरिया में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अधीन एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी, जिसमें अभिकथन किया गया था कि दिनांक 24.12.2020 को शाम 7:30 बजे, आवेदक ने सूचना देने वाली की भतीजी, जिसकी आयु लगभग 16 वर्ष थी, को बहला-फुसलाकर भगा ले गया।
- कथित पीड़िता के परिवार के सदस्यों ने आवेदक के साथ उसकी फोन पर बातचीत का पता चलने पर उसकी पिटाई की और उसे बिजली का झटका दिया, जिसके कारण वह 23.12.2020 को शाम 6:30 बजे स्वेच्छा से घर छोड़कर चली गई।
- अन्वेषण के दौरान, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन पीड़िता के कथन से पता चला कि वह पारिवारिक उत्पीड़न के कारण अकेले घर छोड़कर सीवान चली गई थी और पुलिस थाने लाए जाने से पहले दो दिन तक वहीं रही।
- दिनांक 28.12.2020 को मेडिकल परीक्षण कराया गया, जिसमें पीड़िता ने आंतरिक एवं बाह्य परीक्षण से इंकार किया तथा डॉक्टर के समक्ष बताया कि वह पारिवारिक प्रताड़ना के कारण स्वेच्छा से घर से चली गयी थी।
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अनुसार 29.12.2020 को किये गए एक्स-रे से पीड़िता की आयु लगभग 18 वर्ष निर्धारित हुई।
- 1.1.2021 को दर्ज दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के अधीन पीड़िता के कथन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह स्वेच्छा से घर से गई थी और उसके परिवार के सदस्यों ने आवेदक को गलत तरीके से फंसाया था।
- अन्वेषण अधिकारी ने 19.1.2021 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अधीन आरोप पत्र प्रस्तुत किया और मजिस्ट्रेट ने 7.7.2023 को संज्ञान लिया।
- उल्लेखनीय बात यह है कि अभियोजन पक्ष के आरोपपत्र में पीड़िता को साक्षी नहीं बनाया गया, केवल सूचनाकर्त्ता और पीड़िता की माता को ही साक्षी के रूप में उद्धृत किया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
विधिक ढाँचे का विश्लेषण:
- न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361 की जांच की, जो वैध संरक्षकता से व्यपहरण को परिभाषित करती है, जिसके अधीन 18 वर्ष से कम आयु की किसी अवयस्क (महिला) को उसकी सम्मति के बिना वैध संरक्षक की देखरेख से बाहर ले जाना या बहलाना सम्मिलित है।
- न्यायमूर्ति चौहान ने इस बात पर बल दिया कि धारा 361 लागू होने के लिये, अभियुक्त की ओर से "वचन, प्रस्ताव, प्रलोभन या बल" होना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप अवयस्क को वैध संरक्षकता से दूर ले जाया गया हो या बहकाया गया हो।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णय:
- न्यायालय ने ठाकोरलाल डी. यादगदामा बनाम गुजरात राज्य (1973) मामले पर विश्वास किया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि यदि कोई अवयस्क "दोषी पक्षकार की ओर से दिये गए किसी भी वचन, प्रस्ताव या प्रलोभन से पूरी तरह अप्रभावित" होकर अपने माता-पिता का घर छोड़ता है, तो धारा 361 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन कोई अपराध नहीं होता है।
- वरदराजन बनाम मद्रास राज्य (1965) का संदर्भ दिया गया, जिसमें "ले जाने" और "अवयस्क को साथ जाने की अनुमति देने" के बीच अंतर किया गया, जिसमें अवयस्क के जाने के आशय को बनाने में "किसी प्रकार के प्रलोभन" या "सक्रिय भागीदारी" की आवश्यकता होती है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 क्या है?
बारे में:
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 में व्यपहरण के लिये दण्ड का उपबंध है, जिसमें धारा 359 के अधीन दो प्रकार सम्मिलित हैं - भारत से व्यपहरण और वैध संरक्षकता से व्यपहरण।
दण्ड:
- धारा 363 के अधीन सात वर्ष तक के कारावास का उपबंध है तथा जुर्माना भी देना होगा।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 137 (BNS):
- नई दण्ड संहिता में धारा 363 भारतीय दण्ड संहिता के समतुल्य प्रावधान।
- समान दायरा : व्यपहरण के अपराधों के लिये दण्ड को सम्मिलित करता है।
- निरंतरता : भारतीय दण्ड संहिता के समान दण्ड ढाँचे को बनाए रखता है।