होम / करेंट अफेयर्स

पारिवारिक कानून

अविवाहित पुत्री भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती

    «
 03-Sep-2025

अनुराग पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, अपर प्रधान सचिव, गृह विभाग, लखनऊ एवं अन्य 

यदि कोई पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन आवेदन के लंबित रहने के दौरान वयस्क हो जाती है, तो 1956 अधिनियम की धारा 20 (3) के उपबंधों को लागू करके कुटुंब न्यायालय द्वारा उसी कार्यवाही में उसे भरण-पोषण की अनुमति दी जा सकती है।” 

न्यायमूर्ति रजनीश कुमार 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति रजनीश कुमार नेयह निर्णय दिया कि मानसिक एवं शारीरिक रूप से सक्षम वयस्क अविवाहित पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती, अपितु उसे हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) के अंतर्गत दावा प्रस्तुत करना होगा। यह निर्णय उस कुटुंब न्यायालय के आदेश को अपास्त करते हुए पारित किया गया, जिसमें एक वयस्क पुत्री को धारा 125, दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भरण-पोषण प्रदान करने का निदेश दिया गया था। 

  • उच्चतम न्यायालय ने अनुराग पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, अपर प्रधान सचिव, गृह, लखनऊ एवं अन्य (2025)के मामले में यह निर्णय दिया । 

अनुराग पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से अपर प्रधान सचिव गृह लखनऊ एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अविवाहित अवयस्क पुत्री कुमारी नेहा पांडे नेअपने पिता अनुराग पांडे से भरण-पोषण की मांग करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) कीधारा 125 के अधीन आवेदन दायर किया। 
  • आवेदन दाखिल करते समय, पुत्रीवयस्क हो चुकी थी, जिसका प्रकटन आवेदन में ही किया गया था। 
  • कुटुंब न्यायालय ने, यह देखते हुए कि याचिका दायर करते समय वह वयस्क थी, पिता को हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) का हवाला देते हुए, प्रति माह 10,000 रुपए का भरण-पोषण देने का निदेश दिया। 
  • पिता ने इस आदेश को आपराधिक पुनरीक्षण के माध्यम से चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि विचारण न्यायालय ने अभिलाषा बनाम प्रकाश (2020) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का गलत निर्वचन किया था 
  • पिता ने तर्क दिया कि वयस्क पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीनभरण-पोषण पाने की हकदार नहींहै और ऐसा अनुतोष केवल 1956 अधिनियम की धारा 20(3) के अधीन सिविल वाद दायर करके ही प्राप्त किया जा सकता है। 
  • पुत्री के अधिवक्ता ने निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया कि पिता द्वारा प्रस्तुत विधिक स्थिति सही थी और उन्होंने सुझाव दिया कि मामलों की बहुलता से बचने के लिये मामले को धारा 20(3) के अधीन कार्यवाही में परिवर्तित करने के लिये कुटुंब न्यायालय को भेज दिया जाना चाहिये 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • केवल अवयस्क संतान अथवा वे वयस्क संतानें, जो शारीरिक/मानसिक विकृति से ग्रसित हों, ही दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं। मानसिक एवं शारीरिक रूप से सक्षम वयस्क अविवाहित पुत्री इस उपबंध के अंतर्गत भरण-पोषण की हकदार नहीं है 
  • वयस्क अविवाहित पुत्रियों को भरण-पोषण का दावा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) के अंतर्गत करना होगा, जिसके लिये उचित अभिवचन एवं साक्ष्यों सहित सिविल न्यायालय में कार्यवाही आवश्यक है। 
  • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 संक्षिप्त कार्यवाही के माध्यम से तत्काल अनुतोष प्रदान करती है, जबकि हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) में बड़े अधिकार सम्मिलित हैं जिनके लिये सिविल न्यायालय के निर्णय की आवश्यकता होती है। 
  • धारा 20(3) के अधीन भरण-पोषण के लिये 1956 अधिनियम की धारा 23 और 24 के अधीन विनिर्दिष्ट कारकों पर विचार करने की आवश्यकता होती है, जिसमें पक्षकारों की स्थिति, दावेदार की उचित आवश्यकताएँ और संपत्ति का मूल्य सम्मिलित है। 
  • कुटुंब न्यायालयउचित सिविल प्रक्रिया का पालन किये बिना और अनिवार्य कारकों पर विचार किये बिना, धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता की कार्यवाही में धारा 20(3) हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण के अधीनभरण-पोषण का आदेश नहीं दे सकता। 
  • यदि धारा 125 की कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पुत्री वयस्क हो जाती है, तो धर्म परिवर्तन की अनुमति है। यद्यपि, यदि आवेदन वयस्क होने के बाद दायर किया जाता है, तो उसे हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण की धारा 20(3) के अंतर्गत सिविल वाद में परिवर्तित किया जाना चाहिये 
  • न्यायालय ने मामलों की अधिकता से बचने के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के आवेदन को धारा 20(3) हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण के अधीन सिविल वाद में परिवर्तित करने का निदेश दिया, जिसका छह मास के भीतर शीघ्र निपटारा किया जाना था। 

क्या एक वयस्क अविवाहित पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण का दावा कर सकती है या क्या उसे हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम के अदीन दावा दायर करना होगा? 

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन आयु प्रतिबंध:एक वयस्क अविवाहित पुत्री जो मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ है, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (1) (ख) के अधीन भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है, जो विशेष रूप से केवल "अवयस्क संतान" के लिये भरण-पोषण का उपबंध करती है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं 
  • अक्षमता तक सीमित अपवाद:दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(1)(ग) वयस्क संतानों के लिये  भरण-पोषण की अनुमति केवल तभी देती है जब वे "शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति" से पीड़ित हों, जिसके कारण वे स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों, स्वस्थ वयस्क पुत्रियों को छोड़कर। 
  • विधायी आशय स्पष्ट:दण्ड प्रक्रिया संहिता जानबूझकर भरण-पोषण के दावों को अवयस्कों या असमर्थ वयस्क संतानों तक सीमित रखती है, जिससे यह संकेत मिलता है कि स्वस्थ वयस्क अविवाहित पुत्रियाँ इसके संरक्षण के दायरे से बाहर हैं। 
  • संक्षिप्त कार्यवाही की सीमाएँ:दण्ड प्रक्रिया संहिता की की धारा 125 संक्षिप्त कार्यवाही के माध्यम से तत्काल अनुतोष के लिये बनाई गई है और यह वयस्क पुत्री के भरण-पोषण के दावों के लिये आवश्यक जटिल विचारों को समायोजित नहीं कर सकती है। 
  • वैकल्पिक विधिक उपचार उपलब्ध:वयस्क अविवाहित पुत्रियों को हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) के अधीन भरण-पोषण का दावा करना चाहिये, जो विशेष रूप से सिविल कार्यवाही के माध्यम से उनके भरण-पोषण के अधिकारों को संबोधित करता है। 
  • अधिकारिता की सीमा का सम्मान:कुटुंब न्यायालय मामले के उचित रूपांतरण के बिना दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन संक्षिप्त आपराधिक कार्यवाही करते समय हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम के अधीन सिविल अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। 
  • प्रक्रियागत सुरक्षा बनाए रखी गई:विधिक ढाँचा यह सुनिश्चित करता है कि वयस्क पुत्रियों के भरण-पोषण के दावों पर साक्ष्य और अभिवचनों के साथ उचित सिविल विचारण हो, न कि तत्काल अनुतोष के लिये त्वरित आपराधिक भरण-पोषण कार्यवाही में निर्णय लिया जाए।