विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)
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आपराधिक कानून

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)

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 08-May-2024

स्रोत: द हिन्दू

परिचय:

हाल के एक निर्णय में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस्लामिक स्टेट (IS) का समर्थन करने के मामले में एक ऐसे आरोपी को ज़मानत दे दी, जिस पर आतंकवाद विरोधी विधि, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (UAPA) के अंतर्गत आरोप लगाया गया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन में रुचि रखना मात्र प्रत्यक्ष संलिप्तता नहीं हो सकती है।

अम्मार अब्दुल रहमान बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अम्मार अब्दुल रहमान को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने अगस्त 2021 में गिरफ्तार किया था। उस पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860  एवं UAPA के प्रावधानों के अंतर्गत आरोप लगाए गए थे।
  • NIA ने आरोप लगाया कि रहमान के मोबाइल फोन की जाँच से पता चला कि उसने स्क्रीन रिकॉर्डर विकल्प का उपयोग करके इंस्टाग्राम से ISIS एवं क्रूर हत्याओं से संबंधित वीडियो डाउनलोड किये थे। इसके अतिरिक्त उसके मोबाइल में आतंकवाद के प्रचार के प्रमाण, ISIS के झंडे आदि की तस्वीरें मिली थीं, जिससे उसकी कट्टरपंथी मानसिकता एवं ISIS के साथ जुड़ाव स्थापित हुआ।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसे ज़मानत दे दी तथा कहा कि रहमान के मोबाइल डिवाइस पर डाउनलोड की गई सामग्री की मौजूदगी से कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकला जाना चाहिये
  • इसके अतिरिक्त न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि ऐसा प्रतीत होता है कि रहमान ने इन सामग्रियों को केवल डाउनलोड एवं संग्रहीत किया है, उन्हें साझा करने, प्रसारित करने या दूसरों तक पहुँचाने के प्रयासों का कोई साक्ष्य नहीं है।

भारत में आतंकवाद के विरुद्ध क्या विधियाँ हैं?

  • आतंकवाद से निपटने के लिये सरकारों द्वारा विभिन्न विधियाँ एवं अधिनियम पारित किये गए हैं जैसे:
    • विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967: यह अधिनियम विधि प्रवर्तन एजेंसियों को आतंकवाद सहित विधिविरुद्ध गतिविधियों में लगे व्यक्तियों एवं संगठनों के विरुद्ध कार्यवाही करने की अनुमति देता है।
    • आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम, 1987: टाडा अधिनियम के तहत कड़े उपाय किये गए थे, जिसे विशेष रूप से आतंकवाद से निपटने के लिये बनाया गया था। यह अधिनियम विवादों से घिरा रहा और अंततः 1995 में समाप्त हो गया।
    • आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002: जैसे-जैसे आतंकवाद बढ़ता गया, एक अन्य विधि, पोटा, 2002 को पारित किया गया। इसने विधि प्रवर्तन एजेंसियों को और अधिक व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं। मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर देखी गई चिंता के बाद वर्ष 2004 में UPA सरकार द्वारा इसे निरसित कर दिया गया था।
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008: NIA की स्थापना वर्ष 2008 में केंद्रीय स्तर पर की गई थी, जिसका उद्देश्य आतंकवाद विरोधी गतिविधियों से निपटना है।
    • अपहरण रोधी अधिनियम, 2016: विमान अपहरण की घटनाओं को रोकने के लिये अपहरण रोधी अधिनियम पारित किया गया था।

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 क्या है?

  • मूल रूप से 1967 में अधिनियमित UAPA को वर्ष 2004 एवं वर्ष 2008 में आतंकवाद विरोधी विधि के रूप में संशोधित किया गया था।
  • अगस्त 2019 में संसद ने अधिनियम में प्रदान किये गए कुछ आधारों पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये विधिविरुद्ध गतिविधियाँ (निवारण) संशोधन विधेयक, 2019 को मंज़ूरी दे दी।
  • आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये यह सामान्य विधिक प्रक्रियाओं से भटक जाता है तथा एक असाधारण व्यवस्था बनाता है, जहाँ अभियुक्तों की संवैधानिक सुरक्षा को कम कर दिया जाता है।
  • यह राष्ट्रीय जाँच एजेंसी को देश भर में UAPA के अंतर्गत मामलों की जाँच करने एवं अभियोजित करने का अधिकार देता है।
  • यह आतंकवादी कृत्यों के लिये उच्चतम सज़ा के रूप में मृत्युदंड एवं आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।
  • यह संदिग्धों को बिना किसी आरोप या विचारण के 180 दिनों तक अभिरक्षा में रखने एवं आरोपियों को ज़मानत देने से मना करने की अनुमति देता है, जब तक कि न्यायालय संतुष्ट न हो जाए कि वे दोषी नहीं हैं।
  • यह आतंकवाद को ऐसे किसी कृत्य के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी व्यक्ति की मृत्यु या चोट का कारण बनता है या इसका आशय रखता है, या किसी संपत्ति को हानि या उसे नष्ट करता है, या जो भारत या किसी अन्य देश की एकता, सुरक्षा या आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालता है।

UAPA का महत्त्व क्या है?

  • यह भारत में एक महत्त्वपूर्ण विधायी उपकरण है, जिसका उद्देश्य आतंकवाद एवं विधिविरुद्ध गतिविधियों का सामना करना है। यहाँ UAPA अधिनियम के पक्ष में कुछ तर्क दिये गए हैं:
    • उन्नत सुरक्षा उपाय: UAPA विधि प्रवर्तन एजेंसियों को आतंकवादी गतिविधियों को रोकने एवं जाँच करने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ प्रदान करता है। यह व्यक्तियों एवं संगठनों को आतंकवादी संस्थाओं के रूप में नामित करने की अनुमति देता है, जिससे अधिकारियों को उनके संचालन एवं नेटवर्क को बाधित करने के लिये सक्रिय उपाय करने में मदद मिलती है।
    • निवारण: UAPA अधिनियम के कड़े प्रावधान, आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित व्यक्तियों एवं संगठनों के विरुद्ध एक निवारक के रूप में कार्य करते हैं। गंभीर विधिक परिणामों की धमकी, संभावित अपराधियों को हतोत्साहित करने का कार्य करती है, जिससे आतंकवादी कृत्यों को रोकने एवं सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने में सहायता मिलती है।
    • प्रभावी अभियोजन: UAPA आतंकवादियों एवं विधिविरुद्ध गतिविधियों में सम्मिलित व्यक्तियों पर अभियोजन चलाने के लिये विधिक ढाँचे को शक्ति प्रदान करता है। यह इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, निगरानी एवं अन्य जाँच तकनीकों को स्वीकार्यता प्रदान करता है, जिससे आतंकवाद एवं उग्रवाद से संबंधित मामलों के सफल अभियोजन की सुविधा मिलती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: UAPA आतंकवाद से निपटने के लिये भारत के विधिक ढाँचे को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाता है, आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में अन्य देशों के साथ सहयोग एवं सूचना साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खतरों से निपटने एवं सीमाओं के पार सक्रिय आतंकवादी नेटवर्क को बाधित करने की दिशा में भारत की क्षमता में वृद्धि होती है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना: वर्तमान में परस्पर जुड़ी दुनिया में आतंकवाद का खतरा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। UAPA अधिनियम, देश को आतंकवादी हमलों से बचाने और अपने नागरिकों के जीवन एवं हितों की रक्षा के लिये विधि प्रवर्तन एजेंसियों को आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित करता है।
    • कट्टरपंथ को रोकना: UAPA अधिनियम में कट्टरपंथ को रोकने एवं कट्टरपंथ से मुक्ति की पहल को बढ़ावा देने के प्रावधान निहित हैं। चरमपंथी विचारधाराओं को बढ़ावा देने में सम्मिलित व्यक्तियों एवं संगठनों को लक्षित करके यह अधिनियम कट्टरपंथ के प्रसार को रोकने एवं समुदायों के भीतर आतंकवादियों की भर्ती एवं कट्टरपंथ के जोखिम को कम करने में मदद करता है।

UAPA के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • हालाँकि विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) आतंकवाद एवं विधिविरुद्ध गतिविधियों से निपटने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है, लेकिन इसे कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है:
    • नागरिक स्वतंत्रता संबंधी चिंताएँ: UAPA की प्राथमिक आलोचनाओं में से एक यह है कि इसके प्रावधानों को अक्सर कठोर माना जाता है तथा नागरिक स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की संभावना होती है। आलोचकों का तर्क है कि इस अधिनियम में विधिविरुद्ध गतिविधियों की व्यापक परिभाषा एवं विधि प्रवर्तन एजेंसियों को प्रदत्त व्यापक शक्तियों के चलते मनमाने ढंग से गिरफ्तारियाँ, बिना विचारण के अभिरक्षा एवं युक्तियुक्त प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकता है।
    • शक्तियों का दुरुपयोग: विधि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा UAPA के अंतर्गत शक्तियों के दुरुपयोग के विषय में चिंताएँ व्यक्त की जाती हैं। आलोचकों का आरोप है कि आतंकवाद से निपटने के लिये बनाए गए इस अधिनियम का प्रयोग राजनीतिक रूप से असंतुष्ट जन, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं एवं हाशिये पर रहने वाले समुदायों को निशाना बनाने के लिये किया गया है। इससे आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास कम हो सकता है तथा विधि के शासन में जनता का विश्वास कम हो सकता है।
    • सुरक्षा उपायों का अभाव: UAPA में न्यायिक निरीक्षण एवं अभिरक्षा के आदेशों की समय-समय पर समीक्षा जैसे कुछ सुरक्षा उपाय निहित हैं, जबकि विधिक ढाँचे में अभी भी कमियाँ हैं, जो व्यक्तियों को दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशील बना सकती हैं। निवारक अभिरक्षा एवं ज़मानत के बिना अभिरक्षा की विस्तारित अवधि के लिये अधिनियम के प्रावधान, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के क्षरण एवं दोषमुक्ति की धारणा के विषय में चिंता उत्पन्न करते हैं।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भयावह प्रभाव: UAPA में "विधिविरुद्ध गतिविधियों" की व्यापक परिभाषा में ऐसे कार्य सम्मिलित हैं, जो अन्य अपराधों के अतिरिक्त भारत की संप्रभुता, अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालते हैं। इसका मुक्त भाषण, असहमति एवं शांतिपूर्ण सक्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि व्यक्तियों को विवादास्पद या अलोकप्रिय विचार व्यक्त करने पर आतंकवादी या चरमपंथी करार दिये जाने का भय हो सकता है।
    • अल्पसंख्यक समुदायों पर प्रभाव: ऐसी चिंता व्यक्त की जाती है कि UAPA धार्मिक एवं जातीय अल्पसंख्यकों सहित अल्पसंख्यक समुदायों को असमान रूप से लक्षित करता है, जिससे हाशिये की स्थिति, कलंकित करने के साथ ही भेदभाव होता है। धर्म, जातीयता या राजनीतिक संबद्धता के आधार पर प्रोफाइलिंग एवं निगरानी के लिये अधिनियम के प्रावधान, सामाजिक तनाव को बढ़ा सकते हैं तथा भय एवं संदेह का वातावरण बना सकते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय जाँच: UAPA सहित भारत के आतंकवाद विरोधी विधियों के उपयोग की अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों एवं विदेशी सरकारों ने आलोचना की है। मानवाधिकारों के हनन, मनमानी गिरफ्तारियों एवं उत्तरदायित्व की कमी के आरोपों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने एवं मानवाधिकार मानकों का सम्मान करने की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

UAPA के तहत महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?

  • अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2011) मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह तब किया जा सकता है, जब कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है या लोगों को हिंसा के लिये उकसाता है या अव्यवस्था उत्पन्न करने के आशय से कोई कृत्य करता है।
  • मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ (2018) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारी एवं संसदीय कार्यों के विरुद्ध विद्रोह विधिक है। हालाँकि ऐसे विरोध प्रदर्शन और सभाएँ शांतिपूर्ण एवं अहिंसक मानी जाती हैं।
  • भारत संघ बनाम के. ए. नजीब (2021) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि UAPA के अंतर्गत ज़मानत पर प्रतिबंधों के बावजूद संवैधानिक न्यायालय ज़मानत की अनुमति दे सकती हैं, यदि उन्हें लगता है कि आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।

निष्कर्ष:

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम (UAPA) आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, फिर भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव के कारण यह बहस का विषय बना हुआ है। सुरक्षा एवं नागरिक स्वतंत्रता के मध्य संतुलन स्थापित करने हेतु भारत में अधिक प्रभावी आतंकवाद विरोधी रणनीति के लिये विचारशील संशोधन, उचित प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता और UAPA के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।