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भूमि कानून

राजस्थान में किराया अधिकरण

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 29-May-2024

परिचय:

राजस्थान में किराया अधिकरण का गठन राज्य सरकार द्वारा राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (RRCA) की धारा 13 के तहत किया जाएगा।

  • किराया अधिकरण को मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवादों की सुनवाई तथा निर्णय करने का अधिकार है।

राजस्थान में किराया प्राधिकारी की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?

  • किराया प्राधिकारी की नियुक्ति:
    • किराया प्राधिकारी के रूप में राज्य सरकार द्वारा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, जो उपखंड अधिकारी के पद से नीचे का नहीं होगा।
    • RRCA की धारा 22-A के अधीन किराया प्राधिकारी की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान।
  • अपीलीय किराया अधिकरण:
    • किसी क्षेत्र के लिये राज्य सरकार द्वारा अपीलीय किराया अधिकरण का गठन किया जाएगा।
    • किराया अधिकरण द्वारा पारित किसी भी अंतिम आदेश के लिये अपीलीय किराया अधिकरण के समक्ष अपील दायर की जाएगी।
  • पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति:
    • किराया अधिकरण और अपीलीय किराया अधिकरण में एक-एक पीठासीन अधिकारी होता है।
    • पीठासीन अधिकारी को राजस्थान न्यायिक सेवा का सदस्य होना चाहिये तथा किराया अधिकरण के मामले में, उसका पद सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ डिवीज़न के पद से नीचे का नहीं होना चाहिये तथा वह ज़िला न्यायाधीश संवर्ग सेवा का सदस्य होना चाहिये, जिसके पास अपीलीय किराया अधिकरण के मामले में कम-से-कम तीन वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
    • पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाएगी।
    • पीठासीन अधिकारी को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक माना जाएगा।

राजस्थान में किराया अधिकरण की शक्तियाँ क्या हैं?

  • सिविल न्यायालय:
    • किराया अधिकरण या अपीलीय किराया अधिकरण को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 195 और अध्याय XXVI के प्रयोजनों के लिये, सिविल न्यायालय माना जाएगा।
    • किराया अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के अधीन दी गई प्रक्रिया से बाध्य नहीं है।
    • परंतु अधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
  • शक्तियाँ:
    अधिकरण के पास CPC के अधीन सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ हैं जब वह निम्नलिखित मामलों में वाद या अपील की सुनवाई करता है:
    • किसी भी व्यक्ति को बुलाना एवं उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना तथा शपथ पर उसकी जाँच करना
    • दस्तावेजों की खोज और प्रस्तुति की आवश्यकता
    • अपने निर्णय की समीक्षा
    • गवाहों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये आदेश जारी करना
    • चूक के कारण याचिका को खारिज करना या एकपक्षीय निर्णय देना
    • किसी भी याचिका को चूक के कारण खारिज करने के किसी भी आदेश या उसके द्वारा एकपक्षीय रूप से पारित किसी भी आदेश को रद्द करना
    • विधिक प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लाना
    • कोई अन्य मामला, जो कि निर्धारित किया जा सकता है
  • न्यायिक प्रक्रियाएँ:
    • किराया अधिकरण या अपीलीय किराया अधिकरण के समक्ष कोई कार्यवाही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 एवं 228 के अर्थ में तथा धारा 196 के प्रयोजन के लिये न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।

कब्ज़ा वापस पाने की प्रक्रिया क्या है?

  • कब्ज़े की पुनः प्राप्ति के लिये किरायेदार अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किराया अधिकरण के समक्ष याचिका दायर की जा सकती है।
  • किराया अधिकरण एक नोटिस जारी करेगा और मकान मालिक को जवाब प्रस्तुत करने के लिये एक तिथि तय करेगा।
  • नोटिस पंजीकृत डाक या पावती द्वारा दिया जा सकता है।
  • मकान मालिक जवाब प्रस्तुत कर सकता है और उसकी प्रति किरायेदार को दे सकता है।
  • याचिकाकर्त्ता (किरायेदार) प्रत्युत्तर दाखिल कर सकता है तथा उसकी प्रति मकान मालिक को दे सकता है।
  • इसके बाद किराया अधिकरण सुनवाई की तारीख तय करेगा।
  • याचिका का निपटारा मकान मालिक को नोटिस दिये जाने की तिथि से 90 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
  • संक्षिप्त जाँच के बाद, यदि किराया अधिकरण को यह पता चलता है कि किरायेदार को उसकी सहमति के बिना किराए के परिसर से अवैध रूप से बेदखल किया गया था, तो अधिकरण परिसर का कब्ज़ा बहाल करने का आदेश पारित कर सकता है।
  • अधिकरण, किरायेदार को हुई कठिनाई और असुविधा के लिये पर्याप्त क्षतिपूर्ति भी दे सकता है।
  • अधिकरण तत्काल कब्ज़े की वसूली के लिये प्रमाण-पत्र जारी करेगा।

किरायेदार को बेदखल करने की प्रक्रिया क्या है?

  • याचिका मकान मालिक या कब्ज़े का दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दायर की जा सकती है।
  • किराया अधिकरण एक नोटिस जारी करेगा और किरायेदार को जवाब प्रस्तुत करने के लिये एक तिथि तय करेगा
  • किरायेदार जवाब प्रस्तुत कर सकता है तथा उसकी प्रति मकान मालिक को दे सकता है।
  • मकान मालिक विपक्षी पक्ष को प्रतिलिपि देने के बाद प्रत्युत्तर दाखिल कर सकता है।
  • इसके बाद किराया अधिकरण सुनवाई की तारीख तय करेगा।
  • याचिका का निपटारा किरायेदार को नोटिस दिये जाने की तिथि से 245 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
  • सुनवाई के दौरान अधिकरण संक्षिप्त जाँच कर सकता है तथा याचिका पर निर्णय दे सकता है।
  • अधिकरण पक्षों के बीच विवाद के समाधान या सुलह के लिये भी प्रयास कर सकता है।
  • यदि अधिकरण मामले का निर्णय मकान मालिक के पक्ष में करता है, तो वह किरायेदार से कब्ज़े की वसूली के लिये प्रमाण-पत्र जारी करेगा।

निष्कर्ष:

किराया अधिकरण के आदेश के विरुद्ध अपीलीय किराया अधिकरण के समक्ष अपील दायर की जा सकती है। किराया अधिकरण मामलों के शीघ्र निपटान में मदद करता है।