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सांविधानिक विधि

संघ की न्यायपालिका का ढाँचा

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 17-Jun-2025

परिचय 

संघ की न्यायपालिका को अध्याय 4 के अधीन भारत की शीर्ष न्यायिक प्रणाली के रूप में स्थापित किया गया है, जिसमें उच्चतम न्यायालय को सर्वोच्च सांविधानिक प्राधिकरण के रूप में मान्यता प्राप्त है। उक्त उपबंधों का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को परिभाषित करना, तथा न्यायिक निरंतरता हेतु प्रक्रिया निर्धारित करना है। यह सांविधानिक ढाँचा नियमित न्यायाधीशों, कार्यवाहक नियुक्तियों तथा तदर्थ (ad hoc) व्यवस्थाओं से संबंधित उपबंधों को सम्मिलित करता है, जिससे न्यायिक कार्यप्रणाली की निरंतरता बनी रहे। यह प्रणाली स्वतंत्रता और जवाबदेही के मध्य संतुलन स्थापित करती है तथा न्याय के अबाध प्रशासन को सुनिश्चित करती है। 

उच्चतम न्यायालय की संरचना और न्यायिक नियुक्तियाँ (अनुच्छेद 124-125) 

  • स्थापना और संरचना: 
    • अनुच्छेद 124 भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों से मिलकर उच्चतम न्यायालय की स्थापना करता है। 
    • न्यायाधीशों की संख्या संसद निर्धारित करती है, वर्तमान में 2019 संशोधन के अधीन मुख्य न्यायाधीश सहित 34 न्यायाधीश हैं। 
    • राष्ट्रपति सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति हस्ताक्षर एवं मुद्रा सहित सहित अधिपत्र के माध्यम से करता है। 
    • न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं, तथा स्वैच्छिक त्यागपत्र देने का भी उपबंध है। 
    • नियुक्ति के लिये मूलतः विद्यमान न्यायाधीशों के परामर्श की आवश्यकता थी, किंतुराष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)प्रणाली शुरू की गई, जिसे बाद में समाप्त कर दिया गया। 
  • योग्यता और निष्कासन: 
    • न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये तीन मानदंडों में से एक को पूरा करने वाला भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। 
    • प्रथम योग्यता के लिये उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या न्यायाधीशों के रूप में लगातार पाँच वर्ष का अनुभव आवश्यक है। 
    • दूसरी योग्यता के लिये उच्च न्यायालय में अधिवक्ता या अधिवक्ता के रूप में लगातार दस वर्ष का अनुभव आवश्यक है। 
    • तीसरी योग्यता राष्ट्रपति की राय में प्रतिष्ठित न्यायविदों को अनुमति देती है। 
    • हटाने के लिये संसद के दोनों सदनों द्वारा अभिभाषण के बाद राष्ट्रपति के आदेश की आवश्यकता होती है। 
    • दोनों सदनों को कुल सदस्यता के बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से इसे हटाने का समर्थन करना होगा। 
    • हटाने के आधार केवल साबित कदाचार या असमर्थता तक ही सीमित है। 
  • सेवा शर्तें: 
    • अनुच्छेद 125 संसद को न्यायिक वेतन और लाभ निर्धारित करने का अधिकार देता है। 
    • न्यायाधीशों को संसद द्वारा निर्धारित विशेषाधिकार, भत्ते, अवकाश अधिकार और पेंशन प्राप्त होते हैं। 
    • नियुक्ति के पश्चात् किसी भी न्यायाधीश के लाभों में कोई प्रतिकूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 
    • न्यायाधीशों को तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गए प्ररूप के  अनुसार राष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेनी चाहिये 
    • उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश किसी भी भारतीय न्यायालय में प्रैक्टिस नहीं कर सकते। 

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (अनुच्छेद 124-124) 

  • आयोग संरचना: 
    • अनुच्छेद 124 ने संविधान (निन्यानवेवें संशोधन) अधिनियम, 2014 के माध्यम से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)) की स्थापना की। 
    • आयोग में भारत के मुख्य न्यायाधीश पदेन अध्यक्ष होंगे।  
    • उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों को पदेन सदस्य के रूप में नामित किया गया।  
    • केंद्रीय विधि मंत्री आयोग के पदेन सदस्य के रूप में शामिल थे। 
    • आयोग में दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को एक चयन समिति द्वारा नामित किया जाना था, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश, तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता सम्मिलित थे। 
    • इनमें से कम-से-कम एक प्रतिष्ठित व्यक्ति का प्रतिनिधित्व अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों अथवा महिलाओं में से किसी एक वर्ग से होना अनिवार्य था 
    • इन प्रतिष्ठित व्यक्तियों का कार्यकाल तीन वर्ष का निर्धारित था तथा उन्हें पुनर्नामनिर्देशन का अधिकार नहीं था 
  • कार्य एवं शक्तियां: 
    • अनुच्छेद 124-ख मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश करने के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के कर्त्तव्य को परिभाषित करता है। 
    • आयोग ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों और अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश की। 
    • इसने विभिन्न उच्च न्यायालयों के बीच न्यायाधीशों के स्थानांतरण को सुगम बनाया। 
    • आयोग ने यह सुनिश्चित किया कि सिफारिस किये गए व्यक्ति सक्षम और सत्यनिष्ठ हो। 
    • अनुच्छेद 124-ग संसद को नियुक्ति प्रक्रियाओं को विनियमित करने का अधिकार देता है। 
    • संसद आयोग को चयन नियम स्थापित करने के लिये अधिकृत कर सकती है। 
    • न्यायिक स्वतंत्रता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2015 में संपूर्ण राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग प्रणाली को रद्द कर दिया था। 

कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति का उपबंध  (अनुच्छेद 126) 

  • अस्थायी नेतृत्व व्यवस्था: 
    • अनुच्छेद 126 मुख्य न्यायाधीश के पद की रिक्तता या अस्थायी असमर्थता से संबंधित है। 
    • राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के किसी विद्यमान  न्यायाधीश को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करते हैं।  
    • कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियमित मुख्य न्यायाधीश के सभी कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है। 
    • यह उपबंध न्यायिक नेतृत्व में परिवर्तन की स्थिति में न्यायिक नेतृत्व की निरंतरता सुनिश्चित करता है।  
    • वर्तमान न्यायाधीशों में से नियुक्ति करना राष्ट्रपति का विवेकाधीन अधिकार है। 
    • कार्यकारी व्यवस्था तब तक जारी रहती है जब तक नियमित मुख्य न्यायाधीश पदभार ग्रहण नहीं कर लेते। 

कोरम आवश्यकताओं के लिये तदर्थ न्यायाधीश (अनुच्छेद 127) 

  • आपातकालीन न्यायिक व्यवस्था: 
    • अनुच्छेद 127 उन स्थितियों को संबोधित करता है जहाँ न्यायाधीशों की कोरम उपलब्ध नहीं है। 
    • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग या उपयुक्त प्राधिकारी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का अनुरोध कर सकते हैं।  
    • तदर्थ न्यायाधीश की उपस्थिति का अनुरोध करने से पहले राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। 
    • पदनाम निर्धारण से पहले संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया जाना चाहिये 
    • केवल उच्च न्यायालय के योग्य न्यायाधीश ही उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति के लिये योग्य हो सकते हैं। 
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश किसी विशिष्ट उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को तदर्थ कर्त्तव्य के लिये नामित करते हैं। 
  • शक्तियां एवं उत्तरदायित्त्व: 
    • तदर्थ न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के उत्तरदायित्त्व की अपेक्षा उच्चतम न्यायालय के कर्त्तव्यों को प्राथमिकता देनी चाहिये 
    • वे निर्धारित अवधि तक उच्चतम न्यायालय की बैठकों में उपस्थित रहते हैं। 
    • तदर्थ न्यायाधीशों को नियमित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की पूर्ण अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। 
    • वे अपने कार्यकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के सभी कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं। 
    • यह व्यवस्था न्यायाधीशों की कमी के होते हुए भी उच्चतम न्यायालय के कामकाज को सुनिश्चित करती है। 

सेवानिवृत्त न्यायाधीश और न्यायिक निरंतरता (अनुच्छेद 128) 

  • सेवानिवृत्त न्यायिक अनुभव का उपयोग: 
    • अनुच्छेद 128 उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पुनः कार्यभार संभालने की अनुमति देता है। 
    • पूर्व संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों को भी उच्चतम न्यायालय में कार्यभार सौंपने का अनुरोध किया जा सकता है। 
    • उच्च न्यायालय के योग्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य कर सकते हैं। 
    • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग या उपयुक्त प्राधिकारी राष्ट्रपति की सहमति से अनुरोध करता है।  
    • सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सेवा देने से पहले सहमति लेनी होगी। 
  • नियम और शर्तें: 
    • सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निर्धारित भत्ते मिलते हैं। 
    • सेवा अवधि के दौरान उनके पास पूर्ण अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होते हैं। 
    • यद्यपि, उन्हें उच्चतम न्यायालय का नियमित न्यायाधीश नहीं माना जाता। 
    • सेवा स्वैच्छिक है और किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सहमति के बिना बाध्य नहीं किया जा सकता। 
    • यह उपबंध अनुभवी न्यायिक कर्मियों के उपयोग को अधिकतम करता है। 
    • यह न्यायिक निरंतरता सुनिश्चित करता है और अस्थायी न्यायाधीशों की कमी को प्रभावी ढंग से दूर करता है। 

निष्कर्ष 

संघ की न्यायपालिका का ढाँचा क समग्र प्रणाली की स्थापना करता है, जो न्यायिक स्वतंत्रता तथा न्यायिक निरंतरता को सुनिश्चित करता है। 
न्यायाधीशों की नियुक्ति की विविध प्रक्रियाएँ एवं अस्थायी व्यवस्थाएँ उच्चतम न्यायालय की अबाध कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करती हैं। यह उपबंध नियमित नियुक्तियों एवं आपातकालीन अथवा संक्रमणकालीन स्थितियों हेतु लचीली व्यवस्थाओं के मध्य संतुलन स्थापित करते हैं। यद्यपि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) प्रणाली को निरस्त कर दिया गया, तथापि सांविधानिक प्रावधानों के माध्यम से सुदृढ़ न्यायिक प्रशासन बना रहता है, जो सांविधानिक तंत्र की प्रभावशीलता को दर्शाता है।