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बौद्धिक संपदा अधिकार

ANI बनाम मोहक मंगल - विधिक मामले का सारांश

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 19-Jun-2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने समाचार एजेंसी ANI और यूट्यूबर मोहक मंगल से संबंधित कॉपीराइट अतिलंघन, ट्रेडमार्क अपकथन और मानहानि से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मामले की सुनवाई की। यह मामला डिजिटल सामग्री निर्माताओं द्वारा कॉपीराइट सामग्री के उचित उपयोग के आसपास विकसित विधिक परिदृश्य प्रदान करता है। न्यायालय के निर्णय का कंटेंट निर्माताओं के लिये समाचार एजेंसी सामग्री का टिप्पणी और आलोचना के लिये उपयोग करने के अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है। यह मामला बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा और डिजिटल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने के बीच संतुलन को रेखांकित करता है।

ANI बनाम मोहक मंगल एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • ANI ने मोहक मंगल के वीडियो के विरुद्ध YouTube के साथ कॉपीराइट हटाने का अनुरोध दायर किया, जिसमें उनके कॉपीराइट की गई सामग्री के अनधिकृत उपयोग का दावा किया गया।
  • समाचार एजेंसी ने YouTube के कॉपीराइट अतिलंघन तंत्र के अंतर्गत कई निष्कासन नोटिस प्रस्तुत किये, जिसके परिणामस्वरूप मंगल के चैनल के विरुद्ध कॉपीराइट स्ट्राइक हुई।
  • मंगल ने जवाबी सूचनाओं के साथ प्रत्युत्तर दिया, जिसमें तर्क दिया गया कि उनके उपयोग ने आलोचना, समीक्षा और वर्तमान घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिये भारतीय कॉपीराइट विधान के अंतर्गत उचित व्यवहार किया है।
  • ANI ने कॉपीराइट अतिलंघन के लिये ट्रायल कोर्ट में और ट्रेडमार्क अतिलंघन, अपकथन एवं मानहानि के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में अलग-अलग मामले संस्थित किये।
  • इस वाद में मंगल के YouTube वीडियो "डियर ANI" को लक्षित किया गया, जिसे 5.5 मिलियन बार देखा गया तथा कॉमेडियन कुणाल कामरा एवं AltNews के सह-संस्थापक को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया।
  • ANI ने आरोप लगाया कि मंगल के वीडियो में एजेंसी को "गुंडा" और "अपहरणकर्त्ता" कहते हुए अपकथनजनक टिप्पणियाँ थीं, जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरणों के माध्यम से संचार को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था। 
  • यह मामला ANI के इस दावे से उत्पन्न हुआ कि मंगल उनके समाचार चैनल से ट्रैफ़िक को डायवर्ट कर रहे थे, जिससे उनके राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगल को अपने वीडियो से कुछ विशेष अपकथनजनक अंश हटाने का निर्देश दिया, जबकि शेष सामग्री को रहने दिया।
  • न्यायालय ने कहा कि मंगल के यूट्यूब चैनल को तत्काल कोई खतरा नहीं है, क्योंकि उन्होंने प्रत्युत्तर नोटिस दाखिल किया था, जिससे उनका वीडियो पर जवाब देना समय से पहले हो गया।
  • न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा कि जवाबी नोटिस दाखिल किये जाने के बाद न्यायालय में अपील करने की जिम्मेदारी ANI की है, न कि सामग्री निर्माता की।
  • न्यायालय ने वैध आलोचना और अपकथनजनक सामग्री के बीच अंतर किया, अपकथनजनक भाषा को हटाते हुए राय की अनुमति दी।
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि दर्शकों को ANI से सदस्यता समाप्त करने के लिये कहना स्वीकार्य है क्योंकि यह निर्माता की राय का प्रतिनिधित्व करता है तथा इसे हटाने से मुक्त भाषण में बाधा उत्पन्न होगी।
    • न्यायालय ने वीडियो को पूरी तरह से हटाने का आदेश देने से अस्वीकार कर दिया, इसके बजाय निर्माता के विचारों एवं वीडियो के आंकड़ों को संरक्षित करते हुए आपत्तिजनक हिस्सों को सर्जिकल तरीके से हटाने की आवश्यकता बताई। 
    • न्यायालय ने संकेत दिया कि टेलीफोन रिकॉर्डिंग से स्पष्ट सामग्री स्वीकार्य होगी, जिसमें तथ्यात्मक सटीकता बनाम भड़काऊ भाषा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

कॉपीराइट अधिनियम की धारा 52 के अंतर्गत खरा व्यौहार का सिद्धांत क्या है?

  • कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 52(1)(a) में प्रावधान है कि अनुसंधान सहित निजी या व्यक्तिगत उपयोग के लिये किसी भी कार्य (कंप्यूटर प्रोग्राम को छोड़कर) के साथ उचित प्रयोग कॉपीराइट का अतिलंघन नहीं माना जाएगा।
    • आलोचना या समीक्षा के उद्देश्य से खरा व्यौहार, चाहे वह उस कार्य का हो या किसी अन्य कार्य का, अधिनियम की धारा 52(1)(a)(ii) के अंतर्गत स्पष्ट रूप से संरक्षित है।
    • वर्तमान घटनाओं और समसामयिक मामलों की रिपोर्टिंग, जिसमें सार्वजनिक रूप से दिये गए व्याख्यान की रिपोर्टिंग भी शामिल है, धारा 52(1)(a)(iii) के अनुसार खरा व्यौहार अपवादों के अंतर्गत आती है।
  • अधिनियम खरा व्यौहार के प्रयोजनों के लिये इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में किसी भी कार्य को संग्रहीत करने की अनुमति देता है, जिसमें कंप्यूटर प्रोग्रामों का आकस्मिक भंडारण भी शामिल है जो अतिलंघनकारी प्रतियाँ नहीं हैं। 
  • धारा 52 के अंतर्गत खरा व्यौहार प्रावधानों के लिये शीर्षक और लेखक द्वारा कार्य की पहचान करने वाली पावती की आवश्यकता होती है, जब तक कि कार्य गुमनाम न हो, या लेखक ने पावती न देने पर सहमति व्यक्त की हो। 
  • न्यायिक कार्यवाही या न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्ट के लिये किसी भी कार्य का पुनरुत्पादन खरा व्यौहार विश्लेषण की आवश्यकता के बिना धारा 52(1)(d) के अंतर्गत संरक्षित है। 
  • शिक्षण संस्थानों द्वारा सीमित दर्शकों के लिये कार्यों के निर्देशन और प्रदर्शन के दौरान शिक्षकों या विद्यार्थियों द्वारा पुनरुत्पादन सहित शैक्षिक उपयोग धारा 52(1)(i) और (j) के अंतर्गत आते हैं।
  • धारा 52(1)(m) पत्रिकाओं में वर्तमान आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक विषयों पर लेखों के पुनरुत्पादन की अनुमति देती है, जब तक कि लेखक ने स्पष्ट रूप से पुनरुत्पादन अधिकार सुरक्षित न कर लिये हों।
  • धारा 52 के अंतर्गत उचित प्रयोग बचाव उप-धारा (2) के अनुसार साहित्यिक, नाटकीय, संगीत या कलात्मक कार्यों के अनुवाद और रूपांतरण तक विस्तारित है।
  • न्यायालय उद्देश्य, उपयोग की प्रकृति, उपयोग की गई मात्रा और कॉपीराइट स्वामी के बाजार पर प्रभाव जैसे कारकों पर विचार करते हुए मामले-दर-मामला आधार पर उचित व्यवहार अपवादों का निर्वचन करते हैं।

खरा व्यौहार की परिभाषा पर आधारभूत मामले क्या हैं?

  • हबर्ड एवं अन्य बनाम वोस्पर एवं अन्य (1972):
    • लॉर्ड डेनिंग ने खरा व्यौहार के लिये आधारभूत परीक्षण स्थापित करते हुए कहा: "यह परिभाषित करना असंभव है कि 'खरा व्यौहार' क्या है।" यह डिग्री का प्रश्न होना चाहिये। आपको सबसे पहले उद्धरणों और अंशों की संख्या और सीमा पर विचार करना चाहिये... फिर आपको उनके उपयोग पर विचार करना चाहिये... इसके बाद, आपको अनुपात पर विचार करना चाहिये।
  • करतार सिंह ज्ञानी बनाम लाधा सिंह:
    • उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि खरा व्यौहार में अनुचितता के लिये या तो (1) प्रतिस्पर्धा करने और प्रतिस्पर्धा से लाभ प्राप्त करने का आशय, या (2) अतिलंघनकर्त्ता का अनुचित उद्देश्य आवश्यक है।

शैक्षणिक उपयोग एवं पाठ्यक्रम सामग्री

  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के चांसलर, मास्टर्स और स्कॉलर्स एवं अन्य बनाम रामेश्वरी फोटोकॉपी सर्विसेज एवं अन्य (डीयू फोटोकॉपी मामला, 2016):
    • ऐतिहासिक निर्णय जिसमें स्थापित किया गया कि शैक्षणिक संस्थानों द्वारा 'कोर्स पैक' (निर्धारित पुस्तकों से फोटोकॉपी का संकलन) तैयार करना धारा 52(1)(i) के अंतर्गत कॉपीराइट का अतिलंघन नहीं है, जब तक कि फोटोकॉपी की गई सामग्री शैक्षणिक निर्देश उद्देश्यों के लिये उचित हो।

वाणिज्यिक बनाम निजी उपयोग का भेद

  • ब्लैकवुड बनाम परशुरामन (1959):
    • न्यायालय ने छात्र गाइडों के वाणिज्यिक प्रकाशन के लिये उचित व्यवहार के बचाव को खारिज कर दिया, तथा कहा कि "निजी अध्ययन" में केवल छात्रों द्वारा व्यक्तिगत नकल शामिल है, अन्य छात्रों के बीच प्रतियों का प्रचलन नहीं।
  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस सिंडिकेट बनाम कस्तूरी लाल एंड संस (2006):
    • यह स्थापित किया गया कि संपूर्ण अभ्यास और उत्तर कुंजियों की शब्दशः नकल को समीक्षा, आलोचना या मार्गदर्शन नहीं कहा जा सकता। 
    • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि "अनुसंधान और विद्वत्ता को प्रतिरूपण एवं साहित्यिक चोरी से आसानी से अलग पहचाना जा सकता है।"

निष्कर्ष 

दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय डिजिटल सामग्री निर्माण संबंधी अधिकारों बनाम बौद्धिक संपदा संरक्षण के प्रति संतुलित दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्ण निष्कासन के बजाय सर्जिकल संपादन की अनुमति देने का न्यायालय का निर्णय निर्माता की अभिव्यक्ति और कॉपीराइट धारक के वैध हितों दोनों को सुरक्षित रखता है। यह मामला पारंपरिक मीडिया संगठनों और डिजिटल सामग्री निर्माताओं के बीच भविष्य के विवादों के लिये महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। निर्णय इस तथ्य पर बल देता है कि निष्पक्ष आलोचना और टिप्पणी भारतीय विधान के अंतर्गत संरक्षित रहती है जबकि डिजिटल युग में अपकथनजनक सामग्री के लिये सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं।