होम / संपत्ति अंतरण अधिनियम
सिविल कानून
प्रह्लाद प्रधान एवं अन्य बनाम सोनू कुम्हार एवं अन्य (2007)
« »30-Sep-2024
परिचय:
यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई व्यक्ति ऐसी संपत्ति नहीं बेच सकता, जिसमें उसका कोई अधिकार, हक या हित न हो।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने सुनाया।
तथ्य:
- राधानाथ कुम्हार, मौज़ा नलिता गाँव में कृषि भूमि तथा एक मकान के मालिक थे।
- राधानाथ कुम्हार की बिना वसीयत के मृत्यु हो गई एवं उनकी संपत्ति उनके विधिक उत्तराधिकारियों को सौंप दी गई।
- जोतो, राधानाथ कुम्हार का पुत्र है (उनके 5 अन्य पुत्र हैं) और मंगल कुम्हार, जोतो का पुत्र है।
- मंगल कुम्हार की मृत्यु के बाद उनकी विधवा एतवारी कुम्हारिन ने पंजीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से अपीलकर्त्ताओं को 1,000 रुपये के मूल्य पर विवादित संपत्ति बेचने का दावा किया।
- प्रतिवादी संख्या 1 से 3, जो स्वर्गीय राधानाथ कुम्हार के दो पुत्रों के विधिक उत्तराधिकारी हैं, ने इस आधार पर मुंसिफ न्यायालय में वाद दायर किया कि वादाधीन संपत्ति पैतृक संपत्ति है और एतवारी कुम्हारिन को इसे बेचने का कोई अधिकार नहीं है।
- प्रतिवादियों ने मंगल कुम्हार और एतवारी कुम्हारिन के विधिक उत्तराधिकारियों अर्थात उनकी बेटियों फुलझरी एवं बाबी तथा पोते-पोतियों को प्रोफार्मा प्रतिवादी के रूप में शामिल किया।
- वादी/प्रत्यर्थी ने यह घोषणा करने के लिये प्रार्थना की कि विक्रय विलेख शून्य और अवैध है तथा वादी और प्रत्यर्थी के विवादित संपत्ति पर स्वामित्व की घोषणा की जाए।
- ट्रायल कोर्ट ने निम्नलिखित आधारों पर वादी/प्रत्यर्थी के पक्ष में निर्णय दिया:
- वाद की संपत्ति पूर्वज राधानाथ कुम्हार की संयुक्त पारिवारिक संपत्ति का भाग थी।
- चूँकि संपत्ति का विभाजन नहीं हुआ था इसलिये मंगल कुम्हार की विधवा को पैतृक संपत्ति का भाग बेचने का कोई अधिकार नहीं था।
- ट्रायल कोर्ट ने आगे कहा कि मंगल कुम्हार की मृत्यु के बाद उनकी विधवा एतवारी कुम्हारिन को वाद की संपत्ति में कोई विशेष अधिकार, शीर्षक या हित प्राप्त नहीं हुआ था और वह अपीलकर्त्ताओं के पक्ष में वाद की संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिये सक्षम नहीं थी।
- एतवारी कुम्हारिन आवश्यक पक्ष नहीं थी, क्योंकि बिक्री विलेख निष्पादित करने के बाद वाद की संपत्ति में उसकी कोई रुचि नहीं थी।
- इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने एक आदेश पारित कर बिक्री विलेख को शून्य एवं अवैध घोषित कर दिया तथा वादी/प्रत्यर्थी और प्रोफार्मा प्रतिवादियों के विवादित संपत्ति पर कब्ज़े की पुष्टि कर दी।
- इस निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ताओं ने झारखंड उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
- उच्च न्यायालय ने द्वितीय अपील को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि मामले में कोई भी विचारणीय महत्त्वपूर्ण विधिक प्रश्न उपस्थित नहीं था।
- इस निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की।
शामिल मुद्दे
- क्या निचले न्यायालयों के निर्णय को उच्चतम न्यायालय द्वारा पलटा जा सकता है?
टिप्पणियाँ:
- न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता यह सिद्ध करने में असफल रहे कि वादाधीन संपत्ति मंगल कुम्हार की स्वअर्जित संपत्ति थी।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि मंगल कुम्हार के पास विवादित संपत्ति पर कोई विशेष अधिकार, हक या हित नहीं था, इसलिये उनकी विधवा विधिक रूप से अपीलकर्त्ताओं को विवादित संपत्ति बेचने के लिये सक्षम नहीं थी।
- न्यायालय ने माना कि प्रतिवादियों द्वारा दायर वाद में एतवारी कुम्हारिन का शामिल न होना कोई परिणामकारी बिंदु नहीं होगा, क्योंकि बिक्री विलेख के निष्पादन के बाद एतवारी कुम्हारिन का वाद वाली संपत्ति में कोई हित शेष नहीं था।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि दोनों निचले न्यायालयों के निष्कर्ष वैध हैं।
निष्कर्ष:
- जहाँ विक्रेता का संपत्ति पर कोई अधिकार, हक या हित नहीं है, वहाँ वह उसे अंतरित नहीं कर सकता।
- इसलिये, इस मामले में न्यायालय ने माना कि निष्पादित विक्रय विलेख वैध नहीं है।