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वाणिज्यिक विधि
माध्यस्थम् कार्यवाही का संचालन
«02-May-2025
परिचय
माध्यस्थम् कार्यवाही का संचालन माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act) के अध्याय 5 द्वारा नियंत्रित होता है, जो भारत में माध्यस्थम् कार्यवाही के संचालन को विनियमित किया गया है, जो भारत में माध्यस्थम् की प्रक्रिया को लागू करने हेतु एक विधिक ढाँचा प्रदान करता है। इन प्रावधानों का उद्देश्य माध्यस्थम् प्रक्रिया में दक्षता, निष्पक्षता एवं लचीलापन सुनिश्चित करते हुए प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखना है। न्यायालय कार्यवाही के विपरीत, माध्यस्थम् पक्षकारों को उनके विवाद समाधान की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले प्रक्रिया संबंधी नियमों को निर्धारित करने हेतु पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करती है। यह दस्तावेज़ माध्यस्थम् अधिकरण कार्यवाही से संबंधित प्रमुख प्रावधानों को रेखांकित करता है, जो पक्षकारों की स्वायत्तता और माध्यस्थम् अधिकरण की प्राधिकारिता के मध्य संतुलन को दर्शाता है।
प्रमुख प्रावधान
पक्षकारों के समान बर्ताव (धारा 18)
- माध्यस्थम् अधिकरण को सभी पक्षकारों के साथ समान बर्ताव करना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक पक्षकार को अपना मामला प्रस्तुत करने का पूर्ण अवसर दिया जाए। यह उपबंध माध्यस्थम् में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के मूल सिद्धांत को स्थापित करता है।
प्रक्रिया के नियमों का अवधारण (धारा 19)
- माध्यस्थम् अधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 से आबद्ध नहीं है।
- पक्षकार माध्यस्थम् अधिकरण द्वारा अपनी कार्यवाहियों के संचालन में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर करार करने के लिये स्वतंत्र हैं।
- पक्षकार की करार के अभाव में, माध्यस्थम् अधिकरण उस रीति से कार्यवाही संचालित कर सकता है जिसे वह समुचित समझे।
- माध्यस्थम् अधिकरण को किसी भी साक्ष्य की ग्राह्यता, सुसंगता, तात्विकता और महत्त्व का अवधारण करने की शक्ति प्राप्त है।
माध्यस्थम् का स्थान (धारा 20)
- पक्षकार माध्यस्थम् के स्थान (seat) के लिये करार करने के लिये स्वतंत्र हैं।
- यदि कोई करार नहीं होता है, तो माध्यस्थम् अधिकरण मामले की परिस्थितियों और पक्षकारों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए माध्यस्थम् का स्थान निर्धारित करेगा।
- माध्यस्थम् के निर्दिष्ट स्थान के होते हुए भी अधिकरण किसी भी स्थान पर बैठक कर सकता है जिसे वह परामर्श, साक्षियों, विशेषज्ञों या पक्षकारों को सुनने के लिये, या दस्तावेज़ों माल या अन्य संपत्ति के निरीक्षण के लिये समुचित समझे।
माध्यस्थम् कार्यवाहियों का प्रारंभ (धारा 21)
- जब तक कि पक्षकारों द्वारा अन्यथा करार न हो, माध्यस्थम् कार्यवाही उस तिथि से प्रारंभ होती है, जिसकों उस विवाद को माध्यस्थम् को निर्देशित करने के लिये अनुरोध प्रत्यर्थी द्वारा प्राप्त किया जाता है।
भाषा (धारा 22)
- पक्षकार माध्यस्थम् कार्यवाहियों में प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं पर करार करने के लिये स्वतंत्र हैं।
- करार न होने पर अधिकरण भाषा का अवधारण करेगा।
- भाषा अवधारण अधिकरण द्वारा लिखित कथनों, सुनवाई और किसी भी संसूचना पर लागू होता है।
- माध्यस्थम् अधिकरण यह आदेश कर सकेगा कि किसी दस्तावेज़ी साक्ष्य के साथ उसका उस भाषा या उन भाषाओं में, जो पक्षकारों द्वारा करार की गई हैं या माध्यस्थम् अधिकरण द्वारा अवधारित की गई, अनुवाद होगा।
दावा और प्रतिरक्षा के कथन (धारा 23)
- दावेदार को अपने दावे के समर्थन में तथ्य, विवाद्यक मुद्दों तथा मांगे गए अनुतोष को करार द्वारा कालवधि के भीतर बताना होगा।
- प्रत्यर्थी को निर्धारित समय सीमा के भीतर अपना बचाव प्रस्तुत करना होगा।
- पक्षकार अपने कथनों के साथ सुसंगत दस्तावेज़ प्रस्तुत या संदर्भित कर सकते हैं।
- यदि वे माध्यस्थम् करार के दायरे में आते हैं तो प्रत्यर्थी प्रतिदावे प्रस्तुत कर सकते हैं या मुजराई का अभिवाक् कर सकते हैं (धारा 23(2क))।
- पक्षकार कार्यवाही के दौरान दावे या प्रतिरक्षा में संशोधन या अनुपूरण कर सकते हैं, जब तक कि अधिकरण विलंब के कारण इसे अनुचित न समझे।
- दावे और प्रतिरक्षा के कथन मध्यस्थ(यों) को नियुक्ति की लिखित सूचना प्राप्त होने की तारीख से छह मास के भीतर पूरे किये जाने चाहिये (धारा 23(4))।
सुनवाई और लिखित कार्यवाहियां (धारा 24)
- अधिकरण यह विनिश्चय करेगा कि मौखिक सुनवाई की जाए या दस्तावेज़ों और अन्य सामग्रियों के आधार पर कार्यवाही की जाए, जब तक कि पक्षकार द्वारा अन्यथा करार न किया गया हो।
- माध्यस्थम् अधिकरण, यदि किसी पक्षकार द्वारा अनुरोध किये जाने पर कार्यवाहियों के उचित प्रक्रम पर मौखिक सुनवाई करेगा, जब तक कि पक्षकारों द्वारा कोई यह करार न किया गया हो कि कोई मौखिक सुनवाई नहीं की जाएगी।
- जहाँ तक संभव हो, सुनवाई दैनिक आधार पर की जानी चाहिये तथा स्थगन केवल पर्याप्त कारण होने पर ही दिया जाना चाहिये, जिसमें संभावित खर्च भी सम्मिलित हो।
- दस्तावेज़ों या संपत्ति के निरीक्षण के लिये सुनवाई और बैठकों की पर्याप्त अग्रिम सूचना पक्षकारों को मिलनी चाहिये।
- एक पक्षकार द्वारा अधिकरण में प्रस्तुत सभी कथन, दस्तावेज़ या आवेदन दूसरे पक्षकार को अवश्य बताए जाने चाहिये।
- अधिकरण द्वारा विश्वास की गई किसी भी विशेषज्ञ रिपोर्ट या साक्ष्य दस्तावेज़ को पक्षकारों को अवश्य सूचित किया जाना चाहिये।
किसी पक्षकार का व्यतिक्रम (धारा 25)
- पर्याप्त हेतुक दर्शित किये बिना:
- यदि दावेदार दावे का विवरण संप्रेषित करने में असफल रहता है, तो अधिकरण कार्यवाही समाप्त कर देगा।
- यदि प्रत्यर्थी प्रतिरक्षा का अपना कथन संसूचित करने में असफल रहता है, तो अधिकरण इस असफलता को आरोपों की स्वीकृति के रूप में माने बिना कार्यवाही जारी रखेगा, और प्रत्यर्थी के ऐसे प्रतिरक्षा कथन को फाइल करने के अधिकार को समपहृत मान सकता है।
- यदि कोई पक्षकार सुनवाई पर उपसंजात होने या दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहता है, तो अधिकरण कार्यवाही जारी रख सकता है और उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर पंचाट दे सकता है।
माध्यस्थम् अधिकरण द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ (धारा 26)
- जब तक अन्यथा करार न हो, अधिकरण विनिर्दिष्ट विवाद्यकों पर रिपोर्ट करने के लिये विशेषज्ञों की नियुक्ति कर सकता है।
- अधिकरण, विशेषज्ञों के निरीक्षण के लिये पक्षकारों से सुसंगत जानकारी या दस्तावेज़ों या संपत्ति तक पहुँच की व्यवस्था करने के अपेक्षा कर सकता है।
- यदि किसी पक्षकार द्वारा अनुरोध किया जाता है या अधिकरण द्वारा आवश्यक समझा जाता है, तो विशेषज्ञ को पूछताछ के लिये मौखिक सुनवाई में भाग लेना होगा और पक्षकारों को अपने स्वयं के विशेषज्ञ साक्षियों को प्रस्तुत करने की अनुमति देनी होगी।
- अनुरोध करने पर, विशेषज्ञ को रिपोर्ट तैयार करने के लिये प्रदान की गई सभी सामग्रियां पक्षकारों को उपलब्ध करानी होंगी।
साक्ष्य लेने में न्यायालय की सहायता (धारा 27)
- माध्यस्थम् अधिकरण या कोई पक्षकार (अधिकरण की स्वीकृति से) साक्ष्य लेने में सहायता के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
- आवेदन में पक्षकारों, मध्यस्थों, दावे की प्रकृति और मांगे गए साक्ष्य का विवरण निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।
- न्यायालय अपनी सक्षमता के भीतर तथा साक्ष्य लेने के अपने नियमों के अनुसार अनुरोध को निष्पादित कर सकता है।
- न्यायालय साक्षियों को वैसी ही आदेशिकएं जारी कर सकेगा जो वह अपने समक्ष विचारण किये जाने वाले वादों में जारी कर सकता हैं।
- न्यायालय प्रक्रियाओं का पालन करने में असफल रहने वाले व्यक्तियों को दण्ड का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि उन्हें न्यायालय कार्यवाही में करना पड़ता है।
निष्कर्ष
माध्यस्थम् की प्रक्रिया से संबंधित उपबंध माध्यस्थम् के मूलभूत सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं- पक्षकारों की स्वायत्तता, प्रक्रिया में लचीलापन, तथा कार्यकुशलता। यद्यपि विधि पक्षकारों को प्रक्रिया संबंधी ढाँचे के निर्धारण हेतु व्यापक अधिकार प्रदान करता है, साथ ही यह कुछ व्यतिक्रम नियमों का भी उपबंध करता है तथा माध्यस्थम् को विवादों के निष्पक्ष एवं दक्षतापूर्वक समाधान हेतु पर्याप्त विवेकाधिकार प्रदान करता है। माध्यस्थम् अधिकरण को उन कठोर प्रक्रिया संहिताओं से मुक्त रखा गया है जो सामान्यतः न्यायालय कार्यवाहियों पर लागू होती हैं, जिससे अधिक सुगम एवं सरलीकृत प्रक्रिया को अपनाया जा सके। तथापि, प्रक्रिया की निष्पक्षता एवं पक्षकारों के समान बर्ताव की रक्षा हेतु पर्याप्त विधिक सुरक्षात्मक उपचारों का भी उपबंध किया गया है। ये उपबंध सम्मिलित रूप से एक संतुलित विधिक ढाँचा निर्मित करते हैं, जो माध्यस्थम् को एक प्रभावी वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली के रूप में स्थापित करते हैं, साथ ही आवश्यक प्रक्रिया-संबंधी अखंडता एवं न्यायसंगतता को भी बनाए रखते हैं।