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सांविधानिक विधि

प्रदीप कुमार विश्वास बनाम भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान (2002) 5 SCC 111

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 11-Aug-2023

परिचय

●    यह प्रकरण/वाद भारत के संवैधानिक विधि और इतिहास के ऐतिहासिक निर्णयों में से एक बन गया, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 12 में अस्पष्टता के संबंध में यह प्रकरण/वाद विशिष्ट हो गया है।

●    इस प्रकरण/वाद में सभाजीत तिवारी बनाम भारत संघ (1975) में सुनाए गए निर्णय को पलट दिया गया।

●    इस प्रकरण/वाद में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) के विभिन्न प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यात्मक पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण किया गया था और बहुमत की राय यह थी कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) "राज्य" के दायरे में आता है। 

तथ्य

●    वर्तमान याचिका जिस प्रकरण/वाद पर आधारित थी वह सभाजीत तिवारी प्रकरण/वाद था।

o    वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) के लिये कार्य करने वाले एक कनिष्ठ आशुलिपिक सभाजीत तिवारी ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की, जिसमें वर्ष 1972 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) में नए भर्ती किये गए आशुलिपिकों के पारिश्रमिक में एकरूपता का दावा किया गया। 

o    उनके दावे को पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने खारिज़ कर दिया क्योंकि यह माना गया कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)  संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक "प्राधिकरण" नहीं था, जिसके कारण यह रिट आवेदन सुनवाई योग्य नहीं था।

●    अपीलकर्त्ताओं ने सभाजीत तिवारी प्रकरण/वाद में प्रस्तुत किये गए समान तर्कों के आधार पर भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान (CSIR की एक इकाई) (प्रतिवादी 1) द्वारा उनकी सेवाओं की समाप्ति को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। 

●    उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए विशेष अनुमति के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी।

●    उच्चतम न्यायालय की दो-न्यायाधीशों वाली पीठ ने इस प्रकरण/वाद को 7 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक-पीठ के पास भेज दिया, उनका मानना था कि उपरोक्त सभाजीत तिवारी प्रकरण/वाद में भारत सरकार द्वारा स्थापित किये गए समान प्रकृति के कई अन्य संस्थानों के संबंध में उच्चतम न्यायालय के बाद के निर्णयों के मद्देनजर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। 

शामिल मुद्दे

●    क्या वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) "राज्य" के अर्थ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे के अंतर्गत आता है?

●    क्या यह बड़ी पीठ पूर्व में और हाल ही में इसी न्यायालय द्वारा सुनाए गए सभाजीत तिवारी प्रकरण/वाद के निर्णय को खारिज़ कर देगी?

टिप्पणियाँ

●    न्यायालय ने यह टिप्पणी कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR)  पर वित्तीय, कार्यात्मक और प्रशासनिक रूप से सरकार का नियंत्रण था और यह नियंत्रण मामूली नहीं बल्कि गहरा और व्यापक था।

●    सरकार ने उस काम को संगठित तरीके से आगे बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की स्थापना की थी जो काम पहले केंद्र सरकार के वाणिज्य विभाग द्वारा किया जा रहा था।

●    वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की स्थापना देश में नियोजित औद्योगिक विकास को बढ़ावा देकर समाज के आर्थिक कल्याण को आगे बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय हित में की गई थी।

●    यह माना गया कि शासी निकाय के पास वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) के उपनियमों को बनाने, संशोधित करने या अपील करने या निरस्त करने की शक्ति भी है, लेकिन ये सब केवल भारत सरकार की मंज़ूरी के साथ ही किया जा सकता है।

●    वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की तत्कालीन वित्तीय स्थिति यह थी कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की कम से कम 70% धनराशि भारत सरकार द्वारा प्रदान किये गए अनुदान से उपलब्ध होती थी।

●    न्यायालय ने कहा कि " वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) की परिसंपत्ति और निधियाँ हालाँकि नाममात्र रूप से सोसायटी के स्वामित्व में हैं, लेकिन अंतिम विश्लेषण सरकार के स्वामित्व में हैं।"

●    इसलिये, इस प्रकरण/वाद में संबंधित निकाय - भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान- जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक इकाई है, के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य थी।

निष्कर्ष

●    चूँकि यह निर्णय उच्चतम न्यायालय की सात-न्यायाधीशों वाला बड़ी पीठ द्वारा सुनाया गया था, इसलिये सभाजीत तिवारी प्रकरण/वाद के गलत निष्कर्षों के उदाहरण को खारिज़ किया जा सकता है।

●    न्यायालय ने वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) को अनुच्छेद 12 के तहत "अन्य प्राधिकरणों" के दायरे के अंतर्गत माना और इसलिये एक ऐसा "राज्य" माना जिसके खिलाफ रिट जारी की जा सकती है। 

नोट

भारत के संविधान का अनुच्छेद 12 राज्य के अर्थ से संबंधित है, जिसमें जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान- मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।

अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपने अधिकारों का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये और किसी अन्य प्रयोजन के लिये उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।