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आपराधिक कानून
खेलों में आयु संबंधी कूटरचना
« »30-Jul-2025
चिराग सेन एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य “कथित आयु संबंधी कूटरचना के लिये ओलंपियन बैडमिंटन खिलाड़ियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, तथा कहा कि ऐसी कार्यवाही जारी रखना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जबकि सक्षम प्राधिकारी पहले ही मामले की जाँच कर चुके हैं और उसे बंद कर चुके हैं”। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार |
स्रोत: उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने चिराग सेन एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में कथित आयु संबंधी कूटरचना के लिये ओलंपियन बैडमिंटन खिलाड़ियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, तथा कहा है कि ऐसी कार्यवाही जारी रखना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जब सक्षम प्राधिकारी पहले ही मामले की जाँच कर चुके हैं और उसे बंद कर चुके हैं।
चिराग सेन एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला 27 जून 2022 को श्री नागराजा एम.जी. द्वारा हाई ग्राउंड्स पुलिस स्टेशन, बेंगलुरु के पुलिस निरीक्षक के समक्ष दर्ज कराई गई एक शिकायत से उत्पन्न हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चिराग सेन और लक्ष्य सेन ने अंडर-13 और अंडर-15 श्रेणियों में टूर्नामेंट के लिये अर्हता प्राप्त करने के लिये अपनी जन्मतिथि गलत बताई थी।
- यह आरोप लगाया गया था कि खिलाड़ियों ने इस मिथ्या बयानी के माध्यम से गलत चयन और मौद्रिक पुरस्कार प्राप्त किये थे, उनके माता-पिता और कोच ने रिकॉर्ड में कूटरचना और मनगढ़ंत षड्यंत्र रचा था।
- जब प्रारंभिक शिकायत पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई, तो प्रतिवादी संख्या 2 ने आठवें अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु के समक्ष दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 200 के अंतर्गत एक निजी शिकायत दर्ज की, जिसे पी.सी.आर. संख्या 14448/2022 के रूप में पंजीकृत किया गया।
- 16 नवंबर 2022 के आदेश द्वारा, विद्वान मजिस्ट्रेट ने CrPC की धारा 156(3) के अधीन अंवेषण करने का निर्देश दिया, जिसके बाद 01 दिसंबर 2022 को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 420, 468, 471 एवं 34 के अधीन FIR संख्या 194/2022 दर्ज की गई।
- अपीलकर्त्ताओं ने भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226 एवं 227 के साथ CrPC की धारा 482 के अधीन कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं के माध्यम से कार्यवाही को चुनौती दी, जिन्हें एक सामान्य निर्णय द्वारा खारिज कर दिया गया।
- अपीलकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि लगभग एक दशक पहले भी इसी तरह के आरोप लगाए गए थे तथा भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI), केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और कर्नाटक के शिक्षा विभाग सहित सक्षम सांविधिक अधिकारियों द्वारा जाँच के अधीन थे।
- CVC ने 06 फरवरी 2018 को आधिकारिक ज्ञापन संख्या 017/EDN/038/370760 के माध्यम से पाया था कि जन्म प्रमाण पत्र और 10वीं कक्षा का प्रमाण पत्र अंतिम हैं, तथा तदनुसार SAI ने CVC की अनुशंसा के तत्त्वावधान में अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध मामला बंद कर दिया।
- पूरी शिकायत 1996 के एक अकेले GPF नामांकन फॉर्म पर आधारित थी, जिसमें कथित तौर पर अलग-अलग जन्मतिथियाँ दी गई थीं, लेकिन यह फॉर्म न तो प्रमाणित था और न ही फोरेंसिक जाँच के अधीन था और इसमें लक्ष्य सेन का नाम भी नहीं था (जिनका जन्म 1996 में नहीं हुआ था)।
- शिकायतकर्त्ता की शिकायतें तब आरंभ हुईं जब उनकी बेटी को 2020 में बैडमिंटन अकादमी में प्रवेश देने से मना कर दिया गया, तथा लगभग आठ वर्ष के अंतराल के बाद वर्ष 2022 में FIR दर्ज की गई।
- खिलाड़ियों ने दिल्ली के एम्स सहित सरकारी अस्पतालों में अस्थि एवं दंत परीक्षण करवाए थे, तथा निष्कर्ष आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज जन्म वर्षों का समर्थन करते थे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामला असाधारण परिस्थितियों की श्रेणी में आता है, जिसके अंतर्गत आपराधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये हस्तक्षेप आवश्यक है।
- न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने कहा कि शिकायत की पूरी संरचना एक मात्र दस्तावेज़ - वर्ष 1996 के GPF नामांकन फॉर्म - पर आधारित है, जो न केवल प्रमाणीकरण से रहित है, बल्कि अपीलकर्त्ताओं के किसी भी छल के आशय या कृत्य को स्थापित करने में भी विफल है।
- न्यायालय ने कहा कि शिकायत में प्रतिशोध की भावना स्पष्ट रूप से व्याप्त है, क्योंकि शिकायतकर्त्ता की शिकायतें वर्ष 2020 में उसकी बेटी को अकादमी में प्रवेश देने से इनकार करने के बाद ही आरंभ हुईं, जिसमें विलंब, नई ठोस साक्ष्यों का अभाव और स्पष्ट व्यक्तिगत द्वेष सामूहिक रूप से शिकायत की प्रामाणिकता को कमजोर कर रहे हैं।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि आरोप अनुमान एवं पूर्वाग्रह पर आधारित हैं तथा स्पष्टतः अपीलकर्त्ताओं को बदनाम करने के आशय से अध्यारोपित किये गए हैं, न तो किसी कपट से प्रलोभन या लाभ का प्रदर्शन किया गया है, न ही राज्य या किसी तीसरे पक्ष को कोई गलत नुकसान पहुँचाया गया है।
- न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि SAI, भारतीय बैडमिंटन प्राधिकरण और CVC द्वारा संस्थागत स्वीकृति के बावजूद कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देने से अपीलकर्त्ताओं के खेल करियर पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और जाँच के निष्कर्षों में जनता का विश्वास कम होगा।
- आपराधिक प्रावधानों की प्रयोज्यता के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि शिकायत में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 468 एवं 471 के अधीन आवश्यक मूलभूत तत्त्वों का प्रकटन नहीं किया गया है, तथा न ही यह आरोप लगाया गया है कि अपीलकर्त्ताओं ने कूटरचित दस्तावेज़ बनाए या साशय कूटरचित दस्तावेज़ों को मूल रूप में प्रयोग किया।
- न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी को छल से संपत्ति देने या कोई लाभ प्रदान करने के लिये प्रेरित नहीं किया गया था, तथा GPF फॉर्म को अंकित मूल्य पर लेने पर भी, यह प्रदर्शित नहीं किया गया कि खिलाड़ियों (जो उस समय अवयस्क थे) या उनके कोच की इसकी तैयारी में कोई भूमिका कैसे थी।
- न्यायालय ने पेप्सी फूड्स लिमिटेड बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (1998) का उदाहरण देते हुए दोहराया कि आपराधिक कार्यवाही में किसी अभियुक्त को समन करना एक गंभीर मामला है तथा इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये, और कहा कि "वर्तमान मामला इस तथ्य का उदाहरण है कि कैसे वैधता की आड़ में किसी अन्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा सकता है"।
- न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर के ऐसे खिलाड़ियों को, जिन्होंने बेदाग रिकॉर्ड बनाए रखा है तथा निरंतर उत्कृष्टता के माध्यम से देश को गौरवान्वित किया है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और राष्ट्रमंडल खेलों और BWF अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में पदक सहित कई पुरस्कार अर्जित किये हैं, प्रथम दृष्टया साक्ष्य के अभाव में आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिये बाध्य करना न्याय को विफल करेगा।
- परिणामस्वरूप, उच्चतम न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली, उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया तथा आगे की सभी कार्यवाही रद्द कर दी।