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वाणिज्यिक विधि
माध्यस्थम् का विवाद
«18-Aug-2025
संजीत सिंह सलवान एवं अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं अन्य "जब कोई पक्षकार स्वेच्छा से माध्यस्थम् के लिये प्रस्तुत होता है और सहमति डिक्री को स्वीकार करता है, तो विबंध का सिद्धांत लागू होता है, जिससे उस पक्षकार के लिये बाद में इस आधार पर डिक्री को चुनौती देना अनुचित हो जाता है कि ऐसे विवाद माध्यस्थम् योग्य नहीं हैं।" न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और अतुल एस. चंदूरकर |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
संजीत सिंह सलवान एवं अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं अन्य (2025) मामले में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और अतुल एस. चंदुरकर की उच्चतम न्यायालय की पीठ ने निर्णय दिया कि पक्षकार पहले माध्यस्थम् पंचाटों को स्वीकार करके और बाद में उनकी वैधता को चुनौती देकर विरोधाभासी रुख नहीं अपना सकते।
संजीत सिंह सलवान एवं अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- दोनों पक्षकारों ने गुरु तेग बहादुर चैरिटेबल ट्रस्ट (1979 में स्थापित) के न्यासी होने का दावा किया।
- प्रत्यर्थियों ने अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध स्थायी व्यादेश के लिये वाद दायर किया तथा अपने वाद में स्पष्ट रूप से कहा यह वाद सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 92 द्वारा वर्जित नहीं है।
- अपील के दौरान, दोनों पक्षकारों ने श्री विपिन सोढ़ी द्वारा माध्यस्थम् के माध्यम से विवादों को सुलझाने पर आपसी सहमति व्यक्त की । माध्यस्थम् ने 30 दिसंबर, 2022 को अपना पंचाट दिया, जिसे दोनों पक्षकारों ने स्वीकार कर लिया। जिला न्यायालय ने 27 जनवरी, 2023 को समझौता विलेख के आधार पर अपील का निपटारा कर दिया।
- बाद में, जब अपीलकर्त्ताओं ने माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996 के अधीन धारा 9 के अधीन आवेदन देकर प्रवर्तन की मांग की, तो प्रत्यर्थियों ने पंचाट की वैधता को चुनौती दी और दावा किया कि यह सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के अधीन अकृत है।
- वाणिज्यिक न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
न्यायालय ने आचरण द्वारा विबंधन के सिद्धांत पर बल देते हुए कहा, "यह स्पष्ट रूप से तर्क देते हुए कि उनके द्वारा दायर वाद संहिता की धारा 92 के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आता, अब उनके लिये इस आधार पर समझौता विलेख की वैधता का विरोध करना संभव नहीं होगा।" न्यायालय ने आगे कहा कि:
- पक्षकार असंगत रुख अपनाकर "प्रतिकूल रुख" नहीं अपना सकते।
- न्यायालय ने पाया कि प्रत्यर्थियों ने जानबूझकर यह अभिवचन किये थे कि वाद पोषणीय है, फिर उन्होंने स्वेच्छा से माध्यस्थम् में भाग लिया।
- प्रत्यर्थियों ने शुरू में कहा कि उनके वाद पर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 द्वारा रोक नहीं लगाई गई थी।
- उन्होंने स्वेच्छा से माध्यस्थम् में भाग लिया और अनुकूल सहमति डिक्री प्राप्त की।
- बाद में उन्होंने पंचाट की वैधता को चुनौती देते हुए "पूरी तरह से विपरीत रुख" अपनाया ।
- अपीलकर्त्ताओं ने पंचाट की शर्तों का पालन करके अपनी स्थिति को अपने लिये नुकसानदेह बना लिया था।
अंतिम निदेश:
- वाणिज्यिक न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों को अपास्त किया।
- अपीलकर्त्ताओं को निष्पादन कार्यवाही को पुनर्जीवित करने की अनुमति दी गई।
- निदेशित निष्पादन कार्यवाही का निर्णय गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा।
आचरण द्वारा विबंधन का सिद्धांत क्या है?
बारे में:
- पक्षकारों को विरोधाभासी रुख अपनाने से रोकता है, जिससे उनके पूर्व आचरण पर निर्भर अन्य लोगों के प्रति पूर्वाग्रह उत्पन्न होता है।
- इस सिद्धांत पर आधारित है कि पक्षकार एक ही दस्तावेज़ का अनुमोदन और खंडन नहीं कर सकते।
आवश्यक तत्त्व:
- एक पक्षकार द्वारा विद्यमान तथ्य का प्रतिनिधित्व।
- ऐसे प्रतिनिधित्व पर अन्य पक्षकार द्वारा विश्वास करना।
- विश्वास करने से होने वाली हानि।
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 क्या है?
बारे में:
- धारा 9 न्यायालयों को माध्यस्थम् कार्यवाही से पहले, उसके दौरान या उसके पश्चात् अंतरिम संरक्षण प्रदान करने का अधिकार देती है।
- कोई भी पक्षकार संरक्षकों की नियुक्ति, माल का संरक्षण/अभिरक्षा, विवादित राशि की सुरक्षा, संपत्ति का निरोध/निरीक्षण और अंतरिम व्यादेश सहित अनुतोष की मांग कर सकता है।
प्रमुख सीमाएँ:
- एक बार माध्यस्थम् अधिकरण का गठन हो जाने पर, न्यायालय धारा 9 के आवेदनों पर तब तक विचार नहीं कर सकते जब तक कि धारा 17 के अधीन अधिकरण के उपचार अप्रभावी न हों।
- यदि माध्यस्थम् शुरू होने से पहले अंतरिम उपचार प्रदान किये जाते हैं, तो कार्यवाही 90 दिनों के भीतर शुरू होनी चाहिये।
उद्देश्य:
- सुरक्षात्मक उपायों के माध्यम से प्रभावी माध्यस्थम् प्रक्रिया और अंतिम पंचाटों का प्रवर्तन सुनिश्चित करना।