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आपराधिक कानून
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12
«12-Aug-2025
X बनाम बिहार राज्य एवं अन्य "विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को जमानत देना एक नियम है और इससे इंकार करना एक अपवाद है तथा इसे केवल तीन विशिष्ट आधारों पर ही अस्वीकार किया जा सकता है, जैसा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12(1) के उपबंध में उपबंधित किया गया है।" न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार |
स्रोत: पटना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार की पीठ ने एक्स बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में एक किशोर अपीलकर्त्ता की अपील को स्वीकार कर लिया तथा बाल न्यायालय के उस आदेश को अपास्त कर दिया जिसमें जमानत देने से इंकार कर दिया गया था।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) की धारा 12 सभी किशोरों के लिये जमानत का नियम बनाती है, चाहे कथित अपराध की प्रकृति कुछ भी हो।
एक्स. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
घटना का विवरण:
- 4 सितंबर, 2023 को शाम 7:00 बजे, एक 17 वर्षीय लड़के ने कथित तौर पर एक 3 वर्षीय लड़की को उसके घर से बहला-फुसलाकर अपने घर ले गया और उसके साथ लैंगिक उत्पीड़न किया।
- बच्ची रोते हुए घर लौटी और उसने दावा किया कि अपीलकर्त्ता ने उसके कपड़े उतार दिये थे, उसके कपड़े खून से सने हुए थे और उसके पास चिप्स थे।
- तीन दिन बाद 7 सितंबर, 2023 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 342, 363, 366 (क), 376 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 6 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई।
विधिक कार्यवाही:
- किशोर न्याय बोर्ड ने अभियुक्त को किशोर (अपराध के समय 17 वर्ष और 17 दिन का) घोषित किया।
- प्रारंभिक मूल्यांकन के बाद उसे मानसिक रूप से सक्षम पाते हुए, मामला किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 18 (3) के अधीन वयस्क के रूप में विचारण के लिये बाल न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
- बाल न्यायालय ने 16 अप्रैल, 2024 को जमानत अर्जी खारिज कर दी।
- अपीलकर्त्ता लगभग एक वर्ष और दस महीने तक पर्यवेक्षण गृह में निरोध में रहा।
साक्ष्य विश्लेषण:
- चिकित्सकीय परीक्षण: पीड़िता की योनिच्छद (हाइमन) बरकरार पाई गई, तथा उसमें कोई शुक्राणु नहीं पाया गया, जो अभियोजन पक्ष के अभिकथनों का खण्डन करता है।
- सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट: अपीलकर्त्ता को शिक्षित परिवार का आज्ञाकारी छात्र, धार्मिक, बुरी आदतों से रहित, अच्छे सामुदायिक संबंध वाला बताया गया।
- पृष्ठभूमि संदर्भ: रिपोर्ट में भूमि विवाद और पूर्व दुश्मनी के कारण मिथ्या आरोप लगाने का सुझाव दिया गया; पीड़िता के पिता ने अपीलकर्त्ता के भाई से 1 लाख रुपए उधार लिये थे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- किशोर ज़मानत अधिकारों पर: न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार ने यह स्पष्ट किया कि “अधिनियम की धारा 12, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में निहित जमानत संबंधी प्रावधानों पर प्रधानता रखती है” तथा “अधिनियम, 2015 की धारा 12 में जमानत प्रदान करने के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई वर्गीकरण नहीं किया गया है।” न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी किशोरों को, बिना किसी विभेद के, जमानत प्राप्त करने का अधिकार है, यहाँ तक कि 16 वर्ष से अधिक आयु के वे किशोर भी, जिन पर जघन्य अपराध का आरोप है।
- सुधारवादी दर्शन पर: न्यायाधीश ने दृढ़ शब्दों में कहा कि “किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अंतर्गत, विधि के साथ संघर्षरत बालक को वयस्क अपराधी के रूप में व्यवहार किये जाने की अपेक्षा नहीं की जाती” तथा न्यायालयों को “मूलतः भिन्न दृष्टिकोण” अपनाना चाहिये, जो सुधार एवं पुनर्वास पर केंद्रित हो। उन्होंने चेतावनी दी कि “यदि ऐसे बालकों के साथ दण्डात्मक दृष्टिकोण से व्यवहार किया गया, तो समाज का पतन हो जाएगा।”
- बाल न्यायालय की त्रुटि पर: न्यायमूर्ति कुमार ने पाया कि बाल न्यायालय ने "सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट का गहन अध्ययन नहीं किया" और साक्ष्यों के विपरीत निष्कर्ष दिये। उन्होंने कहा: "इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि रिहाई के बाद अपीलकर्त्ता अपराधियों की संगति में जा सकता है। केवल अनुमान एवं कल्पना… पर्याप्त नहीं होंगे।"
- मामले के गुण-दोष और साक्ष्य पर: न्यायालय ने अभियोजन के मामले में अनेक कमज़ोरियों का संज्ञान लिया, जिनमें प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में विलंब, चिकित्सीय साक्ष्य का समर्थन न होना, तथा बाल साक्षी की विश्वसनीयता पर प्रश्न सम्मिलित हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि “बाल साक्षी को सिखाने-पढ़ाने की संभावना एक गंभीर अवरोध हो सकती है।”
- अंतिम आदेश: न्यायमूर्ति कुमार ने अपील को स्वीकार करते हुए 10,000 रुपए की जमानत पर रिहाई का निदेश दिया, साथ ही शिक्षा जारी रखने और किसी आपराधिक संगठन से न जुड़ने की शर्त भी रखी। उन्होंने पाया कि लंबे समय तक निरोध में रखना पुनर्वास के लिये प्रतिकूल था।
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12 क्या है?
बारे में:
- धारा 12 विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों को जमानत के अनिवार्य उपबंध से संबंधित है, जो एक मौलिक अधिकार स्थापित करता है जो सामान्य आपराधिक विधि के प्रावधानों पर अधिभावी होता है और यह सुनिश्चित करता है कि बालकों को वयस्क कारागारों या पुलिस लॉक-अप में निरुद्ध में नहीं रखा जाए।
प्रमुख प्रावधान:
उपधारा (1) - अनिवार्य जमानत सिद्धांत:
- कोई भी किशोर, जिस पर किसी भी प्रकार का अपराध (जमानतीय या अजमानतीय) आरोपित हो, यदि गिरफ़्तार, निरुद्ध अथवा किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो, तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा।
- यह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 या किसी अन्य विधि के प्रावधानों पर प्रधानता रखता है।
- जमानत प्रतिभू के साथ या उसके बिना दी जा सकती है, या किशोर को परिवीक्षा अधिकारी की देखरेख में या उपयुक्त संस्था/व्यक्ति की देखरेख में रखा जा सकता है।
- तीन सीमित अपवाद जहाँ जमानत अस्वीकार की जा सकती है:
- यदि रिहाई से यह संभावना हो कि किशोर अपराधियों के संपर्क में आ जाएगा।
- यदि रिहाई से किशोर नैतिक, शारीरिक अथवा मानसिक खतरे में पड़ जाएगा।
- यदि रिहाई से न्याय के उद्देश्यों की विफलता होगी।
उपधारा (2) - पुलिस थाना स्तरीय सुरक्षा:
- यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी किशोर को जमानत पर रिहा नहीं करता है, तो किशोर को केवल पर्यवेक्षण गृह (जेल नहीं) में रखा जाना चाहिये।
- यह एक अस्थायी व्यवस्था है जब तक कि किशोर को बोर्ड के समक्ष नहीं लाया जा सकता।
उपधारा (3) - बोर्ड स्तरीय सुरक्षा उपाय:
- यदि बोर्ड जमानत नहीं देता है तो किशोर को कारागार नहीं भेजा जा सकता।
- बोर्ड को किशोर को पर्यवेक्षण गृह या सुरक्षित स्थान पर भेजना चाहिये।
- जांच लंबित रहने के दौरान आदेश में निर्दिष्ट अवधि।
मौलिक सिद्धांत: किशोरों के लिये जमानत नियम है, कठोर शर्तों और बाल-अनुकूल सुरक्षा उपायों के साथ निरुद्धि अपवाद है।