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सिविल कानून

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई

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 13-Aug-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

भारत के उच्चतम न्यायालय ने आवारा कुत्तों के बढ़ते आक्रमण, विशेषकर बच्चों पर होने वाले हमलों, के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है। 11 अगस्त, 2025 को दिये गए एक ऐतिहासिक निर्णय में न्यायालय ने दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों की प्राधिकृत संस्थाओं को कठोर निदेश जारी करते हुए यह आदेश दिया कि सभी आवासीय क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को तत्काल प्रभाव से उठाने की कार्यवाही प्रारंभ की जाए। यह निर्णय देश में आवारा कुत्तों की विशाल आबादी के प्रबंधन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है, जो कुत्तों के काटने और रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते मामलों से जुड़ी हुई है। 

उच्चतम न्यायालय ने स्वतः संज्ञान क्यों लिया? 

  • उच्चतम न्यायालय ने स्वतः संज्ञान (suo motu) इस कारण लिया क्योंकि उसे समाचार माध्यमों से बच्चों पर आवारा कुत्तों के हमलों की चिंताजनक रिपोर्टें संज्ञान में आईं।  
  • न्यायमूर्ति आर. महादेवन के साथ पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने कुत्तों के काटने से रेबीज के शिकार हो रहे शिशुओं और छोटे बच्चों की सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की। 
  • न्यायालय विशेष रूप से बढ़ते आंकड़ों से चिंतित था: 2024 में भारत में कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज किये गए, जबकि 2023 में यह संख्या 30.5 लाख थी। अधिक चिंताजनक बात यह है कि 2024 में रेबीज से 54 लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या भारत में रेबीज के सभी मामलों और मृत्यु का 30-60% है। 

वर्तमान नीतियों के बारे में न्यायालय ने क्या टिप्पणी की? 

  • न्यायमूर्ति पारदीवाला ने मौजूदा पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control (ABC)) नियमों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें "बेतुका और अनुचित" बताया। मौजूदा नीति के अनुसार, नसबंदी और टीकाकरण के बाद, आवारा कुत्तों को उसी स्थान में वापस छोड़ दिया जाना चाहिये जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था।  
  • न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणी की, "यदि आप किसी आवारा कुत्ते को एक स्थान से उठाते हैं, उसकी नसबंदी करते हैं और उसे उसी स्थान पर छोड़ देते हैं, तो यह यह नितांत अव्यावहारिक है। वह आवारा कुत्ता उस स्थान में वापस क्यों लौटे और किस उद्देश्य से?"  
  • न्यायालय ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि चाहे नसबंदी हो या नहीं, समाज को आवारा कुत्तों से पूरी तरह मुक्त होना चाहिये, तथा कहा कि "आपको शहर के किसी भी स्थान या बाहरी स्थान में एक भी आवारा कुत्ता घूमता हुआ नहीं मिलना चाहिये।" 

न्यायालय के विशिष्ट निदेश क्या हैं? 

अधिकारियों द्वारा कुत्तों के लिये आश्रय-गृह (Dog Shelters) की स्थापना  

  • न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य, दिल्ली नगर निगम (MCD) और नई दिल्ली नगर निगम (NDMC) को कुत्तों के लिये आश्रय स्थल तुरंत स्थापित करने और 8 सप्ताह के भीतर बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर रिपोर्ट देने का निदेश दिया। इन आश्रय स्थलों को: 
    • पर्याप्त कर्मचारी की नियुक्ति, जिससे नसबंदी किये गए और गैर-नसबंदी किये गए दोनों प्रकार के आवारा कुत्तों को रखा जा सके।  
    • सुनिश्चित करें कि निरोध में लिये गए कुत्तों को कभी भी सड़कों, कॉलोनियों या लोक स्थानों पर वापस न छोड़ा जाए।  
    • कुत्तों की अनाधिकृत रिहाई को रोकने के लिये CCTV कैमरों से निगरानी की जाए।  
    • अगले 6-8 सप्ताह में प्रारंभ में 5,000 कुत्तों को रखने की व्यवस्था की जाएगी, तथा क्षमता को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा। 

कुत्तों को हटाने के लिये तत्काल कार्य योजना क्या है? 

अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे सभी स्थानों से आवारा कुत्तों को तुरंत उठाना शुरू करें, विशेष रूप से निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करते हुए: 

  • शहर के भीतर संवेदनशील स्थान 
  • दिल्ली के बाहरी स्थान  
  • नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद तक परिचालन का विस्तार 

न्यायालय ने इस उद्देश्य के लिये समर्पित बल बनाने में प्राधिकारियों को पूर्ण विवेकाधिकार प्रदान किया, तथा इस बात पर बल दिया कि "इस कार्य को करने में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिये।" 

हस्तक्षेप से कैसे निपटा जाएगा? 

  • न्यायालय ने किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न करने के विरुद्ध कड़ी चेतावनी जारी की: "यदि कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों को उठाने या उन्हें इकट्ठा करने में बाधा डालता है, तो हम कार्रवाई करेंगे।" इस प्रकार के हस्तक्षेप को न्यायालय की अवमानना माना जाएगा, जिसके विधिक परिणाम होंगे। 
  • जब वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने पीपुल फॉर एनिमल्स की ओर से बोलने का प्रयत्न किया, तो न्यायमूर्ति पारदीवाला ने दृढ़तापूर्वक उनके हस्तक्षेप को अस्वीकार कर दिया, तथा कहा कि व्यापक जनहित को देखते हुए इस मुकदमे में किसी भी प्रकार की भावना को सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिये 

आपातकालीन प्रतिक्रिया और चिकित्सकीय देखभाल के के संबंध में न्यायालय के क्या निदेश है 

  • न्यायालय ने निम्नलिखित अनिवार्य आदेश पारित किये: 
    • एक सप्ताह के भीतर कुत्ते के काटने के मामलों की सूचना हेतु हेल्पलाइन की स्थापना।  
    • परिवाद प्राप्त होने के 4 घंटे के भीतर संबंधित आवारा कुत्ते को पकड़ने की कार्यवाही। 
    • पीड़ित को त्वरित उपचार उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सीय संस्थानों के साथ समन्वय।  
    • टीके (वैक्‍सीन) की उपलब्धता एवं स्टॉक स्तर पर विस्तृत रिपोर्टिंग प्रस्तुत करना।   
  • सभी पकड़े गए कुत्तों को नियमों के अनुसार नसबंदी और टीकाकरण किया जाना चाहिये, किंतु किसी भी परिस्थिति में उन्हें नहीं छोड़ा जाएगा। 
  • प्राधिकारियों को निम्नलिखित कार्य करने होंगे: 
    • प्रतिदिन पकड़े गए एवं आश्रय-गृहों में रखे गए आवारा कुत्तों का अभिलेख संधारित करना।  
    • अगली सुनवाई पर उक्त अभिलेख न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना।  
    • टीके की उपलब्धता एवं वितरण व्यवस्था के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करना।  
    • प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन की रिपोर्ट करना।  

वर्तमान विधिक परिप्रेक्ष्य क्या है 

विद्यमान विधियों के विपरीत निदेश 

  • भारत में आवारा कुत्तों का प्रबंधन ऐतिहासिक रूप से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और उसके बाद लागू पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control (ABC)) नियमों द्वारा नियंत्रित होता रहा है। 2023 के पशु जन्म नियंत्रण नियमों ने आवारा कुत्तों को "सामुदायिक पशु" के रूप में पुनर्वर्गीकृत भी किया और उनके लिये सामुदायिक भोजन के प्रावधान भी सम्मिलित किये 
  • यद्यपि, विभिन्न उच्च न्यायालयों ने परस्पर विरोधी निर्णय दिये हैं। जहाँ केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अधिकारी "आवारा कुत्तों को नहीं मार सकते", वहीं बॉम्बे, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक उच्च न्यायालयों ने निर्णय दिया है कि स्थानीय अधिकारियों के पास नगरपालिका नियमों के अधीन आवारा कुत्तों की समस्याओं से निपटने के लिये विवेकाधीन शक्तियां हैं। 
  • उच्चतम न्यायालय के वर्तमान निदेश, दशकों से चली आ रही पकड़ो-नपुंसक बनाओ-छोड़ो नीति से एक निर्णायक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

निष्कर्ष 

उच्च्ग्तम न्यायालय का हस्तक्षेप आवारा कुत्तों के प्रबंधन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें पारंपरिक पशु कल्याण के बजाय मानव सुरक्षा, विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि "शिशुओं और छोटे बच्चों को किसी भी कीमत पर रेबीज का शिकार नहीं होना चाहिये" और नागरिकों को कुत्तों के काटने के डर के बिना स्वतंत्र रूप से घूमने-फिरने की अनुमति होनी चाहिये। दुनिया भर में रेबीज से होने वाली मृत्यु में से 36% भारत में होती हैं और अनुमानित 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते यहाँ हैं, ऐसे में यह न्यायिक हस्तक्षेप देश की सबसे निरंतर लोक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक के समाधान में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इस पहल की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और भारतीय समाज में पशु कल्याण से जुड़ी जटिल भावनाओं को संभालते हुए पर्याप्त बुनियादी ढाँचा तैयार करने की अधिकारियों की क्षमता पर निर्भर करेगी।