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वाणिज्यिक विधि

आयकर अधिनियम की धारा 144ग

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 12-Aug-2025

सहायक आयकर आयुक्त एवं अन्य बनाम शेल्फ ड्रिलिंग रॉन टैपमेयर लिमिटेड 

"उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर भिन्न-भिन्न राय दी कि क्या धारा 153(3) की बारह मास की परिसीमा, पात्र करदाताओं से संबंधित धारा 144ग की कार्यवाही पर लागू होती है।" 

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एससी शर्मा 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

सहायक आयकर आयुक्त एवं अन्य बनाम शेल्फ ड्रिलिंग रॉन टैपमेयर लिमिटेड (2025)के मामले मेंन्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और एस.सी. शर्माकी पीठ नेइस बात पर विभाजित निर्णय दिया कि क्या आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) की धारा 153 के अधीन बारह मास की बाहरी समय सीमा पात्र करदाताओं से संबंधित धारा 144ग के अधीन कार्यवाही पर लागू होती है। 

सहायक आयकर आयुक्त एवं अन्य बनाम शेल्फ ड्रिलिंग रॉन टैपमेयर लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला आयकर विभाग द्वारा दायर अपीलों से उत्पन्न हुआ, जिसमेंबॉम्बे उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि धारा 153(3) का परिसीमा काल के पश्चात् पारित अंतिम मूल्यांकन आदेश परिसीमा द्वारा कालवर्जित हो चुके हैं। 
  • प्रत्यर्थी-शेल्फ ड्रिलिंग रॉन टैपमेयर लिमिटेड एकविदेशी संस्थाथी जो निर्धारण वर्ष 2014-15 के लिये भारत में अपतटीय ड्रिलिंग सेवाएँ प्रदान कर रही थी। 
  • कंपनी नेहानि की घोषणा करते हुए रिटर्न दाखिल कियातथा धारा 44खख के अंतर्गत अनुमानित कराधान व्यवस्था से बाहर निकलने का विकल्प चुना। 
  • कर निर्धारण अधिकारी नेपुस्तकों कोअस्वीकार कर दिया और धारा 44खख (1) के अधीन सकल प्राप्तियों के 10% पर आय की संगणना की।  
  • विवाद समाधान पैनल ने इस निर्णय को बरकरार रखा, किंतु आयकर अधिनियम ने 4 अक्टूबर 2019 को आदेश कोअपास्त कर दियाऔर मामले को नए सिरे से निर्णय के लिये कर निर्धारण अधिकारी (AO) को वापस भेज दिया।    
  • धारा 153(3) के अधीन, कर निर्धारण अधिकारी (AO) के पास वित्तीय वर्ष के अंत से 12 मास का समय था, अर्थात् 31 मार्च 2021 तक नया मूल्यांकन आदेश पारित करना था।  
  • कोविड-19 के कारण, कराधान और अन्य विधि (कुछ प्रावधानों में छूट और संशोधन) अधिनियम, 2020 के अधीन समय सीमा 30 सितंबर 2021 तक बढ़ा दी गई थी।  
  • प्रतिपेषण पर, कर निर्धारण अधिकारी (AO) ने विस्तारित समय सीमा से ठीक पहले 28 सितंबर 2021 को एक मसौदा मूल्यांकन आदेश जारी किया, किंतु 30 सितंबर 2021 से पहले कोई अंतिम मूल्यांकन आदेश पारित नहीं किया गया। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा का निर्णय (आयकर विभाग की अपील को स्वीकार करते हुए): 

  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि धारा 144ग के अधीन विशिष्ट समय-सीमाएँधारा 153(3) से स्वतंत्र रूप से संचालित होती हैं, और उच्च न्यायालय ने परिसीमा के आधार पर मूल्यांकन को रद्द करने में गलती की। 
  • न्यायमूर्ति शर्मा ने तर्क दिया कि संसद, धारा 144ग की उपधारा (4) और (13) में गैर-बाधक खण्डों के माध्यम से, विवाद समाधान पैनल (DRP) मामलों के लिये धारा 153 में विनिर्दिष्ट बाह्य समय-सीमा को अपवर्जित करने का अभिप्राय रखा था। 
  • "यदि मैं यह मत ग्रहण करूँ कि आयकर अधिनियम की धारा 144 के अंतर्गत विनिर्दिष्ट एवं अभिप्रेत संपूर्ण प्रक्रिया को धारा 153 में निर्दिष्ट समग्र समय-सीमा के भीतर समाहित किया जाना चाहिये, तो मेरे विचार में इसका परिणाम राजस्व की हानि की वसूली हेतु पूर्णतः विनाशकारी होगा।" 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि धारा 144ग के अधीन समय-सीमाएँ स्वतंत्र हैं और धारा 153 की समय-सीमाओं के अतिरिक्त कार्य करती हैं, जिसमें अंतिम मूल्यांकन आदेश मसौदा आदेशों के एक महीने के भीतर या विवाद समाधान पैनल (DRP) के समक्ष आपत्तियाँ दर्ज होने पर 11 महीने के भीतर जारी करना आवश्यक है। 

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना का निर्णय (न्यायमूर्ति शर्मा से असहमत): 

  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि धारा 144पात्र करदाताओं के लिये स्व-निहित प्रक्रियाएँ निर्धारित करती है, किंतुधारा 153(3) के अधीन समग्र सीमा अवधि लागू रहती है, जिसमें प्रतिप्रेषण (remand) स्थितियाँ भी सम्मिलित हैं। 
  • उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मूल्यांकन कालवर्जित हो चुका था और उन्होंने राजस्व विभाग के अन्य अनुमेय विधिक कदम उठाने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, मूल रूप से दाखिल रिटर्न को स्वीकार करने का निदेश दिया। 
  • "मेरे विचार में, ऐसे मामले में भी, अधिनियम की धारा 153(3) के अनुसार, जहाँ अधिकरण द्वारा अधिनियम की धारा 254 के अंतर्गत कर निर्धारण अधिकारी को प्रतिपेषण किया गया है, कर निर्धारण बारह मास के भीतर पूरा किया जाना चाहिये।" 
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 144ग की उपधारा (4) और (13) में सीमित परिसीमा काल धारा 153(3) की समग्र बारह महीने की परिसीमा का अनुपालन सुनिश्चित करती है। 

भिन्न-भिन्न राय के कारण न्यायालय ने रजिस्ट्री को निदेश दिया किवह इन विवाद्यकों पर पुनर्विचार करने के लिये उचित पीठ गठित करने हेतुमामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे। 

आयकर अधिनियम, 1961 

  • आयकर अधिनियम, 1961 भारत में एक व्यापक विधि है जो व्यक्तियों और कारबारों के लिये आय के कराधान को नियंत्रित करता है। 
  • यह 1 अप्रैल, 1962 को लागू हुआ और देश में आयकर और सुपर-टैक्स की संगणना, अधिरोपण और संग्रहण के लिये रूपरेखा प्रदान करता है। 
  • यह अधिनियम पिछले वर्ष (जब आय अर्जित की जाती है) और कर निर्धारण वर्ष (जब आय पर कर लगाया जाता है) जैसी महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं को परिभाषित करता है तथा कर प्राधिकारियों, कर निर्धारणों और उच्च न्यायालयों में अपील के लिये संरचना स्थापित करता है। 

आयकर अधिनियम की धारा 144ग क्या है? 

उद्देश्य का दायरा: 

  • पात्र करदाताओं (विदेशी कंपनियों और अंतरण मूल्य निर्धारण मामलों) के लिये विवाद समाधान तंत्र स्थापित करता है। 
  • करदाता के हित के प्रतिकूल परिवर्तनों के लिये अंतिम आदेश से पहले मसौदा मूल्यांकन आदेश की आवश्यकता होती है। 

मसौदा आदेश प्रक्रिया: 

  • कर निर्धारण अधिकारी (AO) को प्रस्तावित परिवर्तनों के लिये पात्र करदाता को मसौदा आदेश अग्रेषित करना होगा (1 अक्टूबर, 2009 से प्रभावी)। 
  • करदाता के पास परिवर्तनों को स्वीकार करने या विवाद समाधान पैनल (DRP) तथा कर निर्धारण अधिकारी दोनों के समक्ष आपत्तियाँ दर्ज कराने के लिये 30 दिन का समय होता है।  

मूल्यांकन समापन: 

  • यदि करदाता इसे स्वीकार कर लेता है या कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराता है, तो कर निर्धारण अधिकारी मसौदा आदेश के आधार पर कर निर्धारण पूरा कर लेता है। 
  • अंतिम मूल्यांकन आदेश स्वीकृति/आपत्ति अवधि की समाप्ति के एक मास के भीतर पारित किया जाना चाहिये (जो कि धारा 153 के प्रावधानों पर अधिमान्य है)। 

विवाद समाधान पैनल (DRP) प्रक्रिया: 

  • विवाद समाधान पैनल (DRP) में बोर्ड द्वारा गठित तीन आयकर आयुक्त सम्मिलित हैं। 
  • विवाद समाधान पैनल (DRP) मसौदा आदेश, आपत्तियों, साक्ष्यों और रिपोर्टों पर विचार करने के पश्चात् कर निर्धारण अधिकारी को निदेश जारी करता है।  
  • विवाद समाधान पैनल (DRP) प्रस्तावित परिवर्तनों की पुष्टि कर सकता है, उन्हें कम कर सकता है या बढ़ा सकता है, किंतु परिवर्तनों को अपास्त नहीं कर सकता है या आगे की जांच का आदेश नहीं दे सकता है।  
  • यदि विवाद समाधान पैनल (DRP) सदस्यों की राय अलग हो तो बहुमत की राय मान्य होती है।  

समय-सीमा आवश्यकताएँ: 

  • विवाद समाधान पैनल (DRP) को मसौदा आदेश भेजे जाने के महीने के अंत से 9 महीने के भीतर निदेश जारी करना होगा।  
  • कर निर्धारण अधिकारी को विवाद समाधान पैनल (DRP) निदेश प्राप्त होने के एक मास के भीतर मूल्यांकन पूरा करना होगा (जो कि धारा 153 के प्रावधानों पर अधिमान्य है)। 
  • विवाद समाधान पैनल (DRP) निदेशों के बाद करदाता को आगे कोई सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। 

प्रमुख विशेषताएँ: 

  • विवाद समाधान पैनल (DRP) के निदेश कर निर्धारण अधिकारी के लिये बाध्यकारी हैं। 
  • करदाता और कर निर्धारण अधिकारी दोनों को पूर्वाग्रहपूर्ण निदेशों पर सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये 
  • विवाद समाधान पैनल (DRP) आगे की पूछताछ कर सकता है या आयकर अधिकारियों से पूछताछ करवा सकता है।  
  • बोर्ड को विवाद समाधान पैनल (DRP) के कुशल संचालन और शीघ्र निपटान के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया गया।