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सांविधानिक विधि

हाथ-रिक्शा खींचने की प्रथा का का उन्मूलन

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 07-Aug-2025

In Re: टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य 

"हाथ से खींची जाने वाली गाड़ियों/रिक्शाओं की प्रथा को अनुमति देना, भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ मानव गरिमा की मूल अवधारणा सर्वोपरि है, संविधान द्वारा प्रदत्त सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के सांविधानिक वचनों को तुच्छ ठहराता है।" 

मुख्य न्यायाधीश बी.आर .गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवईऔरन्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारियाकी पीठ नेटी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपद बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025)मामले मेंस्वतंत्रता के 78 वर्षों के पश्चात् भी हाथ-रिक्शा खींचने की प्रथा जारी रहने की कड़ी निंदा की, इसे अमानवीय घोषित किया और महाराष्ट्र के माथेरान में एक पायलट ई-रिक्शा परियोजना के बारे में विवाद्यकों की सुनवाई करते हुए इसे तत्काल समाप्त करने का आदेश दिया । 

टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामलाटी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपद मामले में एकअंतर्वर्ती आवेदन के रूप में सामने आया, जो एक बहुप्रचलित वन संरक्षण मामला है, जो पर्यावरण मुकदमेबाजी में सबसे लंबे समय से जारी परमादेश का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • मई 2022 में, न्यायालय ने महाराष्ट्र को माथेरानपारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के स्थान पर प्रायोगिक आधार परपर्यावरण-अनुकूल ई-रिक्शा लागू करने की अनुमति दी। 
  • इसके पश्चात् घुड़सवार संघों (घोड़ावाला संगठनों) द्वारा ई-रिक्शा की अनुमति में संशोधन की मांग करते हुए आवेदन दायर किये गए, जिनमें दो मुख्य मुद्दे उठाए गए: माथेरान में ई-रिक्शा की अनुमति देना और सड़कों पर पेवर ब्लॉक बिछाना। 
  • फरवरी 2023 में, न्यायालय ने निरीक्षण समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने तक कंक्रीट पेवर ब्लॉक बिछाने पर रोक लगा दी, साथ हीई-रिक्शा पायलट परियोजना को जारी रखनेकी अनुमति दे दी । 
  • जनवरी 2024 तक, न्यायालय ने स्पष्ट किया किई-रिक्शा केवल वर्तमान हाथ ठेला चालकों के लिये होंगेजिससे रोजगार के नुकसान की भरपाई की जा सके, बाद में अप्रैल में इसकी संख्या 20 तक सीमित कर दी गई। 
  • पारिस्थितिकीय चिंताओं के कारण माथेरान में ऑटोमोबाइल पर प्रतिबंध है, तथा आपात स्थिति में केवल अग्निशमन ट्रकों और एम्बुलेंस को ही अनुमति दी जाती है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • पीठ ने स्वतंत्रता के 78 वर्षों के पश्चात् भी हाथ से रिक्शा चलाने के चलन को गंभीरता से लिया और कहा कि यहव्यक्ति की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है औरआजीविका की मजबूरियों के कारण लोगों को अमानवीय तरीके अपनाने के लिये मजबूर करता है। 
  • न्यायालय नेआजाद रिक्शा चालक संघ मामले (1980)का हवाला देते हुए इस बात पर निराशा व्यक्त की कि उस निर्णय के 45 वर्ष पश्चात् भी माथेरान में इंसानों द्वारा दूसरे इंसानों को खींचने की प्रथा जारी है। 
  • पीठ ने प्रश्न उठाया कि क्या यह प्रथा सामाजिक और आर्थिक समता और न्याय के सांविधानिक वचनों के अनुरूप है, दुर्भाग्यवश इसका निष्कर्ष नकारात्मक रहा। 
  • न्यायालय नेपीपुल्स ऑफ इंडिया फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1982) मामले पर विश्वास किया, जहाँ न्यूनतम मजदूरी का संदाय न करनाभारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 23 केअधीन बलात् श्रम माना गया था । 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि संविधान के 75 वर्ष बाद भी ऐसी प्रथाओं को जारी रखना भारतीयों द्वारा स्वयं से किये गए सामाजिक और आर्थिक न्याय के वचन के साथ विश्वासघात होगा। 
  • पीठ ने महाराष्ट्र कोहाथ रिक्शा चालकों का पुनर्वास करने तथागुजरात के केवडिया की ई-रिक्शा नीति को अपनाने का निदेश दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि धन की अनुपलब्धता को कार्यान्वयन न करने का बहाना नहीं बनाया जा सकता। 
  • न्यायालय ने व्यापक निदेश जारी किये, जिनमें 6 महीने के भीतर चरणबद्ध तरीके से ई-रिक्शा को समाप्त करना, किराये पर आधारित ई-रिक्शा योजना की स्थापना, निरीक्षण समिति के माध्यम से वास्तविक चालकों की पहचान, तथा आजीविका सहायता के लिये आदिवासी महिलाओं और अन्य लोगों को शेष ई-रिक्शा आवंटित करना सम्मिलित है। 

हस्तचालित रिक्शा खींचना क्या है? 

बारे में:  

  • हस्तचालित रिक्शा खींचना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति स्वयं शारीरिक रूप से रिक्शा या गाड़ी को खींचते हैं, जिसमें यात्रियों या माल का परिवहन किया जाता है। यह कार्य अत्यंत शारीरिक परिश्रम की मांग करता है और अत्यंत श्रमसाध्य श्रम के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • इस प्रथा की ऐतिहासिक जड़ें औपनिवेशिक भारत में हैं और तकनीकी विकल्प उपलब्ध होते हुए भी यह स्वतंत्रता के पश्चात् भी जारी रही। 
  • इस कार्य में काफी शारीरिक तनाव शामिल होता है, जिसे अक्सर आर्थिक रूप से वंचित व्यक्ति करते हैं जिनके पास आजीविका के सीमित विकल्प होते हैं 
  • हस्तचालित रिक्शा चलाना विशेष रूप से पहाड़ी स्टेशनों और उन क्षेत्रों में प्रचलित है जहाँ पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण मोटर चालित वाहनों पर प्रतिबंध है।  

सांविधानिक ढाँचा: 

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23मानव दुर्व्यापार, बलात् श्रम और शोषण के अन्य समान रूपों पर प्रतिबंध लगाता है, तथा ऐसी प्रथाओं को विधि द्वारा दण्डनीय बनाता है। 
  • गरिमा का अधिकार अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) का भाग है, जिसमें अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार से सुरक्षा सम्मिलित है। 
  • प्रस्तावना के अंतर्गत सामाजिक और आर्थिक न्याय के सांविधानिक वचन के लिये शोषणकारी श्रम प्रथाओं का उन्मूलन आवश्यक है। 

ई-रिक्शा में परिवर्तन: 

  • ई-रिक्शा एक पर्यावरण-अनुकूल एवं मानव गरिमा-सम्मत विकल्प प्रस्तुत करते हैं, जो परंपरागत श्रमिकों के रोजगार को बनाए रखते हुए शारीरिक शोषण की प्रथा का समापन करते हैं  
  • प्रौद्योगिकी मानव गरिमा से समझौता किये बिना या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना स्थायी आजीविका विकल्प प्रदान करती है। 
  • कार्यान्वयन के लिये क्रय एवं किराए की योजनाओं के माध्यम से सरकारी सहायता की आवश्यकता है, जिससे पारंपरिक रिक्शा चालकों के लिये किफायती पहुँच सुनिश्चित हो सके। 
  • यह परिवर्तन, पर्वतीय स्थलों जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मानवाधिकार संबंधी चिंताओं और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों को संबोधित करता है। 

भारत के संविधान का अनुच्छेद 23 क्या है? 

यह अनुच्छेद मानव दुर्व्यापार और बलात् श्रम के प्रतिषेधसे संबंधित है।इसमें कहा गया है कि- 

(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा 

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को लोक प्रयोजनों के लिये अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा 

  • यह अधिकार भारत के नागरिकोंके साथ-साथगैर-नागरिकोंको भी उपलब्ध है । 
  • यह राज्य के साथ-साथ निजी नागरिकों केविरुद्ध भी व्यक्तियों की सुरक्षा करता है । 
  • यह अनुच्छेदराज्य परमानव दुर्व्यापार और अन्य प्रकार के बलात् श्रम जैसे अनैतिक शोषण प्रथाओं को समाप्त करने का सकारात्मक दायित्त्व अधिरोपित करता है। 
  • यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप सेनिम्नलिखित प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाता है:  
    • बेगार 
    • मानव दुर्व्यापार 
    • बलात् श्रम