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सिविल कानून

मोटर यान अधिनियम की धारा 166

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 13-Aug-2025

शिवशंकर बनाम संजय एवं अन्य 

" अपीलकर्त्ता अपील ज्ञापन में अपने अनुतोष को एक विशिष्ट दावे की राशि तक सीमित कर सकते हैं, और स्पष्ट सांविधिक प्रावधान के परिप्रेक्ष्य में इसका विपरीत अर्थ ग्रहण किया जाना संभव नहीं है।" 

न्यायमूर्ति शैलेश पी. ब्रह्मे 

स्रोत:बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति शैलेश पी. ब्रह्मे ने  निर्णय दिया कि मोटर यान अधिनियम की धारा 166 के अधीन अपील करने वाला दावेदार प्रारंभिक चरण में न्यायालय फीस के प्रयोजनों के लिये दावे की राशि को प्रतिबंधित कर सकता है और अपील सफल होने पर ही घाटे वाले न्यायालय फीस का संदाय कर सकता है 

  • बॉम्बेउच्च न्यायालय नेशिवशंकर बनाम संजय एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया 

शिवशंकर बनाम संजय एवं अन्य मामले (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • खंडू उदतेवार के 16 वर्षीय अवयस्क पुत्र शिवशंकर की एक मोटर वाहन दुर्घटना हुई, जिसके परिणामस्वरूप उसे चोटें आईं और उसकी आय क्षमता प्रभावित हुई। अपने पिता के माध्यम से, जो उसके अभिभावक हैं, उसने मोटर यान अधिनियम की धारा 166 के अंतर्गत मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में 40,00,000/- रुपए के प्रतिकर का दावा दायर किया। अधिकरण ने उसके दावे को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और ब्याज सहित 5,50,000/- रुपए का प्रतिकर देने का आदेश दिया।  
  • अधिकरण द्वारा दिये गए अपर्याप्त प्रतिकर से व्यथित होकर, दावेदार ने प्रतिकर बढ़ाने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की। यद्यपि, अपील के ज्ञापन में, उसने न्यायालय फीस की गणना के लिये अपने दावे का मूल्यांकन केवल ₹1,00,000/- किया और तदनुसार ₹3,205/- न्यायालय फीस के रूप में अदा किये 
  • रजिस्ट्री ने यह आपत्ति उठाई कि अपीलार्थी को मूलतः दावा की गई राशि ₹40,00,000/- तथा अधिकरण द्वारा प्रदान की गई राशि ₹5,50,000/- के मध्य के अंतर पर न्यायालय फीस अदा करना अनिवार्य है। रजिस्ट्री ने ₹24,410/- अतिरिक्त न्यायालय फीस (घटी हुई न्यायालय फीस) की मांग की तथा ₹1,00,000/- के सीमित मूल्यांकन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। 
  • विलास बयाजी थोर्वे, 69 वर्षीय कृषक, मोटर वाहन दुर्घटना मामलों में सम्मिलित थे, जहाँ उन्होंने वाहन खरीदे थे किंतु सक्षम प्राधिकारी के समक्ष उनका रजिस्ट्रीकरण नहीं कराया था। दावा अधिकरण ने, रजिस्ट्रीकरण न होते हुए भी, उन्हें वाहन के स्वामी के रूप में उत्तरदायी ठहराया तथा उनके विरुद्ध प्रतिकर आदेश पारित किये 
  • अधिकरण के इस निर्णय से, जिसमें उन्हें न तो रजिस्ट्रीकृत स्वामी और न ही बीमाकर्त्ता होने के बावजूद स्वामी के रूप में उत्तरदायी ठहराया गया था, असंतुष्ट होकर उन्होंने अपील दायर की। अपील ज्ञापन में उन्होंने महाराष्ट्र न्यायालय फीस अधिनियम की धारा 7(2)(ii) के अंतर्गत प्रदत्त उस लाभ का दावा किया, जिसके अनुसार वे व्यक्ति, जो न तो बीमाकर्त्ता हैं और न ही स्वामी, केवल आधी फीस अदा करने के पात्र होते हैं। 
  • ट्रिब्यूनल द्वारा उन्हें मालिक मानने के फैसले से व्यथित होकर, जबकि वे न तो पंजीकृत मालिक थे और न ही बीमाकर्ता, उन्होंने अपील दायर की। अपील ज्ञापन में, उन्होंने महाराष्ट्र न्यायालय शुल्क अधिनियम की धारा 7(2)(ii) के तहत निर्धारित मूल्यानुसार शुल्क का केवल आधा भुगतान करने का लाभ मांगा, जो उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो न तो बीमाकर्ता हैं और न ही मालिक। 
  • रजिस्ट्री ने इस दावे पर आपत्ति की और कर अधिकारी ने आपत्ति को बरकरार रखते हुए उसे रियायती आधी फीस के स्थान पर पूरी मूल्यानुसार फीस का संदाय करने का निदेश दिया। 
  • इन सभी मामलों में एक सामान्य विधिक प्रश्न शामिल था: क्या मोटर वाहन दुर्घटना मामलों में अपीलकर्त्ता न्यायालय फीस की गणना के उद्देश्य से अपील ज्ञापन में अपने दावे के मूल्य को सीमित कर सकते हैं, या क्या उन्हें दावा की गई पूरी राशि या मूल दावे और अधिकरण द्वारा दी गई राशि के बीच के अंतर के आधार पर न्यायालय फीस का संदाय करना होगा। 
  • मामला कर अधिकारी के पास भेजा गया, जिन्होंने अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध निर्णय देते हुए रजिस्ट्री की पूरी न्यायालय फीस की मांग को बरकरार रखा। इन आदेशों से व्यथित होकर, अपीलकर्त्ताओं ने उच्च न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 115 के अंतर्गत सिविल पुनरीक्षण आवेदन दायर किये 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र न्यायालय फीस अधिनियम की धारा 7(2) जानबूझकर दो श्रेणियाँ बनाती है - बीमाकर्त्ता/स्वामी पूरी फीस का संदाय करते हैं बनाम दुर्घटना पीड़ित शुरू में आधी फीस का संदाय करते हैं, जो आघात पीड़ितों के प्रति दयालु विधायी आशय को दर्शाता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि वाक्यांश "अनुतोष का मूल्यांकन जिस राशि पर किया जाता है, उस पर देय फीस" स्पष्ट रूप से अपीलकर्त्ताओं को न्यायालय फीस की गणना के लिये अपने दावे के मूल्य को सीमित करने की अनुमति देता है, जबकि प्रावधानों में पूर्ण अंतर राशि पर संदाय की आवश्यकता होती है। 
  • न्यायालय ने कहा कि दुर्घटना पीड़ितों को अथाह शारीरिक, मानसिक और वित्तीय आघात सहना पड़ता है, तथा कमाने वाले सदस्यों की मृत्यु होने पर परिवारों को अतिरिक्त भावनात्मक और सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो रियायती शुल्क संरचना को उचित ठहराता है। 
  • न्यायालय ने यह अभिमत व्यक्त किया कि यह रियायत अस्थायी प्रकृति की है — सफल अपीलार्थियों को प्रावधान तंत्र के माध्यम से अंततः शेष न्यायालय फीस (deficit fees) का संदाय करना अनिवार्य है, जिससे पूर्ण शुल्क दायित्त्व से स्थायी रूप से बचने की कोई संभावना नहीं रहती 
  • न्यायालय ने कहा कि प्रदान किये गए प्रतिकर की वसूली के लिये निष्पादन कार्यवाही की आवश्यकता होती है, तथा दावेदारों को पहले से ही परिणामों की परवाह किये बिना अधिकरण की पूरी लागत वहन करनी पड़ती है, जो प्रारंभिक अनुतोष की आवश्यकता का समर्थन करता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 173(2) ऐसे विवादों को, जिनकी राशि ₹1,00,000/- से कम है, अपील के अधिकार से वंचित कर, तुच्छ एवं निराधार अपीलों को रोकती है, जिससे शुल्क रियायत के दुरुपयोग की आशंका समाप्त हो जाती है। 
  • न्यायालय ने यह भी पाया कि संपूर्ण दावा अस्वीकृति एवं आंशिक दावा अस्वीकृति से उत्पन्न अपीलों के मध्य कोई विधिक भेद नहीं है - दोनों परिस्थितियों में न्यायालय फीस निर्धारण हेतु दावे के मूल्य को सीमित करने की अनुमति है। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि शाब्दिक और उद्देश्यपूर्ण दोनों व्याख्याएं स्पष्ट रूप से दावे पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देती हैं, तथा कोई सांविधिक निषेध नहीं पाया गया तथा कर अधिकारी के विपरीत दृष्टिकोण को विधिक रूप से अस्थिर घोषित किया गया। 

मोटर यान अधिनियम की धारा 166 क्या है? 

  • धारा 166 लोगों को मोटर यान दुर्घटनाओं के लिये प्रतिकर की मांग करते हुए आवेदन दायर करने की अनुमति देती है। 
  • प्रतिकर के लिये कौन आवेदन कर सकता है? 
    • क्षतिग्रस्त व्यक्ति - यदि आप किसी दुर्घटना में घायल हो गए हैं, तो आप स्वयं आवेदन कर सकते हैं 
    • संपत्ति स्वामी - यदि आपकी संपत्ति (जैसे कार, घर, दुकान) क्षतिग्रस्त हो गई है, तो आप आवेदन कर सकते हैं।  
    • परिवार के सदस्य - यदि दुर्घटना में किसी की मृत्यु हो गई है, तो उनके विधिक उत्तराधिकारी (पति/पत्नी, बच्चे, माता-पिता) आवेदन कर सकते हैं 
    • प्राधिकृत अभिकर्त्ता - क्षतिग्रस्त व्यक्ति या परिवार द्वारा नियुक्त कोई व्यक्ति उनकी ओर से आवेदन कर सकता है।  
    • मृत्यु के मामलों के लिये विशेष नियम:यदि परिवार के कई सदस्य हैं, किंतु उनमें से कुछ ही आवेदन करते हैं, तो उन्हें मामले में अन्य सभी परिवार के सदस्यों को प्रत्यर्थी (विरोधी पक्ष) के रूप में सम्मिलित करना होगा। इससे सभी के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है। 
  • आवेदन कहाँ प्रस्तुत किया जा सकता है 
    • आपके पास तीन विकल्प हैं -किसी एक स्थान पर आवेदन किया जा सकता है:  
      • जहाँ दुर्घटना हुई - उस क्षेत्र के मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में। 
      • जहाँ आप निवास करते हैं - आपके निवास क्षेत्र के दावा अधिकरण में। 
      • जहाँ प्रतिवादी निवास करता है - जिस व्यक्ति के विरुद्ध दावा किया जा रहा है, उसके निवास क्षेत्र के दावा अधिकरण में। 
  • किस प्रारूप में आवेदन किया जाए? 
    • आवेदन विहित प्रारूप में होना चाहिये तथा उसमें नियमों के अनुसार सभी आवश्यक विवरण होने चाहिये 
    • यदि आप धारा 140 (बिना किसी त्रुटी के दायित्त्व) के अंतर्गत दावा नहीं कर रहे हैं, तो आपको अपने आवेदन में इसका स्पष्ट उल्लेख करना होगा। 
    • स्वतः प्रारंभ होने वाले मामले:जब पुलिस दुर्घटना की रिपोर्ट दावा अधिकरण को भेजती है, तो ऐसी रिपोर्ट स्वतः ही प्रतिकर आवेदन के रूप में मानी जाती है 
    • मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 वह विधिक उपबंध है, जिसके अंतर्गत दुर्घटना पीड़ित या उनके परिजन, न्यायालय प्रणाली के माध्यम से, धनराशि के प्रतिकर का दावा कर सकते हैं, जिसमें यह सुविधा होती है कि आवेदन कहाँ और किसके द्वारा प्रस्तुत किया जाए, इसका लचीलापन उपलब्ध है।