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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(छ)

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 07-Oct-2025

विनीश्मा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य 

छत्तीसगढ़ में पूर्व अनुभव वाले आपूर्तिकर्त्ताओं तक भागीदारी को सीमित करने वाली निविदा शर्त मनमानी थी और इसने गुटबाजी को बढ़ावा दिया, समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन किया और संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1) (छ) का उल्लंघन किया।” 

न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अराधे 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति संजय कुमारऔरन्यायमूर्ति आलोक अराधे नेछत्तीसगढ़ सरकार की निविदा शर्त कोरद्द कर दिया, जिसमें बोलीदाताओं कोराज्य अभिकरणों के साथ केवल 6 करोड़ रुपए मूल्य की आपूर्ति का पूर्व अनुभव होना आवश्यक था , इसेतर्कहीन, अनुपातहीन और अनुच्छेद 19(1)(छ) का उल्लंघनमाना गया क्योंकि इसनेयोग्य राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं के विरुद्ध एककृत्रिम बाधा उत्पन्न की। 

  • उच्चतम न्यायालय ने विनिष्मा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य (2025)के मामले में यह निर्णय दिया । 

विनिष्मा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • विनिष्मा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, जो कि कंपनी अधिनियम, 2013 के अधीन रजिस्ट्रीकृत मुंबई स्थित कंपनी है, अपीलकर्त्ता है, जिसे बिहार, कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली में विभिन्न राज्य विभागों को खेल किट की आपूर्ति करने का पूर्व अनुभव है। 
  • छत्तीसगढ़ राज्य और राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा छत्तीसगढ़ प्रत्यर्थी हैं। 
  • 21 जुलाई 2025 को, छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों को खेल किट की आपूर्ति के लिये सरकारी ई-मार्केट प्लेस पोर्टल के माध्यम से तीन निविदा सूचनाएँ जारी की गईं। संविदाओं का मूल्य क्रमशः 15.24 करोड़ रुपए, 13.08 करोड़ रुपए और 11.49 करोड़ रुपए था, जो 33 जिलों के 5,540 क्लस्टर संसाधन केंद्रों की बात करते थे। 
  • "पिछले प्रदर्शन प्रतिबंध" शीर्षक वाली शर्त संख्या 4 के अनुसार, बोलीदाताओं को पिछले तीन वित्तीय वर्षों में छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार की अभिकरणों को कम से कम ₹6.00 करोड़ (संचयी) मूल्य के खेल सामान की आपूर्ति करनी होगी। इस शर्त के कारण अपीलकर्त्ता भाग लेने के लिये अयोग्य हो गया। 
  • अपीलकर्त्ता के 29 जुलाई 2025 के अभ्यावेदन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। तत्पश्चात्, निविदा शर्तों को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में तीन रिट याचिकाएँ दायर की गईं। 
  • लंबित रहने के दौरान, 7 अगस्त 2025 को जारी शुद्धिपत्र में शर्त 1, 11 और 13 को हटा दिया गया, किंतु शर्त संख्या 4 को बरकरार रखा गया। 
  • उच्च न्यायालय ने 11 और 12 अगस्त 2025 के आदेशों द्वारा रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, तथा इस शर्त को इस आधार पर बरकरार रखा कि यह सक्षम बोलीदाताओं का चयन सुनिश्चित करती है और अन्य राज्यों में भी प्रचलित है। 
  • अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(छ) का उल्लंघन करती है, राज्य के बाहर के सक्षम आपूर्तिकर्त्ताओं को बाहर करती है, व्यापक भागीदारी को हतोत्साहित करती है, और गुटबाजी (cartelisation) को बढ़ावा देती है। 
  • प्रत्यथियों ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों, विशेषकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को देखते हुए, समय पर वितरण और गुणवत्ता अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये यह शर्त आवश्यक थी। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यद्यपि सरकार के पास निविदा की शर्तें तय करने का विवेकाधिकार है, किंतु यह विवेकाधिकार असीमित नहीं है और इसका मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता। जहाँ निविदा की शर्तें मनमानी, भेदभावपूर्ण या दुर्भावना से प्रेरित हों, वहाँ न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है। 
  • न्यायालय ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(छ) में निहित समान अवसर के सिद्धांत के अनुसार, सभी समान प्रतिस्पर्धियों को व्यापार और वाणिज्य में भाग लेने का समान अवसर दिया जाना चाहिये। यह सिद्धांत राज्य को कृत्रिम अवरोध खड़े करके बाज़ार को कुछ लोगों के पक्ष में मोड़ने से रोकने के लिये बनाया गया है। 
  • न्यायालय ने कहा कि पात्रता मानदंड का उस उद्देश्य से तर्कसंगत संबंध होना चाहिये जिसे प्राप्त किया जाना है - सर्वोत्तम मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाले खेल किटों की आपूर्ति - तथा सरकारी खजाने की सुरक्षा के लिये व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये 
  • न्यायालय ने पाया कि उक्त शर्त ने पात्रता को पूर्व की स्थानीय आपूर्तियों से जोड़कर एक कृत्रिम अवरोध उत्पन्न कर दिया, जिससे उन बोलीदाताओं को बाहर कर दिया गया, जो आर्थिक रूप से सुदृढ़ और तकनीकी रूप से सक्षम होते हुए भी छत्तीसगढ़ सरकार की अभिकरणों के साथ उनका कोई पूर्व लेन-देन नहीं था। 
  • न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक खरीद का उद्देश्य सरकारी खजाने के लाभ के लिये गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं और सेवाओं को सुरक्षित करना है, जिसे बोलीदाताओं से वित्तीय क्षमता, तकनीकी अनुभव और समान प्रकृति के संविदाओं में पूर्व पालन को प्रदर्शित करने की अपेक्षा करके प्राप्त किया जा सकता है, चाहे पालन का स्थान कुछ भी हो। 
  • न्यायालय ने माना कि पात्रता को एक राज्य तक सीमित रखना तर्कहीन है और प्रभावी वितरण सुनिश्चित करने के लक्ष्य के अनुपात में नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 19(6) के अधीन इस तरह के प्रतिबंध को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
  • न्यायालय ने पाया कि यह शर्त बाहरी लोगों के लिये एक बंद द्वार की तरह काम करती है, सक्षम आपूर्तिकर्त्ताओं को अपवर्जित करती है, जिन्होंने अन्य राज्यों में या केंद्र सरकार के लिये बड़ी संविदा निष्पादित की होंगी, प्रतिस्पर्धा को प्रतिबंधित करती है, तथा गुटबाजी को बढ़ावा देती है। 
  • न्यायालय ने राज्य के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिये स्थानीय अनुभव आवश्यक है, तथा कहा कि: 
    (i) निविदा खेल किटों के लिये थी, सुरक्षा-संवेदनशील उपकरणों के लिये नहीं, जिनमें कोई विशेष जोखिम नहीं था; 
    (ii) केवल कुछ जिले ही नक्सल प्रभावित हैं, तथा संपूर्ण राज्य के साथ एक जैसा व्यवहार करना गलत है; तथा 
    (iii) स्थलाकृति से अपरिचित बोलीदाता स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सम्मिलित कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि निविदा की शर्त मनमानी, अनुचित और भेदभावपूर्ण थी, तथा खेल किटों की प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इसमें तर्कसंगत संबंध का अभाव था। 
  • न्यायालय ने माना कि यह शर्त भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1)(छ) का उल्लंघन करती है। 
  • तदनुसार, न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश और निविदा नोटिस को रद्द कर दिया तथा प्रत्यर्थियों को नई निविदाएँ  जारी करने की स्वतंत्रता प्रदान की। 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(छ) क्या है और इसका उल्लंघन क्या है? 

  • अनुच्छेद 19(1)(छ) की प्रकृति और दायरा: 
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(छ) सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, या कोई भी उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। 
    • यह अधिकार व्यापक और सामान्य प्रकृति का है, जो व्यक्तियों को राज्य के मनमाने प्रतिबंधों के बिना स्वतंत्र रूप से अपना कारबार या वृत्ति चुनने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद 19(1)(छ) के अधीन अधिकार पूर्ण नहीं है और यह विधि द्वारा प्रतिषिद्ध अवैध गतिविधियों या वृत्ति तक विस्तारित नहीं है। 
    • अनुच्छेद 19(1)(छ) संविधान के अनुच्छेद 19(6) के अधीन है, जो राज्य को आम जनता के हित में इस अधिकार पर युक्तियुक्त निर्बंधन अधिरोपित करने की अनुमति देता है। 
    • अनुच्छेद 19(6) किसी वृति को अपनाने या कोई उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिये आवश्यक उपजीविका या तकनीकी योग्यताएँ विहित करने वाली विधियों को अधिनियमित करने की भी अनुमति देता है। 
    • समान अवसर का सिद्धांत अनुच्छेद 19(1)(छ) में सन्निहित एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है, जिसके अनुसार सभी समान रूप से स्थित प्रतिस्पर्धियों को व्यापार और वाणिज्य में भाग लेने के लिये समान अवसर दिया जाना चाहिये 
    • समान अवसर का सिद्धांत, राज्य को लोक हित के आधार पर कृत्रिम बाधाएँ खड़ी करके बाजार को कुछ लोगों के पक्ष में मोड़ने से रोकने के लिये बनाया गया है। 
  • अधिकार पर परिसीमाएँ: 
    • अनुच्छेद 19(1)(छ) के अधीन नागरिक अपनी पसंद का कोई विशिष्ट पद या नौकरी रखने का मौलिक अधिकार नहीं मांग सकते। 
    • राज्य या किसी भी सांविधिक निकाय पर किसी कारबार को लाभदायक बनाने या किसी व्यक्ति को ग्राहक या कारबार के अवसर प्रदान करने का कोई दायित्त्व नहीं है। 
    • यदि किसी व्यक्ति का किसी स्थान पर कब्जा विधिविरुद्ध है, तो वे उस स्थान से कारबार करने को उचित ठहराने के लिये अनुच्छेद 19(1)(छ) का सहारा नहीं ले सकते। 
    • अनुच्छेद 19(1)(छ) के अधीन मौलिक अधिकारों का उपयोग अवैध कार्यों को उचित ठहराने या अधिकारियों को उनके सांविधिक कर्त्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिये नहीं किया जा सकता है। 
    • उच्चतम न्यायालय ने निजी उद्यम पर सामाजिक नियंत्रण के उद्देश्य से बनाए गए विधायन को बरकरार रखा है तथा भारत की नियंत्रित एवं नियोजित अर्थव्यवस्था को मान्यता देते हुए राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के अनुरूप निजी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी है।